बेंगलूरु/दक्षिण भारत। यहां के सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम में आचार्यश्री चन्द्रयशसूरीश्वरजी व प्रवर्तक श्री कलापूर्ण विजयजी ने कहा कि जगत के मिथ्या स्वरुप को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। यह जगत बाहर से जैसा दिखाई देता है वैसा नहीं है। ज्ञानियों ने कहा है कि यह संसार स्वप्नतुल्य है। जगत का सौंदर्य अल्पकालीन है। आचार्यश्री ने कहा, मानव जीवन का मूलभुत उद्देश्य ‘वीतराग बनना ‘ होना चाहिए। वीतराग बनने के लिए सर्वप्रथम विराग भाव व विशाक्ति अनिवार्य है। विशाक्ति की नींव पर ही वीतराग का महल खड़ा होता है। विशाक्ति पाने के लिए आसक्ति को ता़ेड़ना अनिवार्य है। यह संसार असार है इसलिए वैराग्य भाव से वीतरगता की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। यह संसार छोड़ने योग्य है और संयम ग्रहण करने योग्य है।
संसार छोड़ने योग्य और संयम ग्रहण करने योग्य
संसार छोड़ने योग्य और संयम ग्रहण करने योग्य