नई दिल्ली। उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में रहकर क्रिकेट का ककहरा सीखने वाली एकता बिष्ट आईसीसी महिला विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ मैच विजेता प्रदर्शन से एकदम से सुर्खियों में छा गई लेकिन बायें हाथ की इस स्पिनर के मन में अब भी एक टीस है कि वह फाइनल में नहीं खेल पाई जहां भारतीय टीम को मेजबान इंग्लैंड से नौ रन से हार का सामना करना प़डा था। एकता ने कहा, हां फाइनल में नहीं खेल पाने का मुझे दुख है। फाइनल सबसे ब़डा मैच होता है और प्रत्येक उसमें खेलना चाहता है। मैं भी चाहती थी कि मैं फाइनल में खेलूं लेकिन टीम संयोजन इस तरह से था कि मुझे बाहर बैठना प़डा। मैं टीम प्रबंधन के फैसले का पूरा सम्मान करती हूं। पाकिस्तान के खिलाफ लीग मैच में दस ओवर में १८ रन देकर पांच विकेट लिए और उन्हें मैच की सर्वश्रेष्ठ खिला़डी चुना गया था। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने दो विकेट लिए ने इसके लिए उन्होंने ६८ रन लुटाए। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लीग मैच में भी वह प्रभाव नहीं छो़ड पाई जिसके बाद उनके स्थान पर राजेश्वरी गायकवा़ड को अंतिम एकादश में रखा गया। पिछले छह साल से भारतीय टीम की नियमित सदस्या रही एकता ने स्वीकार किया कि सीनियर खिलाि़डयों पर अच्छा प्रदर्शन का दबाव था।उन्होंने कहा, सीनियर होने के नाते आपकी जिम्मेदारी ब़ढ जाती है। हम पर इसका दबाव था लेकिन अच्छी बात यह रही कि सभी एक दूसरे का हौसला ब़ढा रही थी। मैं इससे पहले भी इंग्लैंड में खेली हूं और वहां की परिस्थितियों से अवगत थी। इसका मुझे जरूर फायदा मिला। कप्तान मिताली राज की तरह एकता बिष्ट भी टेस्ट मैचों के आयोजन की हिमायती हैं लेकिन वर्तमान में बीसीसीआई के रवैये से खुश हैं। एकता ने कहा, बीसीसीआई महिला क्रिकेट के लिए अच्छे प्रयास कर रहा है। हर कोई टेस्ट मैच खेलना चाहता है लेकिन हर प्रारूप अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है और फिलहाल वनडे और टी२० खेलना टीम के हित में है। उन्होंने कहा, अभी महिला आईपीएल शुरू करने और घरेलू क्रिकेट को अधिक मजबूत बनोन की जरूरत है। घरेलू स्तर पर अधिक टूर्नामेंटों का आयोजन किया जाना चाहिए। अल्मो़डा के देवली गांव की रहने वाली एकता का मानना है कि पहा़डों में अपार प्रतिभा है लेकिन उन्हें उचित सुविधाएं नहीं मिलने के कारण वे आगे नहीं ब़ढ पाती। उन्होंने कहा, मेरी आदर्श खिला़डी बायें हाथ की स्पिनर नीतू डेविड हैं लेकिन अगर मैं यहां तक पहुंची हूं तो उसका श्रेय मेरे कोच लियाकत अली खां को जाता है जिन्होंने मुझे आगे ब़ढाया। पहा़ड में ल़डकियां क्रिकेट खेलती हैं लेकिन उन्हें मौका नहीं मिलता। मैं सौभाग्यशाली थी कि मुझे मौका मिला। मेरे पिताजी (कुंदन सिंह बिष्ट) ने हमेशा मेरा हौसला ब़ढाया। एकता ने कहा, मैं वर्ष २००६ में उत्तराखंड की तरफ से खेली और बाद में उत्तर प्रदेश की टीम से जु़ड गई थी लेकिन मैंने कभी दोनों टीमों में खास अंतर नहीं पाया। मैं रेलवे का भी आभार व्यक्त करती हूं जिसके कारण मुझे आगे ब़ढने में मदद मिली।
फाइनल में नहीं खेलने का दुख है : एकता बिष्ट
फाइनल में नहीं खेलने का दुख है : एकता बिष्ट