नई दिल्ली। दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने युवाओं को अपने सपनों का पीछा करने की सीख देते हुए सोमवार को यहां कहा कि बचपन में वह भी काफी शरारती थे लेकिन भारत की तरफ से खेलने का लक्ष्य हासिल करने के लिए वह खुद ब खुद अनुशासित हो गए।यूनिसेफ के ब्रांड दूत तेंदुलकर ने सोमवार को विश्व बाल दिवस के अवसर पर अपना समय न सिर्फ बच्चों के साथ बिताया बल्कि उनके साथ क्रिकेट भी खेली और लंबे समय बाद बल्ला भी थामा। उन्होंने स्पेशल ओलंपिक भारत से जु़डे इन विशेष श्रेणी के बच्चों को क्रिकेट के गुर भी सिखाए।तेंदुलकर ने इस अवसर पर कहा, मैं भी जब छोटा था तो बहुत शरारती था लेकिन जब मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया तो अपना लक्ष्य तय कर दिया भारत की तरफ से खेलना। मैं अपने लक्ष्य से डिगा नहीं। शरारतें पीछे छूटती गई और आखिर में एक शरारती बच्चा लगातार अभ्यास से अनुशासित बन गया। उन्होंने कहा, जिंदगी उतार च़ढावों से भरी है। मैं तब १६ साल का था जब पाकिस्तान गया और इसके बाद २४ साल तक खेलता रहा। इस बीच मैंने भी उतार च़ढाव देखे। लेकिन मैं हमेशा अपने सपनों के पीछे भागता रहा। मेरे क्रिकेट करियर का सबसे ब़डा क्षण २०११ में विश्व कप में जीत थी और इसके लिए मैंने २१ साल तक इंतजार किया। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में १०० शतक लगाने वाले इस महान बल्लेबाज ने परिजनों को भी अपने बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, मेरे पिताजी प्रोफेसर थे लेकिन उन्होंने कभी मुझ पर लेखक बनने का दबाव नहीं बनाया। बच्चों को स्वच्छंदता चाहिए। मुझे भी क्रिकेट खेलने की पूरी छूट मिली और तभी मैं अपने सपने साकार कर पाया। इस अवसर पर तेंदुलकर ने इन बच्चों की एक टीम की अगुवाई की और पांच . पांच ओवर के मैच में यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक जस्टिन फारसिथ की टीम को एक रन से हराया।
लक्ष्य हासिल करने के लिए शरारतें छोड़ी थी : तेंदुलकर
लक्ष्य हासिल करने के लिए शरारतें छोड़ी थी : तेंदुलकर