विदेश मंत्रालय के एक ड्राइवर को जासूसी के मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार किया जाना प्रशंसनीय है, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा यह चिंताजनक भी है। हमारे एजेंसियों के सतर्क अधिकारी, कर्मचारी उन 'कड़ियों' को पकड़ रहे हैं, जो अपने क्षणिक लाभ के लिए देश की एकता और अखंडता के सूत्र को कमज़ोर कर रही हैं।
यह पहला मामला नहीं है, जब राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा कोई व्यक्ति इतने गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। यहां भी तार हनीट्रैप से जुड़ रहे हैं, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का पुराना तरीका है। इससे पहले भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के कई जवानों को आईएसआई की प्रशिक्षित युवतियों ने फांसा था।
ताज्जुब की बात है कि इतने संवेदनशील स्थानों पर तैनात होने वाले और भलीभांति प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके जवान/कर्मचारी ऐसे झांसे में कैसे आ जाते हैं? हाल में ऐसे कई मामले पढ़ने/सुनने को मिले, जब हमारी एजेंसियों ने आईएसआई का नेटवर्क पकड़ा और लोगों को नसीहत भी दी। स्पष्ट है कि इसके पीछे लालच भी एक बड़ी वजह है, जिसके वशीभूत होकर लोग जाने-अनजाने में सूचनाएं साझा कर देते हैं।
घर-परिवार से दूर रहने वाले कर्मचारी, जवान जब खूबसूरत पाकिस्तानी महिला एजेंट से रूबरू होते हैं तो वे भूल जाते हैं कि यह एक जाल है, जो उन्हें फांसने के लिए बिछाया जा रहा है। ये कर्मचारी उन युवतियों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए बातें करते हैं और वे बातें कहीं से कहीं निकल जाती हैं।
चूंकि युवतियों को आईएसआई विशेष प्रशिक्षण देकर इस क्षेत्र में उतारती है। उन्हें हिंदू देवी-देवताओं, पूजन पद्धति, परंपराओं, भाषा, लहजे आदि की पर्याप्त जानकारी दे दी जाती है। ऐसे में उनका भंडाफोड़ होना मुश्किल हो जाता है। वे कर्मचारियों को खूबसूरती के अलावा रुपयों का लालच देती हैं।
अब सोशल मीडिया ने इन एजेंटों का काम और आसान कर दिया है। हाल में जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनका तरीका भी लगभग एक जैसा है। सबसे पहले संबंधित व्यक्ति को फ्रेंड रिक्वेस्ट या कॉल आती है। प्रोफाइल पर किसी खूबसूरत युवती की तस्वीर लगी होती है। इस मायाजाल में फंसकर बहुत लोग रिक्वेस्ट स्वीकार कर लेते हैं, कॉल का जवाब देते हैं। फिर बातचीत आगे बढ़ने लगती है। प्रशिक्षित एजेंट एक ही दिन में पूरी जानकारी नहीं लेता/ती। धीरे-धीरे किसी न किसी बहाने से 'काम' की बातें निकलवाई जाती हैं, ऐसे दस्तावेज भेजने के लिए कहा जाता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अखंडता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हों। संबंधित व्यक्ति के खाते में कुछ रुपए भेज दिए जाते हैं।
इस तरह वह पूरी तरह उस एजेंट के शिकंजे में आ जाता है। फिर वह इन्कार करे तो ब्लैकमेल किया जाता है, धमकियां मिलती हैं। 'मरता क्या न करता' की तर्ज पर वह चाही गई और जानकारी भेजता है। आखिर में वह भारतीय एजेंसियों के रडार पर आ जाता है। फिर उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। यह उस व्यक्ति की नौकरी, प्रतिष्ठा से कहीं ज्यादा देश की सुरक्षा का नुकसान है।
सरकार को ऐसे मामलों को ध्यान में रखते हुए बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए। सेना, सुरक्षा बलों समेत संवेदनशील स्थानों पर तैनात हर अधिकारी व कर्मचारी को समय-समय पर सचेत करना चाहिए। अन्यथा यह देश के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण स्थिति बन सकती है।