गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद इस पार्टी के वरिष्ठ नेता खुलकर स्वीकार करने लगे हैं कि आम आदमी पार्टी (आप) ने उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया है। यूं तो पंजाब चुनाव के बाद ही कांग्रेस के कई नेता इस बात को स्वीकार कर चुके थे कि उनकी सियासी ज़मीन अब 'आप' हथियाने लगी है, लेकिन वे मीडिया के सामने खुलकर बोलने से बचते रहे।
अब वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम स्वीकार कर रहे हैं कि गुजरात में 'आप' ने उनका खेल बिगाड़ा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मीडिया के सामने कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस का बहुत नुकसान कर दिया। बड़ी देर कर दी आते-आते! संभव है कि अभी और नेता मीडिया से बातचीत के दौरान इस तथ्य को बेहिचक स्वीकारें कि 'आप' ने हकीकत में कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगा दी और यह उसके लिए बड़ी चुनौती के तौर पर उभर चुकी है।
वैसे इसका श्रेय भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को देना चाहिए। पिछले दशक के शुरुआती वर्षों में अन्ना आंदोलन के बाद उपजे माहौल में जिस तरह केजरीवाल और उनके साथियों को कांग्रेस नेता ललकारते और चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने की चुनौती देते थे, वह अब उन्हीं की पार्टी पर भारी पड़ता जा रहा है। केजरीवाल स्वयं अन्ना आंदोलन के सिद्धांतों पर कितने खरे उतरे, यह अलग विषय है, लेकिन इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अपने अस्तित्व में आने के साथ ही 'आप' न केवल कांग्रेस के वोटबैंक में हिस्सा ले रही है, बल्कि उसने कांग्रेस की सरकारों को भी सत्ता से बाहर किया है।
जिस दिल्ली में शीला दीक्षित के चेहरे के साथ कांग्रेस निश्चिंत नजर आती थी, वहां परिदृश्य में केजरीवाल के उभरने के बाद अब तक कांग्रेस वापसी नहीं कर सकी है और बहुत कमजोर स्थिति में है।
कुछ ऐसी ही कहानी पंजाब में दोहराई गई। यहां वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में 'आप' दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 2022 में कांग्रेस का सफाया कर सत्ता में आ गई। गुजरात में भी उसने कांग्रेस पर तगड़ी चोट की। इस राज्य में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 27.2 प्रतिशत पर आ गया, जबकि खुद 'आप' ने 12.9 प्रतिशत पर कब्जा जमा लिया।
निस्संदेह यहां चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ने जो वादे और दावे किए थे, वे सब हवा-हवाई साबित हुए, लेकिन वे कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेरने में सफल हुए। गुजरात में भाजपा के सत्ता में आने के बाद उसकी सीटों का ग्राफ वर्ष 2017 में पहली बार 99 पर जा गिरा था। हालांकि उसने वर्ष 2002 में 127 का आंकड़ा ज़रूर छू लिया था। उसके बाद ग्राफ ढलान पर ही था।
हमेशा की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनावों में खूब ताकत झोंकी। वे प्रतिद्वंद्वियों के लिए मुकाबले को और मुश्किल बनाते नजर आ रहे थे। यहां 'आप' का आगमन कांग्रेस की गाड़ी के लिए ऐसा स्पीड ब्रेकर साबित हुआ कि वह हिचकोले खाती हुई सिर्फ 17 सीटों पर पंचर हो गई। उसे पांच दर्जन सीटों का घाटा हुआ, जिनके आंकड़े बताते हैं कि 'आप' ने इन पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया। कहीं-कहीं निर्दलीय और एआईएमआईएम के उम्मीदवार प्रभावी रहे।
इन तमाम समीकरणों ने कांग्रेस की करारी शिकस्त सुनिश्चित कर दी थी। अब गुजरात में कांग्रेस और 'आप' के बीच मात्र एक दर्जन सीटों और 14.3 प्रतिशत वोट शेयर का अंतर रह गया है। माना जाता है कि कांग्रेस और 'आप' का वोटबैंक कमोबेश एक जैसा है। ऐसे में जहां-जहां 'आप' मजबूत होगी, उसका सीधा असर कांग्रेस की सीटों पर नजर आएगा। दिल्ली और पंजाब इसके बेहतरीन उदाहरण हैं।
'आप' की नज़र राजस्थान विधानसभा चुनाव पर भी है। लिहाजा इस बार कांग्रेस की राह बहुत मुश्किल हो सकती है। हिमाचल प्रदेश की तरह राजस्थान में 'रिवाज' का नारा काम नहीं आएगा। निस्संदेह कुछ दशकों से राजस्थान में हिमाचल की तर्ज पर सरकारें बदलती रही हैं। अगर वही रिवाज यहां दोहराया गया तो परिणाम कांग्रेस भलीभांति जानती है।