अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारतीय सेना के जवानों ने चीनी फौज (पीएलए) की जो 'आवभगत' की है, वह प्रशंसनीय है। पीएलए के उच्चाधिकारियों ने यही सोचा होगा कि वे अपने जवानों को इन बर्फीली पहाड़ियों में भेजेंगे, जहां (उनकी उम्मीद के मुताबिक) कोई नहीं मिलेगा। फिर सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल कर भारत पर दबाव बनाएंगे। उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। यहां भारतीय जवानों ने चीनियों के दुस्साहस का न केवल डटकर सामना किया, बल्कि उन्हें उचित 'सबक' भी सिखाया, जिसके बाद पीएलए के ये 'चॉकलेटी' फौजी भाग खड़े हुए।
इसके लिए भारतीय जवानों की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है। समस्त देशवासी उनके साथ खड़े हैं। अगर अगली बार भी पीएलए ऐसा दुस्साहस दिखाए तो हमारी ओर से 'खातिरदारी' में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। भारतीय सेना भारतवासियों की सेना है, जिसका हर सैनिक देश के गौरव और देशवासियों की रक्षा के लिए जीने तथा बलिदान होने का संकल्प लिए हुए है।
चीनी फौज अपने देश में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की फौज है, जिसके लिए देश का गौरव और देशवासियों की रक्षा नहीं, बल्कि अपने आकाओं की विस्तारवादी नीतियों का पालन करना सर्वोच्च प्राथमिकता है। तवांग झड़प में चीन के कितने जवान घायल हुए, इसका उसकी ओर से कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया और अगर यह कभी न आए तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।
जून 2020 में गलवान घाटी में जो खूनी भिड़ंत हुई, उसमें हताहत चीनी जवानों को लेकर भी ड्रैगन ने चुप्पी साध ली थी। उसने महीनों बाद संख्या बताई, वह भी ग़लत थी। अब तवांग झड़प के बाद जो रिपोर्टें आ रही हैं, उनके आधार पर यह कहना उचित है कि इस बार चीनियों को जोरदार मार पड़ी है।
भारत के कई हिस्सों पर चीन की कुदृष्टि है, जिनमें अरुणाचल प्रदेश भी एक है। वह इसे 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है। चूंकि वह तिब्बत को हड़प चुका है, इसलिए अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत नाम देकर इस पर अपना दावा मजबूत करना चाहता है। अरुणाचल में बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी रहते हैं। यहां उनके प्राचीन मठ, प्रार्थना केंद्र, पवित्र सरोवर आदि हैं।
चीन यहां उद्दंडता कर मुख्यत: तिब्बतवासियों को यह दिखाना चाहता है कि 'वे उसके पंजे से नहीं छूट सकते' और भारत में रहने वाले तिब्बतियों को यह संदेश देना चाहता है कि 'वे यहां रहकर भी सुरक्षित नहीं हैं'।
चीन इसलिए भी भड़का हुआ है, क्योंकि भारत-अमेरिका ने संयुक्त सैन्याभ्यास किया है। चीन इस क्षेत्र में एकमात्र सैन्य महाशक्ति बनकर रहना चाहता है, ताकि अपनी धौंस जमा सके। भारतीय सेना तकनीक और सैन्याभ्यास से अपने रण-कौशल में लगातार बढ़ोतरी कर रही है। साथ ही भारत सरकार एलएसी के नजदीक तेजी से सड़कों और पुलों का जाल बिछा रही है। इससे न केवल आम नागरिकों को लाभ होगा, बल्कि सेना एवं सशस्त्र बलों की ताकत और बढ़ जाएगी।
चीन की ओर से इन सबकी मिश्रित कुंठा तवांग झड़प के रूप में सामने आई है। चीन को नहीं भूलना चाहिए कि भारत कोई ताइवान या हांगकांग नहीं है, जहां पीएलए की गीदड़ भभकियों से काम चल जाता है। भारतीय सेना उसकी इन हरकतों का बखूबी जवाब देना जानती है। यह 1962 का भारत नहीं है, जब 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के झूठे नारों के शोर में उसने हमला कर दिया था। वह काठ की हांडी एक बार चढ़ गई, अब नहीं चढ़ेगी।
पीएलए के जनरल साल 1967 को याद रखें, जब नाथू ला से सेबू ला तक शांतिपूर्ण ढंग से बाड़ लगा रहे भारतीय जवानों पर चीनियों ने कायरतापूर्ण हमला किया तो लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ने ड्रैगन को कैसा सबक सिखाया था! उस जवाबी कार्रवाई में भारतीय जवानों ने 300 से ज्यादा चीनियों को उड़ा दिया था, जिस पर आज तक चीन में कोई बात नहीं करता। अगर चीन फिर दुस्साहस करेगा तो भारतीय सेना ऐसा सबक सिखाएगी कि चीनी जनरल अपनी जनता से सच छुपाने को मजबूर होंगे।