चीन का नाटक

चीन को लेकर अब आम नागरिक भी इतना जागरूक हो चुका है कि वह उसके शब्दों पर संदेह करता है

इन दिनों चीन में कोरोना के कारण हालात बहुत बिगड़ चुके हैं

चीन के विदेश मंत्री वांग यी का यह कहना कि उनका देश 'बेहतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है' — अप्रत्याशित है। हालांकि उनके इस कथन पर भारत में शायद ही कोई विश्वास करे। हाल में तवांग में जिस तरह भारतीय सेना ने पीएलए के जवानों को पीट-पीटकर धकेला, उसके बाद तो यही उम्मीद थी कि चीन की ओर से उकसाने वाला बयान आएगा। लेकिन वांग तो संबंध सुधारने की बात करने लगे! आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ? क्या सच में ड्रैगन का हृदय-परिवर्तन हो गया है! 

चीन को लेकर अब आम नागरिक भी इतना जागरूक हो चुका है कि वह उसके शब्दों पर संदेह करता है, अविश्वसनीय समझता है, जो कि उचित ही है। एक ओर तो चीन भारत के साथ मीठी बातें कर अपनी नकली छवि गढ़ने की कोशिश कर रहा है, उधर ताइवान की ओर कम से कम 71 युद्धक विमान, सात जहाज भेजकर माहौल गरमाना चाहता है। 

चूंकि इन दिनों चीन में कोरोना के कारण हालात बहुत बिगड़ चुके हैं, इसलिए वह भारत के साथ कोई टकराव नहीं लेना चाहता। उसकी मंशा है कि अभी भारत से मित्रता का दिखावा किया जाए, जबकि ताइवान को धमकाया जाए। इस तरह चीन अभी ताइवान की ओर 'शक्ति प्रदर्शन' करने में व्यस्त है। वह एकसाथ कई मोर्चों पर टकराव लेने की क्षमता नहीं रखता। वह भी तब, जब लाखों लोग कोरोना से संक्रमित होकर अस्पतालों में भर्ती हों।

चीन और अमेरिका की रार किसी से छिपी नहीं है। जब भारतीय सेना ने उत्तराखंड में एलएसी के निकट अमेरिकी सेना के साथ युद्धाभ्यास किया था तो चीन ने उसकी कुंठा के तौर पर तवांग में टकराव मोल लिया था। अमेरिका ने ताइवान से संबंधित वार्षिक रक्षा व्यय विधेयक पारित किया है, जिससे चीन बुरी तरह भड़क उठा है। उसी की कुंठा ताइवान जलडमरूमध्य क्षेत्र में चीन की घुसपैठ है। चीन अपने आसपास स्थित सभी देशों पर धौंस जमाना चाहता है। कुछ देश उसकी धमकियों में आ गए हैं, लेकिन भारत पर यह फॉर्मूला बिल्कुल काम नहीं करेगा। 

दुनिया ने देखा कि किस प्रकार तवांग में घुसपैठ कर रहे चीनियों को भारतीय जवानों ने बुरी तरह पीटकर 'विदा' किया। इसलिए अभी चीन चाहता है कि यहां मामला ठंडा पड़े और ताइवान से मामला बिगड़े। चूंकि ताइवान उतना शक्तिसंपन्न नहीं है, जितना कि भारत है। इसलिए वहां से कड़ा सैन्य प्रतिरोध नहीं हो रहा है। पीएलए ताइवान के आसपास के जल क्षेत्र में गश्त कर रही है। वह ताइवान पर नजर रखती है। वहीं, ताइवान भी भूमि आधारित मिसाइल प्रणालियों के साथ नौसैनिक पोतों के जरिए चीनी गतिविधियों पर नजर रखता है। चीन ने अपनी घुसपैठ को अमेरिका-ताइवान के उकसावे का जवाब करार दिया है, लेकिन इस बात की आशंका कम है कि वह अभी ताइवान पर हमला करने का जोखिम मोल लेगा। कम से कम इस समय तो उसके हालात इसकी इजाजत बिल्कुल नहीं देते। 

चीन में कोरोना का प्रकोप इतना ज्यादा है कि आईसीयू भरे हुए हैं। अस्पतालों में बिस्तर खाली नहीं हैं। लोग दवाइयों के लिए भटक रहे हैं। इसलिए भारत के साथ संबंध सुधारने का नाटक करना चीन की मजबूरी है। जब चीन में कोरोना के मामलों में कमी आएगी, हालात थोड़े बेहतर होंगे, तब यह लालची पड़ोसी फिर दुस्साहस दिखा सकता है, जिसके लिए भारत को एलएसी पर आधुनिक तकनीक के साथ निगरानी बढ़ानी होगी। अगर पीएलए के 'घुसपैठिए' दोबारा आएं तो उनकी आवभगत 'तवांग की तर्ज' पर ही होनी चाहिए।

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