पाकिस्तान के अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा पर यह आरोप कि 'वे उनकी हत्या करवाकर देश में आपातकाल की घोषणा करना चाहते थे', कुछ चौंकाने वाला जरूर लग सकता है, लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जो नया हो। यह चौंकाने वाला इसलिए है, क्योंकि हाल के वर्षों में पाक में किसी भी प्रधानमंत्री को अपने सेना प्रमुख के कोप के चलते जान से हाथ नहीं धोने पड़े। अलबत्ता किसी न किसी बहाने से कुर्सी सबकी चली गई।
बेशक इमरान (अब तक) उन खुशनसीब नेताओं में से एक हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री पद से सही-सलामत उतार दिया गया। पाक में प्रधानमंत्री को फांसी देने और बम से उड़ाने का रिवाज भी है। हो सकता है कि इमरान का दावा सही हो, लेकिन अब वे इसके जरिए सहानुभूति लेने की कोशिश कर रहे हैं। अब बाजवा सेना प्रमुख नहीं रहे, इसलिए इमरान उन पर खुलकर हमला बोल रहे हैं, मन की पूरी भड़ास निकाल रहे हैं।
इमरान यह क्यों भूल जाते हैं कि उन्हें सत्ता में लाने वाले भी सेना प्रमुख ही थे? वे जब तक 'जी हुजूरी' करते रहे, उनकी कुर्सी सुरक्षित रही। जैसे ही आंखें दिखाने लगे, सत्ता से हटा दिए गए। वास्तव में पाकिस्तानी फौज उस हिंसक जानवर जैसी है, जिसके मुंह को इन्सान का खून लग गया। अपने नेताओं, प्रधानमंत्रियों का शिकार करते-करते अब यह नरभक्षी बन गई है।
इमरान पूर्व में यह भी कह चुके हैं कि उन्होंने 2019 में बाजवा का कार्यकाल बढ़ाकर ‘बड़ी भूल’ की थी। क्या इमरान को इस बात की असलियत इतने दिनों बाद मालूम हुई है? उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले लियाकत अली ख़ान, जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो के अलावा नवाज शरीफ का इतिहास ही पढ़ लेना चाहिए था। इमरान खैर मनाएं कि वे सस्ते में छूट गए!
पाक फौज आतंकवाद का पालन-पोषण करती है, आतंकवादियों को लॉन्च करती है। उसकी विशेषज्ञता आतंकवाद में है। उसके बारे में यह भी कहा जाता है कि उसने जंग कभी जीती नहीं और चुनाव कभी हारा नहीं! पाक में फौज के पंजे इतनी गहराई से गड़े हुए हैं कि भविष्य में जो भी प्रधानमंत्री आएगा, वह उसकी कठपुतली ही होगा।
इमरान की पार्टी पीटीआई के नेता और पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी भी बाजवा को आड़े हाथों ले रहे हैं। हालांकि उनके इस दावे में कोई दम नहीं है कि रूस, चीन और अफगानिस्तान पर उनकी सरकार ने जो 'स्वतंत्र' विदेश नीति अपनाई थी, उसकी वजह से उन्हें निशाना बनाने के लिए अमेरिका द्वारा साजिश रची गई थी। पाकिस्तानी नेता अपनी हर विफलता के तार किसी 'साजिश' से जोड़ ही लेते हैं।
वास्तव में इमरान की सत्ता इसलिए गई, क्योंकि वे ख़ुद को पाक का असली शासक समझने की भूल कर बैठे थे। इसी ग़लतफ़हमी के कारण सेना प्रमुख से टकराव मोल लेने लगे थे। वे फौज और आईएसआई में अपने चहेतों को प्रभावशाली जगह बैठाना चाहते थे। बाजवा को यह नागवार गुजरा कि प्रधानमंत्री उनके कामकाज में दखल देने की जुर्रत कर रहा है!
बेशक वे इमरान को धूमधाम से सत्ता में लाए थे, लेकिन उनसे जो उम्मीदें लगाई थीं, वे धूमिल हो गई थीं। इमरान ने अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया था और अमेरिका से तनातनी बढ़ाकर अपने वोटबैंक को खुश रखना चाहते थे। उनके नेतृत्व में कोई स्वतंत्र विदेश नीति नहीं थी।
इमरान के कार्यकाल में पाकिस्तान कभी अमेरिका, कभी चीन और कभी आईएमएफ के पास मदद की गुहार लगाता ही नजर आया। अब नए साल में इमरान पूरी तरह चुनावी स्वरूप में आ गए हैं। उन्होंने बाजवा पर तो हमले तेज किए ही हैं, नए-नवेले सेना प्रमुख जनरल मुनीर पर भी हमला बोलना शुरू कर दिया है, जिससे यहां और टकराव बढ़ने के आसार साफ-साफ नजर आने लगे हैं।