बम और बातचीत?

क्या फारूक अब्दुल्ला नहीं जानते कि आतंकवाद की यह आग किसने लगाई थी?

क्या विष देने वाले से यह आशा की जा सकती है कि वह जीवन की रक्षा के लिए औषधि देगा? 

फारूक अब्दुल्ला का यह बयान आश्चर्य मिश्रित हास्य पैदा करता है कि 'आतंकवाद केवल पाकिस्तान के साथ वार्ता से ही खत्म किया जा सकता है।' जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके और नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान संभाल रहे फारूक अब्दुल्ला कोई नए-नवेले नेता नहीं हैं। उनके पास राजनीति का कई दशकों का अनुभव है। 

उनका यह कथन तो सत्य है कि 'जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अब भी जिंदा है', लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं कि 'इसे केवल पाकिस्तान के साथ वार्ता के माध्यम से ही खत्म किया जा सकता है।' क्या फारूक अब्दुल्ला नहीं जानते कि आतंकवाद की यह आग किसने लगाई थी, जम्मू-कश्मीर में कबायली लश्कर किसने भेजे थे, इसके एक बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा किसने किया था? क्या विष देने वाले से यह आशा की जा सकती है कि वह जीवन की रक्षा के लिए औषधि देगा? 

पाकिस्तान की नीति है आतंकवाद को पालना, उसे बढ़ावा देना। अगर हम उससे बात कर भी लेंगे तो आतंकवाद में कोई कमी नहीं आएगी। क्या इस संबंध में भारत ने पाकिस्तान के साथ कभी बातचीत नहीं की? देश के प्रथम प्रधानमंत्री से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक हर किसी ने पाक के साथ संबंध सुधारने की ही पहल की और उन्हें बदले में धोखा मिला। संसद हमला, 26/11, पठानकोट, उरी, पुलवामा ... ये तो कुछ नाम हैं, जिनके घाव अभी तक हरे हैं। दे

श ने कितने ही आतंकी हमलों में हजारों लोगों को गंवाया है। जम्मू-कश्मीर के युवाओं के हाथ से क़लम छीनकर पत्थर और बंदूक पकड़ाने वाला पाकिस्तान ही है। फिर फारूक अब्दुल्ला यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि उससे बातचीत की जाए तो शांति का वातावरण हो जाएगा?

वर्तमान में भारत सरकार का पाक के प्रति रुख स्पष्ट है- जब तक आतंकवाद रहेगा, बातचीत नहीं हो सकती। यह उचित ही है। गोलियों की तड़तड़ाहट और बम धमाकों के शोर में बातचीत संभव नहीं है। इस स्थिति में देश का एक ही मत होना चाहिए कि पाक के साथ खूब सख्ती बरती जाए। उसे हर मंच पर बेनकाब किया जाए। उसके आतंकवादियों का संहार किया जाए। अगर जरूरत पड़े तो सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे कदम उठाकर उसे करारा जवाब दिया जाए। पाक की आर्थिक रीढ़ टूट चुकी है। 

इन दिनों उसके मीडिया में शोर मचा है कि मुल्क में आटे-दाल के लिए जो हाहाकार है और विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है, उसके पीछे नरेंद्र मोदी की नीतियां हैं। पाक मीडिया स्वीकार करता है कि मोदी के सत्ता में आने के बाद अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मदद मिलने में भारी मुश्किलें हो रही हैं। वास्तव में पाकिस्तान के लिए यही नीति उचित है। वह नरमी बरते जाने का हक बहुत पहले गंवा चुका है। उसके साथ वही किया जाना चाहिए, जो किसी शत्रु देश के साथ उचित है। 

आज पाक इस फिराक में है कि किसी तरह बातचीत का नाटक शुरू किया जाए। फिर कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण किया जाए। खुद की बदहाल अर्थव्यवस्था के नाम पर दुनिया की सहानुभूति ली जाए। किसी तरह आर्थिक मदद हासिल करने के रास्ते खोले जाएं। एक बार जब उसके खजाने में ठीक-ठाक डॉलर आ जाएंगे तो वह दोबारा बड़ी संख्या में आतंकवादियों को तैयार करेगा, उनमें निवेश करेगा। भारत सरकार को पाक पर खूब दबाव बनाकर रखना चाहिए। अत्याधुनिक तकनीक से आतंकवादियों पर नजर रखी जाए, उनका खात्मा किया जाए। 

देश का खुफिया नेटवर्क और मजबूत हो। पाक के इशारे पर जो तत्त्व देशविरोधी कृत्यों में शामिल पाए जाएं, उन पर शिकंजा कसा जाए। नेतागण वोटबैंक की मानसिकता से ऊपर उठकर सोचें। ऐसा बयान देने से परहेज करें, जिससे पाकिस्तान की हौसला-अफजाई होती है।

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