अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोंपिओ ने फरवरी 2019 में पाक स्थित बालाकोट में भारत द्वारा एयर स्ट्राइक के बाद पैदा हुए हालात को लेकर अपनी किताब में जो दावे किए हैं, वे कुछ ज़्यादा ही मनगढ़ंत लगते हैं। पोंपिओ ने अपनी तत्कालीन भारतीय समकक्ष सुषमा स्वराज के बारे में जो टिप्पणी की है, वह भी वास्तविकता से परे है। कुल मिलाकर पोंपिओ महाशय के दावों की यह पोटली प्रचार पाने का नुस्खा लगती है। वे खुद को इतना काबिल विदेश मंत्री दिखाना चाहते हैं, जिसने भारत-पाक के बीच 'परमाणु युद्ध' टालकर करोड़ों लोगों को जीवनदान दे दिया और विदेश नीति में उनका ज्ञान 'अथाह' है!
पोंपिओ के ही शब्दों में- ‘मैं हनोई में भारतीय समकक्ष के साथ बात करने के लिए जागा था। उनका मानना था कि पाकिस्तानियों ने हमले के लिए अपने परमाणु हथियार तैयार करने शुरू कर दिए हैं। उन्होंने मुझे सूचित किया कि भारत अपनी जवाबी कार्रवाई पर विचार कर रहा है। मैंने उनसे कुछ नहीं करने और सबकुछ ठीक करने के लिए हमें थोड़ा वक्त देने के लिए कहा।’
पोंपिओ भूल रहे हैं कि भारत सरकार ने एयर स्ट्राइक का फैसला अपनी शक्ति और सामर्थ्य के आधार पर लिया था और उसके संभावित परिणामों तथा पाक की ओर से प्रतिक्रिया को लेकर हमारी सेनाएं सतर्क थीं। पाक इतनी जुर्रत नहीं कर सकता कि वह भारत पर परमाणु हमले की तैयारी कर ले, क्योंकि रावलपिंडी के जनरलों में इतनी अक्ल ज़रूर है कि वे उसके नतीजों से अच्छी तरह वाकिफ हों।
अगर पाकिस्तान की ओर से बम आता तो भारत की ओर से गुलाब का फूल नहीं जाता! पाकिस्तान में जितनी शक्ति है, उससे कई गुणा ज्यादा शक्ति भारत के पास है। पाकिस्तान ऐसी भूल करता तो वह उसके जीवन की आखिरी भूल होती, क्योंकि उसके बाद भारतीय मिसाइलों से इतने अंगारे बरसते कि वह नजारा पाक की कल्पना से परे होता।
बालाकोट एयर स्ट्राइक के तौर पर दुनिया ने देखा कि भारत किस तरह आतंकवादियों के खिलाफ अधिकारपूर्वक कार्रवाई करता है। पाक के तत्कालीन थल सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा किस कदर घबरा गए थे, इसका ब्योरा तो उन्हीं के देश के राजनेता अयाज सादिक दे चुके हैं। भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन को भी पाकिस्तान ज्यादा समय तक हिरासत में नहीं रख सका, क्योंकि उसे अंजाम पता था।
पिछले कुछ वर्षों से पाक की आर्थिक स्थिति बुरी तरह चरमराई हुई है। ऐसे में वह भारत के साथ छोटी-मोटी सैन्य झड़प मोल लेने की भी नहीं सोच सकता था, युद्ध तो बहुत दूर की बात है। जहां तक परमाणु हमले का प्रश्न है तो पोंपिओ को कारगिल युद्ध का इतिहास पढ़ना चाहिए, जब पाक के तत्कालीन थल सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की ओर से ऐसी गीदड़ भभकियां आई थीं, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने निर्णय पर 'अटल' रहे, किसी दबाव के प्रभाव में नहीं आए। कारगिल की पहाड़ियों पर भारतीय जवानों ने पाकिस्तानियों के परखच्चे उड़ा दिए थे, जिसके बाद इस पड़ोसी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ दौड़े-दौड़े अमेरिका की शरण में पहुंचे थे। वहां बेहद मिन्नतें करने के बाद उनकी फौज के लिए वापसी की राह खुली थी।
रावलपिंडी के जनरल ऐशो-आराम के आदी हैं। वे अवैध ढंग से धन बटोरकर पाकिस्तान, यूएई और यूरोप आदि में अरबों की संपत्ति खड़ी कर चुके हैं। वे षड्यंत्र रचने, धमकियां देने, आतंकवादियों की भर्ती करने, घुसपैठ कराने जैसे कार्य तो कर सकते हैं, लेकिन युद्ध और परमाणु हमले जैसा दुस्साहस उनके बूते की बात नहीं है। उनका मकसद लूट की दौलत से ऐश करना है। उन्हें मुफ्त में मारे जाने का शौक नहीं है। इसलिए पोंपिओ साहब भारत की फिक्र करना छोड़ें। भारतीय अपनी रक्षा ख़ुद कर लेंगे।