पाकिस्तान के पेशावर में पुलिस लाइन स्थित एक मस्जिद में आत्मघाती धमाके के बाद इस पड़ोसी देश के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने संसद में जो बयान दिया, वह बताता है कि नफ़रत का अंजाम आखिरकार क्या होता है। उन्हीं के शब्दों में, 'ऐसा कत्लेआम न हिंदुस्तान में होता है और न इजराइल में होता है, जो (उनके) दुश्मन हैं, लेकिन पाकिस्तान में होता है। यहां हमें खुद के अंदर झांकने की जरूरत है।'
इस धमाके में मृतकों की संख्या 100 को पार कर चुकी है। घायलों में कई लोगों की हालत गंभीर बताई जा रही है, इसलिए मृतकों का आंकड़ा बढ़ सकता है। अगर आसिफ़ सच में अपने देश के बिगड़े हालात को लेकर चिंतित हैं तो अब भी सुधार की दिशा में बहुत कुछ हो सकता है। हालांकि यह आसान बिल्कुल नहीं होगा।
कुदरत का विधान है कि जो कर्म रूपी बीज बोएंगे, देर-सबेर फल के रूप में वही मिलेगा। आज पाकिस्तान को वही मिल रहा है, जो उसके नीति-निर्माताओं ने 1947 में बोया था। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि जो व्यक्ति किसी और से बेवजह नफरत करता है, उसे सताने और तबाह करने के मंसूबे बांधता रहता है, वह कालांतर में खुद कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं से घिर जाता है।
पाकिस्तान के नेताओं ने इस पड़ोसी देश के अस्तित्व में आने से पहले ही हिंदुओं से नफ़रत का कारोबार शुरू कर दिया था। जब पाकिस्तान बन गया तो भी उन्हें सुकून नहीं मिला। कबायली लश्कर, युद्ध, घुसपैठ, आतंकवाद इन्हीं कार्यों में अपनी पूरी ऊर्जा और संसाधन लगा दिए। इसका नतीजा आज सबके सामने है। पाक प्रायोजित आतंकवाद के कारण भारत में हजारों लोगों ने जान गंवाई, लेकिन समय के साथ यहां सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होती गई।
आज भारतीय सुरक्षा बल अत्याधुनिक तकनीक से ज्यादातर पाकिस्तानी आतंकवादियों/घुसपैठियों को एलओसी पर ही ढेर कर देते हैं। जो आता है, मार दिया जाता है। अगर कोई आतंकवादी भौगोलिक प्रतिकूलताओं का फायदा उठाकर अंदर दाखिल हो जाता है तो उसे भी सुरक्षा बल जल्द ढूंढ़कर खत्म कर देते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियां देशभर में छापे मारकर ऐसे लोगों पर लगातार शिकंजा कस रही हैं, जो इस किस्म के तत्त्वों की हिमायत करते हैं।
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले कुछ वर्षों में देश की सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत हुई है। उधर, पाक ने जिन आतंकवादियों को पाला, वे अब इस्लामाबाद की गद्दी हासिल करने का ख्वाब देख रहे हैं। उन्हें पूर्व में पाक फौज और आईएसआई ने ही प्रशिक्षण दिया था, लेकिन अब वे अपने आकाओं को आंखें दिखा रहे हैं। टीटीपी जैसे कई संगठन चाहते हैं कि वे पाकिस्तान में तख्तापलट कर सत्ता में आ जाएं। चूंकि पाक में सत्ता की बागडोर मुख्यत: फौज के हाथ में है, इसलिए आतंकवादी फौज और अन्य सशस्त्र बलों पर हमलों को प्राथमिकता देते हैं। ताजा हमला भी इसी सिलसिले का हिस्सा है।
यूं तो पाकिस्तान में आए दिन छोटे-बड़े हमले होते रहते हैं, लेकिन पेशावर धमाका बहुत बड़ा हमला है। इससे पाक फौज, आईएसआई और पुलिस को साफ संदेश दिया गया है कि अब आतंकवादी इतने प्रबल हो चुके हैं कि वे बड़े से बड़े सुरक्षा चक्र में सेंध लगा सकते हैं। ध्यान दें कि ख्वाजा आसिफ़ उक्त बयान में भारत के साथ 'दुश्मन' शब्द जोड़ना नहीं भूले।
वास्तव में पाक हुक्मरान का यह रवैया ही अपने आप में बड़ी समस्या है। उनका इस हद तक ब्रेनवाश कर दिया गया है कि वे भारत से 'दुश्मनी' नहीं छोड़ना चाहते। जब रक्षा मंत्री का मानसिक स्तर यह होगा तो आम नागरिक का क्या होगा?
निस्संदेह यह सोच पाकिस्तान में आतंकवाद की नई पौध तैयार करेगी, जिसके फल और जहरीले होंगे। ख्वाजा आसिफ़ को नहीं भूलना चाहिए कि इस नफ़रत के कारण ही उनका देश आज तबाही के कगार पर खड़ा है। अगर वे शत्रुता की मानसिकता को पीछे नहीं छोड़ेंगे तो तबाही भी उनका पीछा नहीं छोड़ेगी।