साइकिल को दें बढ़ावा

अधिकाधिक लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए

इससे न केवल पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी, बल्कि स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा

संयुक्त अरब अमीरात तेल संपदा और आर्थिक दृष्टि से संपन्न देशों में गिना जाता है, जहां बहुत लोग दुनिया की सबसे महंगी कारों में सफर करते हैं। वहां साइक्लिंग के लिए 93 किमी लंबे इनडोर सुपर हाईवे निर्माण के निहितार्थ को समझने की जरूरत है। दुबई में बनने जा रहे इस सुपर हाईवे में भविष्य की ऊर्जा और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों की झलक मिलती है। 

यह देश चाहता है कि अधिकाधिक लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इससे न केवल पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी, बल्कि स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। हाल के वर्षों में साइक्लिंग करने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। सोशल मीडिया ने इसमें सकारात्मक भूमिका निभाई है। 

आज जर्मनी, फ्रांस, नॉर्वे, इजराइल, जापान, चीन समेत कई देशों में युवा कर्मचारी साइकिल चलाकर दफ्तर जाते हैं। इससे ईंधन पर होने वाला खर्च तो बचता ही है, अच्छा-खासा व्यायाम भी हो जाता है। प्राय: दिनभर दफ्तर में कंप्यूटर के सामने बैठे रहकर काम करने के बाद व्यायाम आदि के लिए समय कम ही मिलता है। ऐसे में साइकिल व्यायाम की कमी पूरी कर देती है। 

भारत में भी साइकिल की लोकप्रियता बढ़ती नजर आती है, लेकिन इसे और बढ़ावा देने की जरूरत है। जब कोरोना काल में पाबंदियों में ढील दी गई और स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान, दफ्तर खुलने लगे तो लोगों को एक बार फिर साइकिल की याद आई। तब साइकिल ऐसे साधन के तौर पर सामने आई, जो कोरोना से सुरक्षित रखने में मददगार हो सकती थी। चूंकि बसों में भीड़ उमड़ने से संक्रमण का ज्यादा खतरा था।

 उस दौरान धुन के पक्के कुछ ऐसे लोग भी चर्चा में रहे, जिन्होंने साइकिल चलाकर स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों की रक्षा का संदेश दिया। पुणे निवासी प्रीति मस्के तो गुजरात से अकेली साइकिल चलाकर 14 दिन में अरुणाचल प्रदेश पहुंच गई थीं। उन्होंने गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम होते हुए लंबा रास्ता तय किया था। 

इसी तरह राजस्थान में झुंझुनूं जिले के बुडानिया गांव निवासी जैरी चौधरी ने साइकिल से कश्मीर से कन्याकुमारी की यात्रा की थी। वे सोशल मीडिया के जरिए अपने अनुभव साझा करते रहे और रास्ते में मिलने वाले लोगों को पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम से कम करने का संदेश भी देते रहे। उन्होंने पाया कि हमारा देश उससे कहीं ज्यादा सुंदर है, जैसा हमने पढ़ा और सुना है। उन्हें हर राज्य में लोग सहयोग करते और उनका संदेश जानने के लिए उत्सुक दिखे। 

आज यूट्यूब पर ऐसे वीडियो की बड़ी तादाद नजर आती है, जिनमें युवा साइकिल चलाने को प्रोत्साहन दे रहे हैं। वे यह भलीभांति समझते हैं कि विदेशों से पेट्रोल-डीजल आयात करना हमारी अर्थव्यवस्था पर कितना बड़ा भार है। पर्यावरण संबंधी चुनौतियां अलग हैं। 

शहरों में ऐसे लोगों के समूह बन गए हैं, जिनके घरों में मोटरसाइकिल, कार आदि वाहन हैं, फिर भी वे साइकिल को प्राथमिकता देते हैं। वे या तो साइकिल से दफ्तर जाते हैं या हफ्ते/पखवाड़े में साइकिल से लंबी दूरी की यात्रा करते हैं और सोशल मीडिया पर तस्वीरें-वीडियो पोस्ट कर लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया भी स्वस्थ रहने और पृथ्वी को हरी-भरी बनाए रखने के लिए लोगों से साइकिल चलाने की अपील कर चुके हैं। उन्होंने ‘नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज’ (एनबीईएमएस) द्वारा ‘पृथ्वी बचाओ, जीवन बचाओ’ विषय पर ‘साइक्लोथॉन’ (साइकिल मैराथन) में भाग लिया था। 

लेकिन इसके बावजूद भारत में साइकिल चलाने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, ऐसा क्यों? इसका जवाब ढूंढ़ना मुश्किल नहीं है। साइकिलों की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है। वहीं, हमारी सड़कें साइकिल सवारों के लिए अधिक सुरक्षित नहीं हैं। 

अगर सरकारें साइकिलों पर सब्सिडी दें, उन्हें सस्ती करने के उपाय करें और सड़कों को साइकिल सवारों के लिए अधिक सुरक्षित बनाएं तो निश्चित रूप से इसकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी होगी, अर्थव्यवस्था को भी इसके लाभ मिलेंगे।

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