भूकंप और भ्रष्टाचार

किसी देश की जड़ों को भ्रष्टाचार किस कदर खोखला कर सकता है, तुर्किये इसका ज्वलंत उदाहरण है

लालच, भ्रष्टाचार, तुच्छ स्वार्थ किसी राष्ट्र को बड़ी से बड़ी तबाही की ओर धकेल सकते हैं

तुर्किये में भूकंप से भारी तबाही अत्यंत दु:खद है। सरकार और संबंधित एजेंसियां राहत कार्यों में जुटी हैं, वहीं उन बिल्डरों की पकड़-धकड़ भी शुरू हो गई है, जिन्होंने कम गुणवत्ता की सामग्री से इमारतें बनाई थीं। किसी देश की जड़ों को भ्रष्टाचार किस कदर खोखला कर सकता है, तुर्किये इसका ज्वलंत उदाहरण है। 

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर यहां नियमों को ध्यान में रखते हुए इमारतें बनाई जातीं तो वे भूकंप के झटकों को मजबूती से सहन कर लेतीं और इतना नुकसान नहीं होता। तुर्किये की जनता में भी गहरा आक्रोश है। लोग चाहते हैं कि ऐसे बिल्डरों को सजा दी जाए, लेकिन उन भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी गिरफ्तार कर दंडित किया जाए, जिन्होंने अपने तुच्छ स्वार्थ के बदले हजारों लोगों की ज़िंदगी का सौदा कर लिया। 

भ्रष्टाचार कई देशों में बड़ी समस्या है। अगर सरकारें समय रहते दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करतीं तो इसका नतीजा बड़ी तबाही के रूप में सामने आ सकता है। कहते हैं कि जब चीन की दीवार बनाई जा रही थी तो कुछ भ्रष्ट कारीगरों ने रिश्वत लेकर उसे कई जगहों से कमजोर बनाया था। जब इसका खुलासा हुआ तो यह कहावत बन गई कि अगर आपके लोग भ्रष्ट हैं तो कोई दीवार आपकी सुरक्षा नहीं कर सकती। 

भारत में जो आक्रांता आए, वे कोई बहादुर या बड़े योद्धा नहीं थे, लेकिन उन्हें यहां जड़ें जमाने में कामयाबी मिली, क्योंकि कुछ लोगों ने चंद सिक्कों के बदले अपने ईमान और मातृभूमि का सौदा कर लिया था। उन्होंने आक्रांताओं के लिए किले के दरवाजे अंदर से खोले थे।

जब द्वितीय विश्वयुद्ध जोरों पर था तो भारत में इस बात को लेकर चर्चा होने लगी कि अगर अंग्रेज हार गए तो क्या होगा! उन दिनों ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि अंग्रेज हारकर ब्रिटेन चले गए तो यहां जापानियों का कब्जा हो सकता है। ऐसे माहौल में एक शख्स (जो अच्छी हैसियत रखता था) कराची जाने की तैयारी करने लगा। लोगों ने उससे पूछा, 'तुम कराची क्यों जा रहे हो?' उसने कहा, 'अगर अंग्रेज युद्ध हार जाएंगे तो उन्हें विदा कर जहाज में बैठा दूंगा; अगर जापानी युद्ध जीत जाएंगे तो उनका स्वागत कर यहां ले आऊंगा!' 

लालच, भ्रष्टाचार, तुच्छ स्वार्थ किसी राष्ट्र को बड़ी से बड़ी तबाही की ओर धकेल सकते हैं। जरूरी नहीं कि उसका परिणाम भूकंप जनित आपदा ही हो, वह गुलामी भी हो सकती है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने सपना देखा था कि जब देश में स्वराज आ जाएगा तो भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। अफसोस, ऐसा नहीं हो सका। जनता को छोटे-मोटे और जायज काम करवाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। भ्रष्टाचार को शिष्टाचार समझ लिया गया है। 

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो यह तक कह दिया था कि सरकार जनता के लिए एक रुपया भेजती है तो उस तक सिर्फ 15 पैसे पहुंचते हैं, 85 पैसे बीच में ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। निस्संदेह हाल के वर्षों में सहायता राशि लाभार्थियों के बैंक खाते में आने से उस किस्म की घपलेबाजी पर काफी हद तक रोक लगी है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। 

भ्रष्टाचार एक ऐसी दीमक है, जो बड़े से बड़े समृद्ध, खुशहाल, प्राचीन राष्ट्र की सुख-शांति को चाट जाती है। इसे हर स्तर पर हतोत्साहित किया जाना चाहिए। भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए। प्राय: ऐसे लोग यह सोचकर नौकरी करते हैं कि उनकी पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में है, इसलिए जमकर चांदी कूटो! 

सरकार को हर विभाग और दफ्तर में ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों पर कड़ी नजर रखते हुए इनकी धर-पकड़ करनी चाहिए। इन्हें सख्त सजाएं देते हुए नजीर पेश करनी चाहिए। देशवासियों को किसी भ्रष्टाचारी के स्वार्थों के कारण दुर्दिन न देखने पड़ें।

About The Author: News Desk