पाकिस्तान की एक महिला पत्रकार का भारत से यह आग्रह करना कि 'वह इस मुश्किल वक्त में पड़ोसी देश की सहायता करे', पर उनके देशवासियों को गौर करने और सबक लेने की जरूरत है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान, जिसके पास बेहद उपजाऊ जमीन थी, काफी संसाधन थे, कई मशहूर कारखाने थे, आज वहां आटा मांगने की नौबत आ गई? विदेशी मुद्रा भंडार तो पहले ही खाली हो चुका है। दिवालिया होने की औपचारिक घोषणा नहीं की गई, लेकिन उसके रक्षा मंत्री कह चुके हैं कि मुल्क दिवालिया हो चुका है!
पाक की यह दुर्गति हिंदुओं से नफरत और आतंकवाद का मिश्रित परिणाम है। उसने कश्मीर हासिल करने के लिए जो जुनून अपनी जनता में पैदा किया, वह उसे आज इस कगार पर ले आया है कि उसके नागरिक उसी देश से मदद की गुहार करने लगे हैं, जिन्हें उनका दुश्मन बताया जाता है। भारत किसी के साथ दुश्मनी नहीं चाहता। उसने जरूरत होने पर दूसरों की हरसंभव मदद ही की है। अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव ... से लेकर कई दर्जन देश हैं, जिन्हें कोरोना काल में भारत ने मदद भेजी थी। पाकिस्तान ने अपने नागरिकों को जो वैक्सीन लगाई थीं, वे भी भारत से गई थीं।
अगर भारत चाहे तो पाकिस्तान को खाद्यान्न व आर्थिक संकट से निकाल सकता है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा करना बेहद खतरनाक होगा। निस्संदेह भारत सरकार उन 'खतरों' से परिचित है। हाल में भारत में कुछ ऐसे स्वर सुनाई दिए थे, जिनके मुताबिक भारत को पाक की 'कुछ' मदद कर देनी चाहिए। ऐसे 'आग्रह' में मानवता का दृष्टिकोण रहा होगा, लेकिन वे लोग 'आतंकवाद' की हकीकत को ध्यान में रखते हुए परिदृश्य को देखेंगे तो ऐसा आग्रह कभी नहीं करेंगे।
अगर भारत सरकार पाकिस्तान के हालात पर तरस खाकर गेहूं और डॉलर भेज दे तो वहां इस मदद का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होगा। हो सकता है कि गेहूं की मात्रा का काफी हिस्सा जनता तक पहुंच जाए, चूंकि इन दिनों उसमें काफी आक्रोश है, लेकिन डॉलर का इस्तेमाल आतंकवाद को परवान चढ़ाने पर किया जाएगा। इसका एक हिस्सा तो रावलपिंडी के भ्रष्ट जनरल, ब्रिगेडियर आदि ले उड़ेंगे। एक हिस्सा आतंकवादियों के प्रशिक्षण, हथियार, विस्फोटक, घुसपैठ आदि पर खर्च कर दिया जाएगा। फिर जो कुछ बचेगा, उससे जनता के हिस्से में चवन्नी-अठन्नी आएगी।
कुल मिलाकर नतीजा यह होगा कि पाकिस्तानी हमारा गेहूं खाकर और हमारे डॉलर लेकर हमारे ही देश का नुकसान करने के मंसूबे बनाएंगे, इसलिए पाक की दुर्दशा देखकर 'द्रवित' होने वाले लोगों को पूरी तस्वीर समझनी चाहिए। यह भी न भूलें कि अतीत में भारत ने जब-जब पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया, हमें धोखा ही मिला। अगर अब हाथ बढ़ाएंगे तो पूरी आशंका है कि धोखे के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। निस्संदेह भारत तो चाहता है कि हर देश के साथ उसके संबंध मधुर हों।
जहां तक पाकिस्तान के साथ संबंधों का सवाल है तो अब गेंद उसके पाले में है। उसे अपनी कथनी और करनी से साबित करना होगा कि उसकी नीयत में खोट नहीं है। पिछले दिनों पाक फौज के पूर्व डीजी आईएसपीआर का बयान चर्चा में था, जिन्होंने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की दुर्गति देखकर भारत के साथ संबंधों को बहाल करने की वकालत की थी। इस पर भारत में कुछ 'बुद्धिजीवी' हर्षित हो उठे थे।
वास्तव में आज संबंध सुधारना पाकिस्तान की मजबूरी है, भारत की नहीं है। पाक के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने जिस तरह अपने मुल्क की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया, उसे वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी सुधारने में विफल हो गए हैं।
ऐसी सूरत में पाकिस्तान खुद को मजबूत करने के लिए थोड़ी मोहल्लत चाहता है, ताकि खजाने में कुछ सिक्के आ जाएं। जैसे ही सिक्के बरसेंगे, वह आतंकवाद की आग जोर-शोर से भड़काना शुरू कर देगा। इसलिए पाक की ओर से ऐसे नरम-नरम बयान आ रहे हैं, जिन पर हमें पिघलने की नहीं, सावधान रहने की जरूरत है।