निडर योद्धा बनाएं

निस्संदेह पढ़ाई-लिखाई और परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन बहुत जरूरी है

हमें अपनी परीक्षा प्रणाली में कुछ बड़े सुधार करने होंगे

हमारे देश में बोर्ड परीक्षाओं और प्रवेश परीक्षाओं को जीवन-मरण का प्रश्न बना दिया गया है, जिसकी वजह से कुछ विद्यार्थी इतने दबाव में आ जाते हैं कि वे खौफनाक कदम उठा लेते हैं। राजस्थान के दौसा जिले में 10वीं कक्षा की एक छात्रा, जो पढ़ाई में बहुत अच्छी थी, उसने इस वजह से आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे लगता था कि वह 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक नहीं ला सकती। 

इसी महीने राज्य में बोर्ड परीक्षाएं होने वाली हैं। कई बच्चे तनाव में हैं। होनहार विद्यार्थियों से उनके माता-पिता, स्कूल, सहपाठियों, पड़ोसियों, मोहल्लेवालों, रिश्तेदारों को बड़ी उम्मीदें होती हैं। प्राय: यह देखा जाता है कि किसी कारणवश बच्चा उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया या परीक्षा से पहले ही उसका आत्मविश्वास डगमगा गया तो वह ग़लत कदम उठा लेता है। यह बहुत ही दु:खद और चिंताजनक विषय है, जिस पर सरकारों, स्कूलों, अभिभावकों और सर्वसमाज को ध्यान देना होगा। 

निस्संदेह पढ़ाई-लिखाई और परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन बहुत जरूरी है, लेकिन इसकी कीमत किसी विद्यार्थी की जान से बढ़कर नहीं हो सकती। हमें अपनी परीक्षा प्रणाली में कुछ बड़े सुधार करने होंगे। विद्यार्थियों के दिमाग पर इतना ज्यादा बोझ लादना ठीक नहीं है। निस्संदेह उन्हें अच्छे से अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित किया जाए, लेकिन साथ ही यह भी बताया जाए कि अगर इससे कम अंक आ गए तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप अयोग्य हैं तथा जीवन में कुछ नहीं कर सकते। 

दुनिया में कितने ही बड़े योद्धा, राजनेता, वैज्ञानिक, उद्योगपति, दार्शनिक, लेखक, शिक्षक, अधिकारी आदि हुए हैं, जिन्हें किसी न किसी परीक्षा में कम अंक मिले थे। कुछ तो फेल भी हो गए थे।

शुरुआती पढ़ाई के दिनों में अल्बर्ट आइंस्टीन को कम अक्लवाला बता दिया गया था, लेकिन वे प्रख्यात वैज्ञानिक बने। महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन गणित के अलावा सभी विषयों में फेल हो गए थे। आज उनके सिद्धांतों पर विश्वविद्यालयों में शोध हो रहा है। 

हमारी शिक्षा प्रणाली में एक दोष यह आ गया है कि हम विद्यार्थियों को सिर्फ जीतना सिखा रहे हैं। हम शीर्ष पर आने वालों का तो सम्मान करते हैं, लेकिन जो किसी कारणवश वहां तक नहीं पहुंच सके, उनका हौसला नहीं बढ़ा रहे हैं। अगर उन्हें भी हिम्मत दें तो वे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। बच्चा जीतकर आए तो उसकी खुशी जरूर मनाएं, लेकिन अगर वह हारकर आए तो उसका मनोबल न तोड़ें, बल्कि उसे सहजता से स्वीकार करना, उसका भी आनंद लेना सिखाएं। 

कई बार हार इतनी बड़ी सीख दे जाती है, जो जीत नहीं दे सकती। जीतने वाले प्रतिभाशाली होते हैं, लेकिन हारने वाले भी प्रतिभाशाली होते हैं। बस जरूरत इस बात की है कि उनके साथ मजबूती से खड़े रहें, उन्हें हार के अहसास से ज्यादा इस बात का बोध कराएं कि अब आपके पास ज्यादा अनुभव और ज्यादा ज्ञान प्राप्त करने का अवसर है, जो जीवन में ज्यादा लाभ और ज्यादा उन्नति दे सकता है। 

प्राय: घरों के माहौल से भी कुछ बच्चों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है। उदाहरण के लिए, दो योद्धा हैं, जिन्हें रणभूमि में उपस्थित होने के लिए बुलावा आ गया। पहला योद्धा अपने परिवार से मिला तो उससे कहा गया, 'तुम्हारे सिवा हमारा कोई नहीं है ... अगर तुम्हें कुछ हो गया तो हमारा खर्च कैसे चलेगा ... राशन कौन लाएगा ... पक्का घर कौन बनवाएगा?' 

वहीं, दूसरे योद्धा से उसके परिजन ने कहा, 'हमारी चिंता बिल्कुल मत करो, रणभूमि में निडर होकर लड़ो। हमें तुम पर गर्व है।' स्वाभाविक रूप से दूसरा योद्धा पूर्ण मनोयोग से लड़ेगा और उसके विजेता होने की संभावना ज्यादा होगी। बच्चों को इसी तरह निडर योद्धा बनाएं, उन पर अपनी उम्मीदों का अत्यधिक बोझ न डालें। अगर बच्चा पूर्ण मनोयोग से अपनी क्षमता का उपयोग करेगा तो जीवन में जरूर विजेता बनेगा।

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