पाकिस्तान ने कश्मीर की कथित आज़ादी के नाम पर अपनी जनता के मन में भारत के प्रति नफरत का जो जहर घोला था, वह उसे बहुत ज्यादा महंगा पड़ता जा रहा है। पाक का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो फौज और आईएसआई की कठपुतली है, इसलिए वह खुलकर लिखने-बोलने से परहेज करता है, लेकिन इन दिनों वहां सोशल मीडिया पर जिस तरह 'जनता के पत्रकारों' का उदय हो रहा है, वह इस पड़ोसी देश के हुक्मरानों के झूठ की पोल खोलने में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है।
नौजवान पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले ये 'पत्रकार' यूट्यूब के जरिए पाक की आम अवाम का ध्यान खूब आकर्षित कर रहे हैं, असल मुद्दों को उठा रहे हैं। यह सच है कि पाकिस्तान की आम जनता के मन में भी भारत, खासतौर से हिंदू समाज के प्रति कई ग़लतफ़हमियां षड्यंत्रपूर्वक डाली गई हैं, लेकिन अब लोग पाक के पाखंड की पोल खुलती देख रहे हैं। सोशल मीडिया के दौर में चीज़ों को बहुत दिनों तक छुपाकर रखना संभव नहीं है।
पाकिस्तान ने पीओके में जिस तरह तबाही मचाई है, अब उससे लोगों को हकीकत मालूम होने लगी है। वे खुलकर बात करने लगे हैं कि कश्मीर की कथित आज़ादी के नाम पर उनके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। रावलपिंडी के शातिर जनरल आम जनता के बच्चों को तो आतंकवादी बनाकर एलओसी की ओर धकेलते रहे, लेकिन अपने बच्चों को लंदन, न्यूयॉर्क, दुबई ... बसाने में कामयाब रहे। इन दिनों पाकिस्तान में महंगाई का जो तूफान आया हुआ है, उसके बाद लोग पछता रहे हैं कि काश साल 1947 में बंटवारा न हुआ होता तो इतनी महंगाई बिल्कुल नहीं होती, वे अखंड भारत में सुख से रहते।
भारत में बहुत लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि पीओके में ऐसी भी आवाजें उठ रही हैं कि 'हमें वापस भारत जाना है।' पाक सरकार की बदइंतजामी का यह हाल है कि पीओके में लोगों को आटा, सब्जी, दवाइयां जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। जिन्हें मिल रही हैं, वे दोगुनी-चौगुनी कीमत चुका रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि यह तो एक झलक है, हालात अभी और बिगड़ेंगे। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। चीन, सऊदी अरब और अमेरिका से जो थोड़ी-सी मदद मिल जाती है, उससे कुछ हफ्ते गुजारा चल जाता है। उसके बाद पाक सरकार फिर 'हाथ फैलाकर' अपने 'मिशन' पर निकल पड़ती है। पीओके के लोग यह सब गौर से देख रहे हैं। उनकी आंखों के सामने वे सपने धूमिल हो रहे हैं, जो उन्हें दिखाए गए थे।
उन्हें सोशल मीडिया के जरिए पता चल रहा है कि जिस भारत को उनके यहां दुश्मन बताया जाता है, स्कूली किताबों से ही नफरत का पाठ सिखाया जाता है, वह असल में वैसा नहीं है। भारत में तुलनात्मक रूप से आटा, सब्जी, रोजमर्रा की चीजों, दवाइयों आदि की कीमतें बहुत कम हैं। भारत ने तुकिये भूकंप पीड़ितों की जिस तरह मदद की, उससे भी पाकिस्तानी सोचने को मजबूर हैं। पीओके में महंगाई इतनी बढ़ गई है कि सरकारी शिक्षकों का भी गुजारा नहीं हो रहा है। मजदूरों के पास काम नहीं है, क्योंकि निर्माण सामग्री इतनी महंगी हो गई है कि औद्योगिक गतिविधियां बंद होती जा रही हैं।
वहीं, आतंकवाद की आग ने कहर बरपा रखा है। सोमवार को एक आत्मघाती धमाके में नौ लोग मारे गए, जिनमें आठ पुलिसकर्मी थे। कुछ घायलों की स्थिति गंभीर होने से आंकड़ा बढ़ भी सकता है। पेशावर, कराची, इस्लामाबाद जैसे बड़े शहरों में आतंकवादी बेखौफ होकर धमाके कर रहे हैं। सरकार गायब है, शेखी बघारने वाली फौज और आईएसआई समझ नहीं पा रही हैं कि करें तो क्या करें।
महंगाई से परेशान जनता के लिए आतंकवाद की यह लहर दोहरी चोट है, क्योंकि दोनों में नुकसान उसका ही है। उधर, इमरान ख़ान राजनीति को जिस निचले दर्जे पर ले गए हैं, उससे जनता को भविष्य में किसी भी तरह की राहत मिलने की संभावना धूमिल हो गई है। वे प्रधानमंत्री बन भी गए तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आना बहुत मुश्किल होगा। उससे पहले ही पाकिस्तानी जनता की आंखें खुल जाएं तो बेहतर है, वरना बहुत देर हो जाएगी।