पाकिस्तान के पंजाब विश्वविद्यालय परिसर में शांतिपूर्वक होली मना रहे हिंदू छात्रों पर कट्टरपंथी संगठन आईजेटी का हमला निंदनीय है। इस पड़ोसी देश में पंजाब विश्वविद्यालय खास पहचान रखता है। यहां से पढ़े हुए लोग सरकार, सेना, प्रशासन से लेकर हर क्षेत्र में उच्च पदों तक पहुंचे हैं। कुछ हैरान करने वाली बात है कि यह घटना लॉ कॉलेज में हुई।
जिस कट्टरपंथी संगठन के सदस्यों ने हमला किया, वे 'कानून' की पढ़ाई कर रहे हैं। स्वाभाविक है कि इनमें से ही आगे चलकर पाकिस्तान के वकील और न्यायाधीश बनेंगे। सवाल है- ऐसे छात्रों से समानता और न्याय की क्या उम्मीद की जाए, जो अपने अल्पसंख्यक सहपाठियों को उनका त्योहार तक नहीं मनाने देते? यूं भी पाकिस्तान में हिंदू थोड़े-से बचे हैं।
लॉ कॉलेज के करीब 30 हिंदू छात्र होली मनाने के लिए इकट्ठे हुए, जिसकी उन्होंने प्रशासन से अनुमति ली थी, लेकिन कट्टरपंथियों को यह भी बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने हिंदू छात्रों पर पत्थर फेंके और पिटाई की। यह बहुत शर्मनाक है। अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर भारत को उपदेश देने वाला पाकिस्तान अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकता?
भारत में तो हर नागरिक, चाहे वह बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक, को अपने त्योहार मनाने के समान अधिकार हैं। इसके लिए प्रशासन बिना किसी भेदभाव के पूरा सहयोग करता है। विभिन्न समुदायों के लोग त्योहारों पर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। यहां होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस ... सभी पर्व मिलकर मनाए जाते हैं। हमने होली पर मिठाइयां बांटीं, रंग लगाए; जबकि पाकिस्तानियों ने पत्थर फेंके।
यह स्पष्ट रूप से 'परवरिश' का नतीजा है। भारतवासियों की परवरिश सर्वधर्म समभाव के माहौल में होती है, जबकि पाकिस्तानियों को स्कूली दिनों से ही दूसरों से नफरत करना सिखा दिया जाता है। लॉ कॉलेज में जो कुछ हुआ, वह उसी की अभिव्यक्ति थी।
उन हिंदू छात्रों को कट्टरपंथियों ने तो पीटा ही, जब इसका विरोध करने के लिए कुलपति कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया गया तो उन्हें सुरक्षाकर्मियों ने भी पीटा। पाक में अल्पसंख्यकों के हालात कितने खराब हैं, यह इसकी एक झलक है, जो सोशल मीडिया पर आ गई। ऐसे कितने ही मामले हैं, जो सामने नहीं आते।
वहां न केवल हिंदू, बल्कि सिक्ख और ईसाई समुदाय पर भी बहुत जुल्म किए जा रहे हैं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आए दिन उनकी बेटियों का अपहरण कर दुष्कर्म, फिर जबरन धर्मांतरण करा दिया जाता है। थाने से लेकर अदालत तक कहीं न्याय नहीं मिलता। मिलेगा भी कैसे, उनमें बैठे लोगों की मानसिकता भी अल्पसंख्यक-विरोधी है।
पंजाब विश्वविद्यालय के प्रवक्ता खुर्रम शहजाद का बयान और भी शर्मनाक है। वे कहते हैं, 'अगर समारोह कमरे के अंदर मनाया जाता तो कोई समस्या नहीं होती।' यानी अब पाक में हिंदुओं को अपने त्योहार कमरे के अंदर मनाने होंगे! यह कितना भेदभावपूर्ण रवैया है!
जब ये पाकिस्तानी पश्चिमी देशों में जाते हैं तो वहां ख़ुद के लिए ज्यादा से ज्यादा अधिकार और आज़ादी मांगते हैं। ये उनकी शासन प्रणाली से कभी संतुष्ट नहीं होते और पूरी सुविधाओं का उपभोग करके भी हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है! वहां ये आरोप लगाते हैं कि हमारी आवाज़ दबाई जा रही है, हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है, जबकि सबसे ज्यादा आज़ादी का इस्तेमाल ये ही करते हैं।
दूसरी ओर, ये खुद के देश में अल्पसंख्यकों के साथ बहुत बुरा सलूक करते हैं। वहां सबसे पहले अल्पसंख्यकों से अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनते हैं और उन्हें शांतिपूर्वक त्योहार भी नहीं मनाने देते। अगर लोग आपस में प्रेम व भाईचारे के रंग लगाते हैं, तो ये उन पर पत्थर बरसाते हैं। इतना सब करने के बाद भारत को मानवाधिकारों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर उपदेश देते हैं! यह तो साफ-साफ पाखंड है।
भारत सरकार और भारतवासियों को चाहिए कि पाकिस्तान के इस पाखंड को दुनिया के सामने जोर-शोर से उजागर करें, उसका कच्चा चिट्ठा खोलें। उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाएं। पाक में जो अल्पसंख्यक सुरक्षा संबंधी गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं, उन्हें मानवता के आधार पर भारत की नागरिकता दी जाए। भारत में किसी को भी इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।