एशियाई देशों में सरकारों के तमाम दावों के बावजूद प्रदूषण को लेकर स्थिति अच्छी नहीं है। हवा में प्रदूषण की जांच करने वाली स्विस एजेंसी आईक्यू एयर ने अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उस पर सरकारों और नागरिकों को ध्यान देना चाहिए। चिंताजनक बात यह है कि हमारे देश के कई शहर 'प्रदूषित शहरों' की सूची में हैं। अगर इस सूची को ध्यान से देखें तो शीर्ष 20 शहरों में से दर्जनभर तो भारत के ही हैं।
निस्संदेह यह आंकड़ा भविष्य के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर प्रदूषण इसी तेजी से बढ़ता रहा तो एक दशक बाद हमारे शहरों की क्या स्थिति होगी? भिवाड़ी, दिल्ली, दरभंगा, आसोपुर, पटना, गाजियाबाद, देहरादून, छपरा, मुजफ्फरनगर, ग्रेटर नोएडा, बहादुरगढ़, फरीदाबाद, मुजफ्फरपुर, नोएडा जैसे शहरों में प्रदूषण ज्यादा पाया गया है।
सूची में आगे बढ़ने पर भारत के और शहरों के नाम मिलते हैं। आखिर क्या वजह है कि धरती, प्रकृति और पर्यावरण की पूजा करने वाले देश में वायु प्रदूषण इस कदर पांव पसार चुका है? कहने को तो कह दिया जाता है कि पर्यावरण का ध्यान रखना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन हमें इसका दूसरा पहलू भी देखना होगा। यह जनता की भी जिम्मेदारी है। हम दोनों ही अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाए हैं।
पिछली सदी में पेड़ों के अंधाधुंध कटाव के बाद पौधे लगाने को लेकर जागरूकता के नारों के बीच काम तो हुआ, लेकिन उम्मीद से कम। वहीं, उदारीकरण के शोर में लोगों की जीवनशैली बदलती गई। उनके दिमाग में यह बात बैठा दी गई कि अगर आपके घर में यह 'सामान' नहीं है तो आपका सामाजिक रुतबा कमतर है। ऐसे में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने के बावजूद धरातल पर अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं हुआ।
प्राय: अब एक ही घर में चार-चार एसी, तीन-तीन गाड़ियां मिल जाती हैं, लेकिन (परिजन द्वारा लगाया हुआ) छायादार या फलदार पेड़ बमुश्किल मिलता है। सरकारों ने सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित नहीं किया, सुविधाएं नाममात्र की बढ़ाईं। आज गर्मियों में कोई व्यक्ति सुबह-सवेरे दफ्तर के लिए निकले और सार्वजनिक परिवहन सेवा का उपयोग करे तो गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते हालत खराब हो जाती है। वह पसीने से लथपथ होकर कार्यस्थल तक पहुंचता है तो ऐसा महसूस करता है कि उसने कोई जंग जीत ली हो।
आर्थिक रूप से कमजोर व मध्यम वर्ग के लिए सार्वजनिक परिवहन मजबूरी ही है। अगर उनमें से कोई अपना वाहन खरीदने में सक्षम होता है तो जरूर खरीद लेता है। यह भी सच है कि वायु प्रदूषण सिर्फ वाहनों के धुएं से नहीं फैलता। इसके मूल में कई कारण हैं। उन सबका उचित हल ढूंढ़ना होगा। धरती को हरी-भरी बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने होंगे। इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।
संसद की एक समिति ने वायु प्रदूषण में कमी लाने और आयातित पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने का जो सुझाव दिया है, वह प्रासंगिक है। सरकारों को चाहिए कि वे पथकर में छूट देने सहित विभिन्न रियायतों पर विचार करें। इन वाहनों से वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता कम होगी। इससे विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होगा।
वाईएसआर कांग्रेस के विजय साई रेड्डी की अध्यक्षता वाली परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति संबंधी स्थायी समिति की वर्ष 2023-24 की अनुदान की मांगों से जुड़ी इस रिपोर्ट ने जिस देश का उदाहरण दिया है, उसके बारे में सरकारों और नागरिकों, दोनों को अध्ययन करना चाहिए। नॉर्वे ने पेट्रो उत्पादों पर निर्भरता कम करने के लिए प्रोत्साहन की नीति अपनाई थी। इसके तहत इलेक्ट्रिक वाहन चालकों को पथकर, टोल प्लाजा आदि में छूट सहित कई रियायतें दी गईं। देखते ही देखते पूरे नॉर्वे ने इसे अपना लिया।
अगर भारत में भी सरकारें इन्हें बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त प्रयास करें तो देशवासी बड़े स्तर पर इन वाहनों को अपनाएंगे और प्रदूषण की समस्या के प्रभावी समाधान में उल्लेखनीय भूमिका निभाएंगे।