मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित पटेल नगर में बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में हुआ हादसा अत्यंत दुःखद है। रामनवमी पर श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठान में व्यस्त थे कि अचानक बावड़ी की छत धंस गई। अब तक दर्जनभर लोगों की जान चली गई है। किसी ने सोचा भी नहीं था कि आनंद के रंग में ऐसा भंग पड़ेगा।
देश में हर साल धार्मिक आयोजनों में हादसे हो रहे हैं। क्या वजह है कि हम इन्हें टालने के लिए कोई ठोस पहल नहीं कर पा रहे? निस्संदेह इन आयोजनों की सुरक्षा का बहुत बड़ा दायित्व प्रशासन पर है, लेकिन आयोजनकर्ताओं और श्रद्धालुओं की भी बड़ी जिम्मेदारी है। सबके सहयोग से ही ये आयोजन बिना किसी बाधा के संपन्न होंगे।
अगर कहीं भी कमी रह गई तो हादसे होते रहेंगे, मुआवजे बंटते रहेंगे और जांचें चलती रहेंगी। इससे उन परिवारों के नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती, जिन्होंने अपनों को खोया है। इसलिए जरूरत तो इस बात की है कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक आयोजन से पहले सुरक्षा संबंधी स्पष्ट मापदंड बनाए जाएं। उनका कड़ाई से पालन हो।
प्रायः हर साल ऐसी ख़बरें आती हैं कि दर्शन के लिए कतार में खड़े श्रद्धालुओं में भगदड़ मच गई, प्रसाद के लिए लोगों में धक्का-मुक्की हो गई, धार्मिक जुलूस में आवारा पशु घुस आया तो कई लोग घायल हो गए, बिजली के नंगे तारों से श्रद्धालुओं को करंट लग गया, धार्मिक स्थल की पुरानी इमारत का हिस्सा ढह गया ...। निस्संदेह देशवासियों में धर्म के प्रति श्रद्धा बहुत ज्यादा है। ऐसे किसी भी आयोजन में लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, यथासंभव सहयोग करते हैं। यह प्रशंसनीय है।
धार्मिक आयोजनों से लोगों में सद्भाव और एकता की भावना बढ़ती है। प्रायः कई सामाजिक कार्यों के लिए लोग समय नहीं निकाल पाते, लेकिन अपने आराध्य के नाम पर वे उसी कार्य के लिए समय, श्रम और संसाधन देने के लिए सहर्ष तैयार हो जाते हैं। देश में कई बड़े ब्लड बैंक, अस्पताल, औषधालय, जलाशय, विद्यालय, भोजनालय और विभिन्न संस्थान धर्म के बल से भलीभांति संचालित हो रहे हैं। लिहाजा धर्म तो हमारे देश की बहुत बड़ी शक्ति है।
देश में अनेक प्राचीन तीर्थ हैं, जहां दशकों व सदियों पुराने धार्मिक स्थल हैं। उन सबका समय-समय पर स्थानीय स्तर पर विशेषज्ञों द्वारा बारीकी से निरीक्षण कर ‘जोखिम’ का आकलन किया जाए। जहां मेले और बड़े धार्मिक आयोजन होते हैं, वहां तो अनिवार्य रूप से सुरक्षा संबंधी नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए। जो इमारतें बहुत पुरानी हैं, उनका समयानुसार सर्वे हो और विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझावों पर तुरंत अमल होना चाहिए। खासतौर से आयोजनकर्ताओं को चाहिए कि वे कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के साथ जोखिम का आकलन जरूर करें।
भीड़ नियंत्रण तो इसका महत्त्वपूर्ण हिस्सा है ही; किसी भी दुर्घटना को टालने के लिए पहले ही सावधानी के उपाय कर लेना जरूरी है। प्रायः लोगों की यह सोच होती है कि पूर्व में कोई हादसा नहीं हुआ तो भविष्य में नहीं होगा। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं कि जब किसी आयोजन में मामूली-सी घटना बड़े हादसे की वजह बन गई।
साल 2018 में पंजाब के अमृतसर में लोग दशहरे पर रावण दहन देखते-देखते यह भी भूल गए कि वे पटरियों पर खड़े हैं। जब ट्रेन आई तो वह भीड़ को काटती हुई निकल गई। करीब पांच दर्जन लोग मारे गए थे। अगर आयोजनकर्ता और दर्शक पहले ही सावधानी बरत लेते तो हादसा नहीं होता। ऐसी घटनाओं को टालने के लिए तकनीक की मदद ली जानी चाहिए।
देश में धार्मिक व सामाजिक आयोजन से जुड़े हादसों का अध्ययन कर सुरक्षा संबंधी नियमावली तैयार की जाए और भविष्य में हर आयोजन के दौरान उसका (आयोजनकर्ता व जनता द्वारा) अनिवार्य रूप से पालन किया जाए। वह सोशल मीडिया पर प्रकाशित की जाए, ताकि अगर कहीं असावधानी बरती जा रही है तो जनता उसकी ओर ध्यान दिलाए। श्रद्धा के साथ सजगता से ही हर आयोजन आनंदपूर्वक संपन्न होगा।