पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का यह दावा अविश्वसनीय और हास्यास्पद है कि ‘तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने उन पर भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करने का दबाव बनाया था।’ बड़ा सवाल है- पाकिस्तानी फौज की नीति है कि वह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे, तो उसका प्रमुख मैत्रीपूर्ण संबंधों की बात कैसे कर सकता है?
इस पड़ोसी मुल्क के जवान से लेकर सेना प्रमुख तक की रोटी भारत के लिए नफरत की आंच पर पक रही है। भला, वे क्यों चाहेंगे कि उनका चूल्हा ठंडा पड़े? अगर पाकिस्तानी फौज ने आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद कर दिया, भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध कायम कर लिए तो वहां की जनता सबसे पहला सवाल यही करेगी कि अब रावलपिंडी के इन जनरलों की क्या जरूरत है, जो दिनभर सेना मुख्यालय में बैठे कुर्सी तोड़ते हैं, मुफ्त की कॉफी पीते हैं और शाम को गोल्फ खेलकर महीने की पहली तारीख को मोटी तनख्वाह लेते हैं?
जनता यह भी पूछेगी कि अब इतनी लंबी-चौड़ी फौज की क्या जरूरत है, चूंकि हमें तो किसी से युद्ध करना नहीं है? तो इनके खर्चों में कटौती की जाए, जरूरत से ज्यादा सिपाही, लेफ्टिनेंट, कैप्टन, मेजर, कर्नल, ब्रिगेडियर और ले. जनरलों को विदाई देकर घर भेजा जाए! पाकिस्तानी फौज के अधिकारियों को यह बात भलीभांति मालूम है कि उनका रुतबा, दबदबा और मौज-मस्ती तब तक ही है, जब तक कि भारत से दुश्मनी रखी जाए। इसलिए वे आतंकवादी तैयार करते हैं, उन्हें एलओसी की ओर धकेलते हैं।
पाकिस्तान की जनता के मन में भारत के प्रति इस कदर नफरत भर दी गई है कि वह इमरान के उक्त दावे को भी सच मान लेगी। इमरान चाहते हैं कि वे जनता से न केवल सहानुभूति पाएं, बल्कि पाकिस्तान का एकमात्र हितैषी नजर आएं। जब अगस्त 2019 में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधानों को निरस्त किया था तो इमरान ने उसे सुनहरे मौके की तरह भुनाने की कोशिश की थी।
हालांकि इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी। उन्होंने भारी हंगामा किया और इस मामले को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों से खूब राग अलापा, लेकिन भारत ने उसे कोई महत्त्व नहीं दिया। इमरान चाहते हैं कि उस मुद्दे को दोबारा ज़िंदा किया जाए, लगे हाथ उससे भी वोटों का जुगाड़ कर लिया जाए। इमरान यह भी कहते रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत के साथ केवल तब शांति वार्ता करनी चाहिए, जब नई दिल्ली जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करे।
पाकिस्तान के (पूर्व) प्रधानमंत्री हों या सेना प्रमुख, किसी ने भी जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को नहीं माना था। अब जबकि भारत सरकार ने कानूनी तरीके से उसे हटा दिया तो वे क्यों आपत्ति करते हैं? भारत के पास संप्रभुता है। भारत सरकार राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में कोई फैसला लेती है तो उसे यहां उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन पाकिस्तानी हुक्मरानों की छटपटाहट बताती है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर की सुख-शांति पसंद नहीं है। उनके खुद के मुल्क में आतंकवाद की आग लगी हुई है और वे यही दुनियाभर में लगाना चाहते हैं।
पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में तो महंगाई के कारण हालात इतने बिगड़ गए हैं कि स्थानीय लोग भारत में विलय के लिए लामबंद होने लगे हैं। उन्हें कश्मीर की जिस झूठी आज़ादी के सब्ज-बाग दिखाए गए थे, उसका पर्दाफाश हो गया है। उन्हें समझ में आने लगा है कि पीओके तो ग़ुलाम है।
असली आज़ादी जम्मू-कश्मीर के पास है, जहां अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधान हटने के बाद आम लोगों को समान अधिकार मिलने लगे हैं। यहां पाकिस्तान की तुलना में महंगाई अत्यधिक नियंत्रण में है। इसलिए इमरान खान जम्मू-कश्मीर की चिंता छोड़ें। वे अपने सेना प्रमुख को सुझाव दें कि आतंकवाद से तौबा कर लें। जब तक आतंकवाद रहेगा, पाकिस्तान यूं ही तबाही के गोते खाता रहेगा।