राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की ‘चुप्पी’ तूफान से पहले की शांति लग रही थी और आखिरकार ‘तूफान’ आ ही गया! साल 2020 में बागी रुख अपनाने के बाद कांग्रेस ने पायलट को हाशिए की ओर धकेल दिया था। उनका कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का पद तो गया ही, उपमुख्यमंत्री की कुर्सी भी चली गई थी।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पायलट को खूब आड़े हाथों लिया और गाहे-बगाहे उन पर बेहद तीखी टिप्पणियां भी करते रहे। अब पायलट कह रहे हैं कि वे पूर्ववर्ती भाजपा सरकार और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के कथित भ्रष्टाचार के मामलों की राजस्थान सरकार द्वारा जांच नहीं कराए जाने के विरोध में एक दिन का अनशन करेंगे।
वास्तव में पायलट ने कांग्रेस आलाकमान, गहलोत और उनके समर्थक गुट को चुनौती दे दी है कि चुनावी साल में उनकी अनदेखी की गई तो आगे डगर कठिन है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने में करीब आठ महीने बाकी हैं। यहां कांग्रेस में गुटबाजी हावी है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता यह स्वीकार करते हैं कि इसके पीछे तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की मेहनत भी थी, लेकिन उन्हें इसका ‘फल’ नहीं मिला और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी से ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस ने गहलोत को सरकार की कमान सौंप दी, जिससे पायलट समर्थकों को मायूसी हाथ लगी। धीरे-धीरे दोनों नेताओं के बीच तल्खियां सामने आने लगीं और जुलाई 2020 में पायलट की बगावत से गहलोत सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे थे। राजस्थान में कई दिनों तक चले सियासी नाटक के बाद पायलट और उनके समर्थक विधायकों को आलाकमान का ‘कोप’ भुगतना पड़ा था।
अब पायलट पिछला ‘हिसाब’ चुकता करना चाहते हैं। उन्होंने आरोप तो पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर लगाए हैं, लेकिन निशाने पर गहलोत ही हैं। पायलट काफी समय से गहलोत के शब्दबाण सहन करते रहे हैं। उनके लिए गहलोत ने जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया, उससे गहलोत-समर्थक भी हैरान थे।
आमतौर पर गहलोत विपक्षी नेताओं के लिए इतने तीखे बोल नहीं बोलते, जो उन्होंने पायलट के लिए बोले थे। वहीं, पायलट यह सब ‘चुपचाप’ सुनते रहे। कभी-कभार प्रतिक्रिया दी तो ‘विनम्र’ ही दिखते रहे, लेकिन अब प्रतीत होता है कि वे ‘आर-पार’ की ठान चुके हैं। पायलट के इस कदम से एक बार फिर कांग्रेस की फूट खुलकर सामने आएगी, नेताओं में जुबानी जंग तेज होगी। चुनावी साल होने के कारण कांग्रेस आलाकमान कोई ‘कठोर’ कार्रवाई करने से पहले फूंक-फूंककर कदम रखेगी, क्योंकि कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका पायलट से सहानुभूति रखता है।
अगर यह फूट बढ़ी तो उसका सीधा असर कांग्रेस के मत प्रतिशत पर पड़ सकता है। यह अनशन पायलट के लिए ‘शक्ति प्रदर्शन’ भी है। अगर इस दौरान बड़ी संख्या में विधायक उनके पक्ष में आए और कार्यकर्ताओं, जनता का भरपूर समर्थन मिला तो पायलट कांग्रेस नेतृत्व को यह संदेश देने में सफल हो जाएंगे कि मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वाधिक उपयुक्त उम्मीदवार वे ही हैं। अब देखना यह होगा कि गुटबाजी की इस रार से कांग्रेस कैसे उबरेगी।
निस्संदेह आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए गहलोत और पायलट, दोनों में से किसी की भी नाराजगी महंगी पड़ सकती है। कांग्रेस पहले ही कई चुनौतियों से जूझ रही है। इसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा सदस्यता गंवा चुके हैं। अब राजस्थान में सियासी घमासान का पिटारा दोबारा खुलने से पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की नेतृत्व क्षमता की भी आजमाइश होगी।