मानहानि मामले में राहुल की याचिका पर सुनवाई के दौरान वकील ने क्या तर्क दिया?

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आरपी मोगेरा की अदालत में दोनों पक्षों नेदलीलें पेश करनी शुरू कीं

गांधी की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील आरएस चीमा ने न्यायाधीश से कहा कि सुनवाई ‘निष्पक्ष’ नहीं हुई

सूरत/भाषा। राहुल गांधी के वकील ने गुजरात में सूरत की एक अदालत में बृहस्पतिवार को दलील दी कि ‘मोदी उपनाम’ संबंधी टिप्पणी को लेकर कांग्रेस नेता के खिलाफ दर्ज मानहानि के मुकदमे में सुनवाई ‘निष्पक्ष नहीं’ थी और इस मामले में अधिकतम सजा दिए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

मानहानि मामले में गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान वकील ने यह तर्क दिया।

सूरत में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की एक अदालत ने 13 अप्रैल, 2019 को एक चुनावी रैली में की गई ‘मोदी उपनाम’ संबंधी टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि के मामले में उन्हें 23 मार्च को दोषी ठहराते हुए दो वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी। राहुल ने चुनावी रैली में कहा था, ‘सभी चोरों का समान उपमान मोदी ही कैसे है?’

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक एवं शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी ने इसी अदालत में पहले दाखिल किए गए अपने जवाब में राहुल गांधी की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि कांग्रेस नेता ‘बार-बार अपराध’ करते हैं और उन्हें अपमानजनक बयान देने की आदत है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आर पी मोगेरा की अदालत में दोनों पक्षों ने बृहस्पतिवार को दलीलें पेश करनी शुरू कीं।

गांधी की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील आरएस चीमा ने न्यायाधीश से कहा कि सुनवाई ‘निष्पक्ष’ नहीं हुई।

उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट का आदेश ‘अजीब’ है, क्योंकि निचली अदालत के न्यायाधीश ने ‘रिकॉर्ड में उपलब्ध सभी सबूतों का घालमेल’ कर दिया।

चीमा ने गांधी की ओर से कहा, ‘यह निष्पक्ष सुनवाई नहीं थी। पूरा मामला इलेक्ट्रॉनिक सबूत पर आधारित है, जिसमें मैंने चुनाव के दौरान एक भाषण दिया और 100 किलोमीटर दूर बैठे एक व्यक्ति ने समाचारों में इसे देखने के बाद शिकायत दर्ज कराई...। इस मामले में अधिकतम सजा दिए जाने की आवश्यकता नहीं थी।’

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में गांधी की (राफेल अवमानना मामले में) बिना शर्त माफी को शिकायतकर्ता ने इस मामले के साथ गलत तरीके से जोड़ा।

दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली गांधी की याचिका के खिलाफ दलील देते हुए पूर्णेश मोदी के वकील हर्षित तोलिया ने कहा कि गांधी ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से मोदी उपनाम वाले सभी लोगों को अपमानित करने की कोशिश की थी और इसी लिए उनके मुवक्किल को बुरा लगा।

उन्होंने कहा, ‘जब उन्होंने (गांधी ने) भाषण दिया, उस समय वह दूसरे सबसे बड़े दल के अध्यक्ष थे। उनके भाषण ने भारत के लोगों को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया और उन्होंने अपने भाषण को सनसनीखेज बनाने की भी कोशिश की।’

तोलिया ने कहा, ‘राहुल गांधी ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में बात की, लेकिन वह यहीं नहीं थमे। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘सारे चोरों का नाम मोदी ही क्यों है? ढूंढो और भी मोदी मिलेंगे।’ मेरे मुवक्किल भाषण के इस हिस्से से आहत हुए और इसलिए उन्होंने शिकायत की।’

उन्होंने अदालत को सूचित किया कि गांधी ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इनकार कर दिया था।

तोलिया ने कहा कि गांधी देश में इसी तरह के मानहानि के अन्य मामलों का भी सामना कर रहे हैं और अतीत में (राफेल मामले में) उच्चतम न्यायालय में बिना शर्त माफी मांगने के बावजूद वह इस तरह के अपमानजनक बयान दे रहे हैं।

गांधी अपनी दोषसिद्धि से पहले केरल के वायनाड से सांसद थे। उन्होंने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक रैली को संबोधित करते हुए ‘मोदी उपनाम’ संबंधी टिप्पणी की थी।

गांधी ने यह भाषण कर्नाटक में दिया था, इसके मद्देनजर मामले के क्षेत्राधिकार को लेकर चीमा के तर्क का जवाब देते हुए तोलिया ने कहा कि मजिस्ट्रेट के सामने मुकदमे के दौरान पहले ऐसी कोई आपत्ति नहीं जताई गई थी, लेकिन अब इस मुद्दे को उठाया जा रहा है।

मध्यावकाश के बाद शिकायतकर्ता की ओर से बहस जारी रहेगी। राज्य सरकार को भी अदालत ने इस मामले में पक्षकार बनाया है। वह भी मध्यावकाश के बाद संभवतरू अपनी दलीलें पेश करेगी।

गांधी ने 23 मार्च के फैसले के खिलाफ न्यायाधीश मोगेरा के समक्ष याचिका दायर की है। उन्होंने इस बीच दोषसिद्धि पर रोक लगाए जाने का भी अनुरोध किया है।

याचिका में गांधी ने अपनी सजा को ‘त्रुटिपूर्ण’ और स्पष्ट रूप से अनुचित करार दिया है।

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