महाराष्ट्र के महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा ने उन महिलाओं के लिए ‘गंगा भागीरथी’ शब्द सुझाकर एक नई बहस की शुरुआत कर दी है, जिनके पति की मृत्यु हो गई। कई लोगों ने इस शब्द का स्वागत किया है तो कुछ इसका विरोध भी कर रहे हैं। ऐसे विषयों पर चर्चा होनी चाहिए। आज भी ऐसे कई शब्द प्रचलित हैं, जो बोलने वाले के लिए तो सामान्य हो सकते हैं, लेकिन ये जिसके लिए बोले जाते हैं, वह कहीं-न-कहीं उनके पीछे छुपी ‘चोट’ महसूस करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर ‘विकलांग’ के लिए ‘दिव्यांग’ शब्द प्रचलन में आया और अब सर्वत्र इसका प्रयोग होने लगा है। इससे पहले इन लोगों के लिए ऐसे कुछ और शब्द प्रचलित थे, जो वास्तव में अपमानजनक लग सकते हैं। एक आदर्श समाज की स्थापना के लिए जरूरी है कि समय-समय पर ऐसे शब्दों को जांचा-परखा जाए और संवेदनशीलता दिखाते हुए उनकी जगह सम्मानजनक शब्द लेकर आएं।
हिंदी समेत समस्त भारतीय भाषाओं का शब्द-भंडार व्यापक है, इसलिए शब्दों की कोई कमी नहीं होगी। जिस महिला के पति की मृत्यु हो जाती है, उसके लिए इस दुःख से पार पाना संभव नहीं होता। उसके बाद उसे समाज की ओर से पहचान के तौर पर ‘विधवा’ शब्द दे दिया जाता है। वह जब-जब इस शब्द को पढ़ती-सुनती है, उसे पीड़ा होती है।
क्या समाज का यह दायित्व नहीं कि इस शब्द के पीछे छुपी पीड़ा को ध्यान में रखते हुए कोई सम्मानजनक, गरिमापूर्ण शब्द लेकर आए? जो सैनिक देश के लिए वीरगति को प्राप्त होते हैं, कई बार उनकी पत्नियों के लिए ‘विधवा’ शब्द लिख दिया जाता है, जिससे परहेज करना चाहिए। हालांकि ‘वीरांगना’ और ‘वीर नारी’ जैसे शब्द भी प्रचलन में आ गए हैं, जो सम्मानजनक लगते हैं।
इन्सान को उसकी ‘खूबी’ के बजाय किसी ‘कमी’ के आधार पर संबोधित किया जाता है तो वह गरिमापूर्ण नहीं लगता है। आज भी हर गली-मोहल्ले में एक-दो लोग ऐसे मिल जाएंगे, जिनके असल नाम के बजाय कोई ऐसा नाम ज्यादा प्रचलन में होता है, जिनके माध्यम से उनकी किसी अक्षमता को निशाना बनाया जाता है।
साल 2022 में यूपीएससी परीक्षा का परिणाम आया तो एक सफल महिला अभ्यर्थी की फोटो यह लिखकर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही थी कि वे ‘दृष्टिहीन’ हैं। यह शब्द प्रचलन में है, लेकिन जिसके लिए इस्तेमाल होता है, उसे जरूर तकलीफ पहुंचाता है। ‘हीन’ शब्द कमज़ोरी का अहसास दिलाता है। जो लोग देखने में सक्षम नहीं हैं, उनका हौसला बढ़ाने की जरूरत है, न कि यह बताने की कि ‘आप हीन हैं, कमज़ोर हैं, देख नहीं सकते।’
जो महिला नेत्रज्योति न होने के बावजूद रोज़मर्रा के काम कर सकती है। यहां तक कि यूपीएससी परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सकती है, वह ‘दृष्टिहीन’ नहीं, बल्कि ‘दिव्यदृष्टि से संपन्न’ है। निस्संदेह देश ने समयानुसार गरिमापूर्ण शब्द गढ़े हैं, उनका प्रचलन आम हुआ है। आज़ादी के बाद कई वर्षों तक ऐसे शब्दों का प्रचलन रहा, जिन्हें आज उपयुक्त नहीं माना जा सकता, लेकिन तब वे सामान्य प्रचलन का हिस्सा थे।
इसी तरह आज उन शब्दों पर मंथन होना चाहिए, जिन्हें समाज के कुछ लोगों के लिए उचित नहीं माना जा सकता। हमारी भाषाओं में सरल और सम्मानजनक शब्दों की कोई कमी नहीं है। बस, जरूरत है तो ज्यादा संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण दिखाने की, जिसका समर्थन हमारी संस्कृति करती है और संविधान भी करता है।