साख पर संदेह

केजरीवाल कह रहे हैं कि ‘अगर मैं भ्रष्ट हूं तो दुनिया में कोई ईमानदार नहीं है’

जब से केजरीवाल को सीबीआई ने समन जारी किया है, ‘आप’ की ओर से मोदी सरकार पर हमले तेज हो गए हैं

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल जिन वादों और दावों के साथ राजनीति में आए थे, अब उन पर सवाल उठ रहे हैं। उनकी पार्टी को राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा मिल गया, लेकिन कुछ नेताओं के कारण इसकी साख संदेह के घेरे में आ गई है। 

एक दशक पहले जो केजरीवाल जनसभाओं में कागजों का पुलिंदा लहराते हुए अन्य दलों के नेताओं को उनके ‘भ्रष्टाचार’ को लेकर आड़े हाथों लिया करते थे, अब आबकारी नीति मामले में ‘घोटाले’ की आंच उन तक भी आ पहुंची है। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तो पहले ही तिहाड़ जेल में हैं। अब केजरीवाल से सीबीआई पूछताछ कर रही है। 

केजरीवाल, सिसोदिया और 'आप' नेता इन पूछताछ / कार्रवाइयों के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सिसोदिया तो इसकी तुलना अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए जुल्म से कर रहे हैं। हालांकि कोई स्वतंत्रता सेनानी आबकारी नीति को लेकर जेल गया हो, इसका इतिहास में जिक्र नहीं मिलता। अलबत्ता शराब और नशाखोरी के विरोध में जरूर हजारों लोग जेल गए थे। 

वहीं, केजरीवाल कह रहे हैं कि ‘अगर मैं भ्रष्ट हूं तो दुनिया में कोई ईमानदार नहीं है’ और ‘भाजपा ने सीबीआई को मुझे गिरफ्तार करने का आदेश दिया है।’ जब से केजरीवाल को सीबीआई ने समन जारी किया है, ‘आप’ की ओर से मोदी सरकार पर हमले तेज हो गए हैं। अगर ‘आप’ भारत की सबसे ईमानदार पार्टी है तो उसे समन और कार्रवाइयों का खुले दिल से स्वागत करना चाहिए। 

चूंकि (दावे के मुताबिक) उसके नेता तो पहले से ही पाक-साफ हैं। ऐसे में किसी समन और जांच एजेंसी की पूछताछ से उन्हें क्या नुकसान है? अगर वे खरे हैं, तो इससे उनकी ‘ईमानदारी’ पर और पुख्ता मोहर लग जाएगी। जब से सिसोदिया जेल गए हैं, ‘आप’ के हमलों से ऐसा संदेश मिल रहा है कि उसके सभी नेता पूरी तरह ईमानदार हैं और उनकी लोकप्रियता में इस कदर बढ़ोतरी हो गई है कि उससे केंद्र सरकार भयभीत है!

आबकारी नीति में कथित भ्रष्टाचार मामले में ‘आप’ नेताओं के बयानों और ट्वीट से लगता है कि वे खुद को पीड़ित की तरह पेश कर जनता से सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हैं। आज ‘आप’ की दिल्ली और पंजाब में सरकारें हैं। उसने गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था। उसके पास संगठन है, संसाधन हैं और वकील हैं। इस स्थिति में उसके लिए जांच एजेंसियों के समन खुद की सत्यता सिद्ध करने का सुनहरा मौका है। 

जब उसकी नीतियों में कहीं कोई खोट नहीं है तो एजेंसियों और अदालतों पर विश्वास भी रखना चाहिए। सांच को आंच नहीं होती। अगर दिल्ली सरकार की आबकारी नीति 100 प्रतिशत सही है तो जांच एजेंसियों के कुछ समन और भी आ जाएं तो क्या हर्ज है? देर-सबेर सच को सामने आना ही है। 

‘आप’ नेताओं और केजरीवाल को उनके ‘गुरु’ अन्ना हजारे के इन शब्दों पर गौर करना चाहिए कि ‘कुछ दोष दिखाई दे रहा है, इसलिए पूछताछ होगी, अगर गलती की है तो सजा होनी चाहिए।’ अगर ग़लती नहीं की है तो कैसी झिझक? देश में एक स्पष्ट न्याय व्यवस्था है, जहां बड़े से बड़े नेतागण उपस्थित होते रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब किसी ने भ्रष्टाचार किया तो न्यायालय ने उसे उचित दंड दिया। ऐसे भी कई उदाहरण हैं, जब नेताओं पर आरोप लगे और वे निर्दोष घोषित होकर अधिक उज्ज्वल छवि के साथ लौटे। इससे उनका जनाधार भी बढ़ा। 

‘आप’ को देश की न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा होना चाहिए। उसके नेता ईमानदारी के दावे कर सकते हैं, लेकिन देश में एकमात्र ईमानदार वे ही नहीं हैं। अगर कोई आरोप लगा है तो कानूनी प्रक्रिया का पालन करें और अपनी दलील पेश करें। अगर दावों में सच्चाई और दलीलों में दम होगा तो उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है? जिस पार्टी का जन्म ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के तौर पर हुआ था, जब उसी पर भ्रष्टाचार और अनियमितता के गंभीर आरोप लगें, जेल में बंद नेताओं को जमानत भी न मिले तो उसके नेतृत्व को चिंतन करना चाहिए कि कमी कहां रह गई। 

बात मंत्रियों तक रहती तो संतोष किया जा सकता था, अब खुद केजरीवाल इन आरोपों का सामना कर रहे हैं, तो ‘आप’ की नीति और नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक है। अगर सीबीआई या ईडी ‘आप’ नेताओं को सताने के लिए ही कदम उठा रही हैं तो उनके पास न्यायालय जाने का विकल्प है। वे राजनीतिक बयानबाजी में समय गंवाने के बजाय इसे क्यों नहीं आजमाते? यहीं से संदेह पैदा होता है कि दाल में कुछ ‘काला’ है। केजरीवाल पारदर्शिता और जवाबदेही के पैरोकार हैं। उम्मीद है कि वे आबकारी नीति मामले में भी इनका पालन करेंगे।

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