पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर अजीब उलझन में हैं। वे सांसदों से आग्रह कर रहे हैं कि 'नया पाकिस्तान' या 'पुराना पाकिस्तान' के मुद्दे पर बहस न करें। मुनीर ने जब से सेना प्रमुख की कुर्सी संभाली है, मुसीबतें उनका पीछा नहीं छोड़ रही हैं। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए का भारी अवमूल्यन हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान जी भरकर सेना को कोस रहे हैं। मौजूदा सरकार की उपलब्धियां शून्य हैं। वहीं, टीटीपी के आतंकवादी बेखौफ होकर धमाके कर रहे हैं।
इस सूरत में जब नेता 'नया पाकिस्तान' और 'पुराना पाकिस्तान' का राग छेड़ते हैं तो वह मुनीर को कांटे की तरह चुभता है। चूंकि इस तुलना के जरिए वे यह भी बताना चाहते हैं कि जब से मुनीर सेना प्रमुख बने हैं, पाक के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। इसमें सच्चाई भी है। जब अगस्त 2018 में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तो बहुत ज्यादा महंगाई नहीं थी। आतंकवाद था, लेकिन उस पर काफी हद तक नियंत्रण था।
जब अप्रैल 2022 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के हस्तक्षेप के बाद उनकी सरकार गिरी तो महंगाई की सुनामी-सी आ गई। वहीं, आसिम मुनीर के सेना प्रमुख बनते ही टीटीपी ने धमाकों की बौछार शुरू कर दी। मुनीर से जनता को उम्मीद थी कि वे अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए कुछ करेंगे। साथ ही आतंकवाद को नियंत्रण में रखेंगे, लेकिन वे इन दोनों ही मोर्चों पर बुरी तरह विफल हुए हैं। इस दौरान कट्टरपंथ तेजी से बढ़ा है।
सेना ने पीएमएल-एन, पीपीपी और पीटीआई जैसी पार्टियों पर दबाव बनाने के लिए पूर्व में जिन संगठनों को गुप्त रूप से समर्थन दिया था, वे कालांतर में इतने शक्तिशाली हो गए कि अब सेना को भी आंखें दिखाने से बाज़ नहीं आते हैं।
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल हक़ ने ईशनिंदा के नाम पर जो सख्त कानून बनाया, आज उसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। करीब दो दशक पहले तक इसके झूठे मुकदमों से हिंदू, सिक्ख, ईसाई और पारसी समुदाय से आने वाले लोगों को शिकार बनाया जाता था। अब पाक का बहुसंख्यक समुदाय और विदेशी नागरिक भी ऐसे मुकदमों का सामना कर रहे हैं। कई लोगों की तो उग्र भीड़ हत्या कर चुकी है।
ताजा मामला खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पनबिजली परियोजना में कार्यरत चीनी नागरिक का है। हालांकि वह थोड़ा सौभाग्यशाली रहा कि उसे समय रहते पुलिस सहायता मिल गई। पाक में इस कानून के तहत किसी पर झूठा मुकदमा भी हो जाए तो वकील उसकी पैरवी करने से डरते हैं। उन्हें खौफ रहता है कि अदालत में तैनात सुरक्षाकर्मी उनकी हत्या कर देंगे। ऐसा कहा जाता है कि पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ इस कानून के दुरुपयोग पर लगाम लगाने के इच्छुक थे, लेकिन बाद में उनके सलाहकारों ने ऐसा न करने के लिए कहा। चूंकि उन्हें डर था कि इससे मुशर्रफ के सुरक्षाकर्मी उनकी हत्या कर देंगे। लिहाजा इस मामले में मुनीर भी कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे।
उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता यही रहेगी कि कुर्सी सलामत रहे और रुतबा कायम करे। अगर उनके कार्यकाल में जनता महंगाई, हिंसा, आतंकवाद आदि से त्रस्त रहती है तो यह उनकी समस्या नहीं है। ये मुद्दे सरकार की झोली में डाल दिए जाएंगे। मुनीर 'युद्धविराम' समझौते के नाम पर अभी नियंत्रण रेखा पर आक्रामकता नहीं दिखा रहे हैं, लेकिन वहां से आतंकवादियों का आना जारी है। वास्तव में पाक की खराब आर्थिक स्थिति के कारण उसकी सेना भारत से टकराव लेने से बच रही है।
जिस दिन स्थिति थोड़ी बेहतर हो जाएगी, 'पुरानी हरकतें' फिर शुरू हो सकती हैं। पाक के लिए यह चुनावी साल भी है। उसके पास चुनाव कराने के लिए धन नहीं है। इसलिए यह आशंका स्वाभाविक है कि विपक्ष के असंतोष को दबाने के लिए सेना तख्ता-पलट कर दे! ऐसे किसी भी कदम को उचित ठहराने के लिए पाक सेना भारत के साथ बेवजह तनाव बढ़ा सकती है, जिसके लिए हमें सतर्क रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान 'नया' हो या 'पुराना', उसके प्रधानमंत्री बदल जाएंगे, लेकिन कुछ 'आदतें' नहीं बदलेंगी।