जनसंख्या और अवसर

संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा कर दी कि भारत की जनसंख्या ने 142.86 करोड़ के आंकड़े को छू लिया है। इस तरह भारत, चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन गया है। हालांकि चीन की जनसंख्या 142.57 करोड़ है, इसलिए दोनों देशों की जनसंख्या में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भविष्य में यह अंतर बढ़ता जाएगा। जब साल 2050 आएगा तो भारत की जनसंख्या करीब 166.8 करोड़ होगी। वहीं, चीन की जनसंख्या में बड़ी कमी आने से वह 131.7 करोड़ तक सीमित रहेगी। 

इस अनुमान के अनुसार, साल 2100 तक दोनों देशों की जनसंख्या के बीच अंतर बहुत बढ़ जाएगा। उस समय भारत की जनसंख्या करीब 153 करोड़, तो चीन की जनसंख्या करीब 76.6 करोड़ होगी। आसान शब्दों में कहें तो आने वाले कई दशकों तक सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश का दर्जा भारत के ही पास रहने वाला है। 

उक्त रिपोर्ट के सामने आने के बाद एक बार फिर यह बहस शुरू हो सकती है कि इतनी बड़ी जनसंख्या भारत के लिए समस्या है या वरदान। हालांकि हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि पिछले कुछ दशकों में भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर में बहुत गिरावट आई है। 'हम दो, हमारे दो' का नारा बहुत सफल रहा है। लोगों में जागरूकता आ रही है। 

अब प्राय: सामान्य शिक्षित परिवारों में भी दो से ज्यादा संतानें नहीं मिलतीं। शहरों में कई दंपति ऐसे हैं, जिनकी मात्र एक संतान है। भारत ने जनसंख्या के मामले में तो चीन को पछाड़ दिया, अब उसे अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी पछाड़े। निस्संदेह एक सीमा से ज्यादा जनसंख्या के कारण संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। खाद्यान्न, शिक्षा, रोजगार, आवास, परिवहन, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं सुलभ नहीं होतीं। 

अगर उसी जनसंख्या को परिवार नियोजन का महत्त्व समझा दिया जाए और शिक्षा व रोज़गार के जरिए उसकी क्रय शक्ति बढ़ाई जाए तो भविष्य में न केवल जनसंख्या की वृद्धि दर कम होने लगती है, बल्कि अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होने लगती है। आज भारत इस दिशा में अग्रसर है।

दुनिया की प्रमुख उपभोक्ता प्रौद्योगिकी कंपनी एप्पल ने जब भारत में पहला रिटेल स्टोर खोला तो सीईओ टिम कुक को ग्राहकों का स्वागत करने के लिए आना पड़ा। उन लम्हों की तस्वीरें देश—दुनिया में गईं तो यह संदेश भी गया कि भारत के पास विशाल बाजार है, लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है, यह देश युवा आबादी से भरपूर है। भारत में सरकारों को अब ऐसी नीतियों पर जोर देना होगा, जो युवाओं के लिए अधिकाधिक रोजगार का सृजन कर सकें। सिर्फ सरकारी नौकरी को रोजगार मानने की प्रथा बदलनी होगी। 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के इन आंकड़ों की ओर ध्यान दीजिए, जिनके अनुसार, भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या 0 से 14 (साल) आयु वर्ग की है, जबकि 18 प्रतिशत 10 से 19 साल आयु वर्ग, 26 प्रतिशत 10 से 24 साल आयु वर्ग, 68 प्रतिशत 15 से 64 साल आयु वर्ग की और सात प्रतिशत जनसंख्या 65 साल से अधिक आयु की है। 

यूएनएफपीए की भारत की प्रतिनिधि एंड्रिया वोज्नार का यह कहना उचित ही है कि 'भारत के 1.4 अरब लोगों को 1.4 अरब अवसरों के रूप में देखा जाना चाहिए। चूंकि देश की 25.4 करोड़ आबादी युवा है। यह नवाचार, नई सोच और स्थायी समाधान का स्रोत हो सकती है।' जनसंख्या का शिक्षित, कार्यशील होने के साथ स्वस्थ होना भी जरूरी है। अगर वह रोगग्रस्त रहेगी तो अर्थव्यवस्था को अधिक सामर्थ्यशाली नहीं बना सकेगी। 

विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि चीनी लोग शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय रहते हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय का एक अध्ययन कहता है कि एक भारतीय हर दिन औसतन 4,297 कदम चलता है। वहीं, एक चीनी हर दिन औसतन 6,880 कदम चलता है। भारत में लोग कसरत वगैरह करने को ज्यादा महत्त्व नहीं दे रहे। इसके अलावा जो लोग कामकाज के कारण बैठे रहते हैं, वे चलने-फिरने से परहेज करने लगते हैं। इससे उन्हें कई बीमारियां घेर लेती हैं। 

भारत में सरकारों को स्वास्थ्य सुविधाएं सुलभ कराने और उनकी गुणवत्ता की ओर ध्यान देना चाहिए। जब जनसंख्या स्वस्थ और शिक्षित होगी तो कई समस्याओं का अपने स्तर पर ही समाधान ढूंढ़ लेगी।

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