कर्नाटक: इस सीट पर जिस पार्टी को मिली जीत, उसकी बनी राज्य में सरकार

यहां की जनता जिस दल की जीत सुनिश्चित करती है, राज्य में सत्ता की बागडोर वही संभालता है

कर्नाटक के पिछले 12 विधानसभा चुनावों के नतीजे तो यही बताते हैं

नई दिल्ली/भाषा। मध्य कर्नाटक के गडग जिले का शिरहट्टी, राज्य के 224 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है और इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस क्षेत्र के मतदाता ‘चुनावी मिजाज’ भांपने में निपुण हैं। यहां की जनता जिस दल की जीत सुनिश्चित करती है, राज्य की सत्ता की बागडोर भी वही संभालता है।

कर्नाटक के पिछले 12 विधानसभा चुनावों के नतीजे तो यही बताते हैं। हालांकि, आजादी के बाद अब तक हुए कुल 14 चुनावों में से दो ही मौके ऐसे आए, जब शिरहट्टी में जीत किसी एक दल के उम्मीदवार की हुई और सरकार किसी दूसरे दल की बनी। यह दोनों चुनाव उस दौर में हुए जब कर्नाटक, मैसूरु राज्य कहलाता था।

साल 1973 में पुनर्नामकरण करके इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया था। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के तहत आगामी 10 मई को होने वाले मतदान में इस बार भी लोगों की निगाहें इस सीट पर टिकी हैं कि क्या इस विधानसभा क्षेत्र के लोग एक बार फिर खुद को ‘मौसम विज्ञानी’ साबित कर सकेंगे। आगामी 13 मई को जब चुनाव परिणाम आएंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा।

इस बार यहां के चुनावी मैदान में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चंद्रु लमानी, कांग्रेस की सुजाता निंगप्पा डोड्डामणनि और जनता दल (सेक्युलर) के हनुमंथप्पा नायक के बीच है। भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज करने वाले रमप्पा लमानी का टिकट काटकर एक सरकारी चिकित्सक चंद्रू लमानी को उम्मीदवार बनाया है।

साल 1957 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में शिरहट्टी से कांग्रेस की जीत हुई और राज्य में सरकार भी उसकी ही बनी। हालांकि अगले दो लगातार चुनावों में यह क्रम जारी नहीं रहा। साल 1962 और 1967 के विधानसभा चुनावों में यहां से स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, लेकिन सरकार कांग्रेस की ही बनी।

इसके बाद से अब तक हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में हर बार यहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी की राज्य में सरकार बनी।

साल 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में शिरहट्टी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रामप्पा लमानी ने कांग्रेस के उम्मीदवार डीआर शिडलिंगप्पा को 29,993 मतों से पराजित किया था। इसके बाद राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा ने सरकार बनाई और कमान बीएस येडियुरप्पा के हाथों में गई। लेकिन आठ सीटें कम पड़ने की वजह से सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

इसके बाद कांग्रेस की सहायता से जनता दल (सेक्युलर) के एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन कांग्रेस के कुछ विधायकों के पाला बदलने के कारण 14 महीने के भीतर ही कुमारस्वामी की सरकार भी गिर गई। कई दिनों तक खिंचे नाटकीय घटनाक्रम के बाद येडियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने।

इससे पहले, साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार ने शिरहट्टी से जीत दर्ज की और राज्य में सिद्दरामैया के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इसी प्रकार साल 2008 में भाजपा और साल 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकारें बनीं तो शिरहट्टी में भी सत्ताधारी दलों के विधायकों को सफलता मिली।

साल 1972 से लेकर 1999 तक हुए चुनावों में भी यही स्थिति बनी रही। शिरहट्टी से जीत दर्ज करने वाली पार्टी ही राज्य में सरकार बनाती रही।

साल 1999 में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो कांग्रेस के नेता एसएम कृष्णा राज्य के मुख्यमंत्री बने। इससे पहले, साल 1994 के चुनाव में जनता दल के एचडी देवेगौड़ा मुख्यमंत्री बने तो उनकी पार्टी के ही उम्मीदवार जीएम महंतशेट्टार ने यहां से जीत हासिल की।

साल 1989 में कांग्रेस के शंकर गौड़ा पाटिल ने शिरहट्टी से विधानसभा चुनाव जीता और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी।

साल 1985 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार ने यहां से जीत दर्ज की तो राज्य में सरकार भी जनता पार्टी की ही बनी। रामकृष्ण हेगड़े इस सरकार के मुखिया बने।

इसके पहले हुए साल 1983 के विधानसभा चुनाव में पहली बार इस सीट से किसी निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। कांग्रेस के तत्कालीन विधायक यूजी फकीरप्पा को टिकट नहीं मिला तो वे बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में उतर गए। उन्होंने जीत भी दर्ज की। राज्य में विधानसभा त्रिशंकु बनी। कांग्रेस को 82 सीटों पर तो जनता पार्टी को 95 सीटों पर जीत मिली। फकीरप्पा ने जनता पार्टी का समर्थन कर दिया। सरकार भी जनता पार्टी की बनी और पहली बार हेगड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने।

शिरहट्टी के अलावा भी कर्नाटक में कुछ ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने राज्य की सत्ता पर राज किया। इनमें कोप्पल जिले की येलबुर्गा, विजयनगर जिले की हरपनहल्ली, चिक्कमगलूरु जिले का तारिकेरे और दावणगेरे जिले की दावणगेरे सीट शामिल हैं। साल 1999 से लेकर अब तक हुए सभी चुनावों में इन सीटों पर जिस दल के उम्मीदवार को जीत मिली, सत्ता भी उसी दल को नसीब हुई।

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