शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा कर बड़ा सियासी धमाका कर दिया है। यूं तो उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने पहले ही कह दिया था कि आने वाले 15 दिनों में दो बड़े सियासी धमाके होंगे, लेकिन इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी कि शरद पवार अचानक राकांपा का अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा कर देंगे।
निस्संदेह पार्टी के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता भी पवार के इस फैसले से अचंभित हैं। पवार अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं। वहां कोई उन्हें चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। फिर उन्होंने अचानक यह फैसला क्यों लिया? इसके क्या निहितार्थ हैं? पवार ने यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान में आत्मकथा का विमोचन करते हुए यह घोषणा की, जिसके बाद नेता और कार्यकर्ता भावुक हो गए थे।
कार्यक्रम स्थल पर नारेबाजी भी होने लगी थी। देखते ही देखते यह ख़बर सोशल मीडिया पर छा गई। इस तरह पवार सबको यह संदेश देने में सफल हो गए कि आज भी राकांपा के नेता और कार्यकर्ता उन्हें सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। लिहाजा 'किसी को' इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि वह पार्टी लाइन से अलग हटकर अपने सियासी मंसूबों में कामयाब हो जाएगा।
यूं तो अजीत पवार भी राकांपा में बड़ी हैसियत रखते हैं। उन्हें पार्टी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां देती है। वे महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। जब कभी महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखी टिप्पणी करते हैं तो अजीत पवार उन्हें इससे परहेज करने की नसीहत देते नजर आते हैं। वे खुद को राकांपा का समर्पित कार्यकर्ता बताते हैं, लेकिन उन्होंने शरद पवार को उस समय चौंका दिया था, जब नवंबर 2019 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। हालांकि बाद में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।
उस घटनाक्रम से सबको अचंभा हुआ कि शरद पवार जैसे अनुभवी राजनेता यह तक नहीं भांप पाए कि उनके भतीजे ने भाजपा से हाथ मिला लिया है! उसके बाद अजीत पवार विभिन्न अवसरों पर पार्टी के प्रति निष्ठा जताने के लिए बयान देते नजर आए, लेकिन ऐसी अटकलों को भी बल मिलता रहा कि राकांपा पर शरद पवार की पकड़ कमजोर होती जा रही है।
बीच-बीच में कयासों पर आधारित ऐसी खबरें आती रहीं कि राकांपा टूट सकती है। अब शरद पवार ने अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा की है तो उन्होंने अजीत को भी स्पष्ट संदेश दे दिया कि पार्टी में वही होगा, जो वे (पवार) चाहेंगे। अभी पवार की उम्र लगभग 82 साल है। पार्टी पर पकड़ होने के बावजूद उन्हें अपनी आयु और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए भावी नेतृत्व तैयार करना ही है। इसके लिए अभी अनुकूल समय है।
उन्होंने एक तरह से शक्ति प्रदर्शन भी कर दिया, जिसके कारण भावी नेतृत्व इस बात का ध्यान रखेगा कि उनकी 'इच्छा' का पूर्णत: पालन किया जाए। चूंकि पवार ने साफ कर दिया है कि वे सामाजिक जीवन से संन्यास नहीं ले रहे हैं, इसलिए वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में प्रचार करेंगे और 'नए अध्यक्ष' को अपनी देखरेख में सियासी 'प्रशिक्षण' भी देते रहेंगे। महाराष्ट्र में शिवसेना टूटने से ठाकरे गुट को भारी नुकसान हुआ है।
इस सूरत में पवार समय रहते नए नेतृत्व को पार्टी सौंपकर राकांपा को मजबूत करने पर जोर देंगे, ताकि दोबारा गठबंधन हुआ तो उनकी पार्टी निर्णायक भूमिका में रहे। पवार ने अभी जो दांव चला है, उससे उन नेताओं की 'उम्मीदों' को झटका लगा है, जो अपने बढ़ते सियासी कद के साथ खुद को अध्यक्ष पद का स्वाभाविक दावेदार मान बैठे थे। अब पवार के आदेश पर समिति उसी नाम पर मुहर लगाएगी, जिसे वे पसंद करेंगे। नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा के बाद हर कोई इसे पवार के 'अंतिम एवं मान्य' निर्णय के तौर पर लेगा। 'असंतुष्टों' की दाल नहीं गलेगी।