कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद सबकी निगाहें 13 मई पर हैं। आज सुबह जब आप ये पंक्तियां पढ़ रहे होंगे तो सोशल मीडिया, समाचार चैनलों पर अपडेट आने शुरू हो चुके होंगे - 'कुछ ही समय में शुरू होने वाली है मतगणना, मुस्तैदी से तैनात हैं कर्मचारी, पहले मतपत्रों की होगी गणना, खुलने वाली है ईवीएम, किसके सिर पर ताज, किस पर गिरेगी गाज ...!'
निस्संदेह चुनावी माहौल में एक जोश होता है। उसके साथ नियमों का पालन भी ज़रूरी है। जिस उम्मीदवार को जीत मिले, वह जनता का आभार जताए और सर्वसमाज की भलाई के लिए कार्य करे। जो इस मुकाबले में चूक जाए, उसे भी चाहिए कि नतीजे को खुले मन से स्वीकारे और आत्मावलोकन करे। अगर समाज-सेवा करनी है तो इसके लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधि होना अनिवार्य नहीं है।
आप किसी भी स्तर पर समाज की बेहतरी और भलाई के लिए काम कर सकते हैं। हो सकता है कि इन्हीं कार्यों की बदौलत जनता-जनार्दन भविष्य में विजय का आशीर्वाद दे दे! इसलिए दोनों ही स्थितियों में उम्मीदवार अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करें। न तो अति-उत्साह एवं भावावेश में कोई ऐसा कार्य करें, जिससे लोगों को असुविधा हो और न कोई ऐसा बयान दें, जिससे सामाजिक सद्भाव प्रभावित हो। एग्जिट पोल ने भी उम्मीदवारों की धड़कनें बढ़ा दी हैं।
इनमें से ज़्यादातर ने कांग्रेस के सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने का अनुमान लगाया है। वहीं, कुछ एग्जिट पोल भाजपा की दोबारा सत्ता में वापसी के संकेत दे रहे हैं। उधर, सोशल मीडिया पर कयासों का बाजार गरम है कि त्रिशंकु जनादेश आया तो कौन किसके पाले में जाएगा, किसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी और किस पार्टी का मुख्यमंत्री बनेगा!
अब ज्यादा समय नहीं लगेगा। दोपहर तक इसकी तस्वीर साफ होती नजर आएगी। यूं तो चुनाव में मतदान के बाद एग्जिट पोल आते ही हैं, लेकिन ये सटीक साबित हों, ऐसा जरूरी नहीं है। ये एक संभावना का संकेत तो जरूर देते हैं, लेकिन कई बार सही भविष्यवाणी करने में चूक भी जाते हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल्स की भी परख हो जाएगी कि ये वास्तविकता के कितने निकट हैं।
कर्नाटक के विकास के लिए आवश्यक है कि जिस दल की सरकार आए, पूर्ण बहुमत के साथ आए। त्रिशंकु और अल्पमत की स्थिति से विकास की प्रक्रिया बाधित होती है। यह सिर्फ 224 सीटों का चुनाव नहीं है, बल्कि कर्नाटक की आकांक्षाओं तथा विकास की संभावनाओं का भी चुनाव है। नई सरकार से कर्नाटकवासियों को बहुत उम्मीदें हैं। युवाओं, किसानों, महिलाओं, कारोबारियों और वृद्धजन की मांगों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना होगा।
राज्य में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, कृषि, पेयजल, परिवहन और सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े कई मसले हैं, जिनकी ओर ध्यान देना होगा। कर्नाटक में जो भी पार्टी सरकार बनाएगी, उस पर अच्छे प्रदर्शन की ज़्यादा जिम्मेदारी होगी, क्योंकि आगामी लोकसभा चुनावों में लगभग एक वर्ष का समय बचा है। इस अवधि में कर्नाटक सरकार के वादों और दावों की परख होगी।
जनता यह जरूर देखेगी कि विधानसभा चुनाव से पहले जो वादे किए थे, उनमें से कितने पूरे हुए। अब सबके चुनाव घोषणापत्र एक क्लिक पर ऑनलाइन मिल जाते हैं, तो किसी पार्टी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि चुनावी शोर शांत होते ही जनता को याद नहीं रहेगा। 'यह जो पब्लिक है, सब जानती है', इसलिए सरकार के गठन के साथ ही विकास और जनकल्याण के वादों पर तुरंत काम शुरू कर देना चाहिए।
सरकार के कामकाज का लेखा-जोखा जरूर लिया जाएगा और आगामी लोकसभा चुनावों में भी इसकी गूंज सुनाई देगी। विधानसभा चुनाव में मतदान के बाद हर पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है। वहीं, अंदरखाने चर्चा है कि वर्ष 2018 जैसी स्थिति फिर पैदा न हो जाए। तब जनता ने किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया था। उसके बाद सियासी उथल-पुथल का दौर रहा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार वैसी स्थिति नहीं होगी। नई सरकार कर्नाटक को प्रगति पथ पर आगे लेकर जाए।