राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने यह कहकर अपनी ही पार्टी की सरकार को 'चेतावनी' दे दी है कि अगर इस महीने तक उनकी 'मांगें' नहीं मानी गईं तो पूरे राज्य में आंदोलन किया जाएगा।
एक ओर जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत महंगाई राहत कैंपों के जरिए अपनी सरकार की वापसी का दावा कर रहे हैं, वहीं पायलट उनका खेल 'बिगाड़ने' के मूड में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव तो जीत लिया, लेकिन इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बड़ा इम्तिहान होना बाकी है। यूं तो मप्र और छग कांग्रेस में भी गुटबाजी है, लेकिन जिस तरह यह फूट के रूप में राजस्थान में खुलकर सामने आ रही है, वैसा हाल इन राज्यों में नहीं है।
जब साल 2018 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी तो इस बात को लेकर आशंका जताई जाने लगी थी कि अब यहां दो 'पावर सेंटर' होंगे, जिनमें कभी-न-कभी टकराव हो सकता है। यह आशंका सच साबित हुई। जुलाई 2020 में 'असंतुष्ट' सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकते हुए अपने समर्थक विधायकों के साथ गुरुग्राम के पास मानेसर के होटल में डेरा डाल लिया था।
उसके बाद पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। मुख्यमंत्री गहलोत और नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कई मौकों पर पायलट को निशाना बनाते हुए बयान दिए थे।
पायलट ने वक्त की नज़ाकत को देखते हुए चुप्पी साधे रखना बेहतर समझा। कभी कुछ कहा भी तो कठोर शब्दों से परहेज करते रहे। अब पायलट के लिए मौका है। चूंकि 2023 राजस्थान के लिए चुनावी साल है। इस दौरान पायलट के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले कांग्रेस को कई बार सोचना पड़ेगा।
अगर कांग्रेस पायलट को 'बर्दाश्त' करती जाएगी तो उनके 'हमले' और बढ़ते जाएंगे। वे योजनाबद्ध ढंग से कदम बढ़ा रहे हैं। कथित भ्रष्टाचार को लेकर सीधे गहलोत सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे, लेकिन यह संदेश देना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री पूर्ववर्ती सरकार के कथित कृत्यों पर पर्दा डाल रहे हैं, वे जांच नहीं कराना चाहते हैं।
इस तरह निशाना तो गहलोत पर ही है, बस रास्ता बदल दिया है। पायलट ने हाल में एक दिन का अनशन किया था। अब उन्होंने पांच दिन की जनसंघर्ष पदयात्रा समाप्त की है, जिसमें काफी संख्या में लोग उमड़े। इसके साथ ही उन्होंने गहलोत सरकार को दो टूक कह दिया है कि अगर राज्य सरकार ने पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामलों की जांच सहित उनकी तीन मांगें नहीं मानीं तो वे पूरे राज्य में आंदोलन करेंगे।
उन्होंने इसके लिए कांग्रेस सरकार को 15 दिन का समय भी दे दिया है। पायलट की मांगें - राज्य सरकार राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) को बंद कर पूरे तंत्र का पुनर्गठन करे, नए कानूनी मापदंड बनें और पारदर्शिता से लोगों का चयन हो; पेपर लीक से प्रभावित प्रत्येक नौजवान को उचित आर्थिक मुआवजा दिया जाए; पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ लगे आरोपों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए - मुख्यत: युवा वर्ग को ध्यान में रखकर पेश की गई हैं।
वहीं, पायलट यह कहते हुए अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाशने और उसे मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं कि 'इस महीने के आखिर तक नौजवानों के हित में और भ्रष्टाचार के खिलाफ, ये तीनों मांगें अगर नहीं मानी गईं तो मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं कि अभी मैंने गांधीवादी तरीके से (एक दिवसीय) अनशन किया, जनसंघर्ष यात्रा निकाली है ... महीने के आखिर तक अगर कार्रवाई नहीं होती है तो मैं पूरे प्रदेश में आंदोलन करूंगा आप लोगों के साथ। जनता के साथ रहेंगे ... गांव, ढाणी, शहरों में हम पैदल चलेंगे। जनता को साथ लेकर चलेंगे, न्याय करवाएंगे। आपकी (लोगों की) बात को रखते रहेंगे।'
पायलट का यह अंदाज उन्हें जुझारू नेता के तौर पर तो स्थापित कर ही रहा है, गहलोत सरकार के लिए 'खतरे की घंटी' भी बजा रहा है। अगर इस समय पायलट को पार्टी से निकाला गया तो वे सीधे गहलोत सरकार पर हमला बोलेंगे और अपना 'पुराना हिसाब' चुकता करने के लिए लड़ाई को खूब तेज करेंगे। अगर उन पर नरमी दिखाई गई तो मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पर सवाल उठेंगे। यह कहा जाएगा कि ये पायलट के खिलाफ कार्रवाई से हिचक रहे हैं।
सवाल है- चुनावी साल में गहलोत ऐसा कौनसा 'जादू' करेंगे कि पायलट के 'हमले' उनकी सरकार को नुकसान न पहुंचा सकें? इसके जवाब का इंतजार जनता को तो है ही, पायलट भी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि उनकी भावी 'रणनीति' इसी के इर्दगिर्द होगी।