देश में 14.44 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 12 करोड़ को जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत नल-जल कनेक्शन दिए गए हैं। निश्चित रूप से यह केंद्र सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि है। बिजली और पानी ऐसी मूलभूत आवश्यकताएं हैं, जिनके बिना काम नहीं चल सकता है। इन तक हर परिवार की पहुंच होनी चाहिए। उक्त आंकड़े में अभी और भारी बढ़ोतरी होगी, क्योंकि उत्तर प्रदेश और राजस्थान समेत नौ राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में ऐसे कई ग्रामीण परिवार हैं, जिन्हें कनेक्शन मिलना बाकी है।
आसान शब्दों में कहें तो अभी बहुत लंबा सफर बाकी है, जिसके लिए निरंतर कड़ी मेहनत से काम करना होगा। इस बीच यह आश्चर्य मिश्रित प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि आज़ादी के इतने दशकों बाद भी देश की बड़ी आबादी जल कनेक्शन जैसी जरूरत से वंचित क्यों है? आज भी राजस्थान जैसे राज्य में महिलाएं सिर पर मटके रखकर दूर-दराज के इलाकों से पानी लाती हैं। उनके जीवन का बड़ा हिस्सा पानी का बर्तन ढोने में ही चला जाता है।
अगर उन्हें भी समय मिले, कोई हुनर सिखाकर उचित मंच उपलब्ध कराया जाए और घर बैठे पानी मिल जाए तो वे देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान दे सकती हैं। राजस्थान में बहुमंजिला इमारतों में पानी का कनेक्शन देने के लिए गहलोत सरकार ने हाल में जो नीति जारी की थी, उसमें बड़ी अस्पष्टता है। पर्याप्त कनेक्शन न देने के कारण पानी के बंटवारे को लेकर फ्लैट मालिकों में सिर फुटौवल की नौबत आ सकती है।
जब अंग्रेज इस देश को छोड़कर गए थे तो वैज्ञानिक प्रगति बहुत कम थी। हमने अपने अध्ययन एवं परिश्रम से विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत की कोरोनारोधी वैक्सीन ने पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की जान बचाई है। आज एक बटन दबाकर करोड़ों किसानों के बैंक खातों में राशि भेजी जाती है। इसलिए अगर हम ठान लें तो देश के उन इलाकों तक राहत पहुंचा सकते हैं, जहां जल की उपलब्धता कठिन है।
इस बार केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत में कुछ देरी हो रही है। इसके 4 जून तक दस्तक देने की संभावना जताई गई है। यूं तो दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य रूप से 1 जून को केरल में प्रवेश करता है। इसमें लगभग सात दिनों की देरी या जल्दी हो जाती है। इस राज्य में साल 2022 में मानसून 29 मई को पहुंचा था। साल 2021 में तीन जून को और साल 2020 में एक जून को पहुंचा था। हमारे लिए मानसून का आगमन बहुत बड़े शुभ समाचार की तरह होता है।
जब मानसून अच्छा होता है तो उससे अच्छी फसल होती है। महंगाई नियंत्रण में रहती है। लोगों को रोजगार मिलता है। भूजल का स्तर बेहतर होता है। केरल में मानसून प्रवेश के करीब तीन-साढ़े तीन हफ्ते बाद यह राजस्थान में आ जाता है। इस बीच विभिन्न स्थानों पर वर्षा करता रहता है। चूंकि मानसून में कुछ देरी हो रही है तो इस समय का सदुपयोग करना चाहिए। जो पुराने जलाशय हैं, उनकी सफाई होनी चाहिए, ताकि ये मानसून में लबालब हो जाएं तो भूजल स्तर में वृद्धि हो। मकानों की छतों की सफाई कर उनके पाइप से वर्षाजल संग्रहण की तैयारी की जा सकती है।
जब प्रकृति का यह खजाना हम पर बरसे तो व्यर्थ क्यों जाए? बेहतर होगा कि इसकी बूंद-बूंद को बचाया जाए। सार्वजनिक स्थानों पर जो नालियां हैं, उन्हें समय रहते साफ कर लिया जाए। जो गड्ढे खुदे पड़े हैं, उन्हें भलीभांति ढक दिया जाए। बिजली के जो तार खुले पड़े हैं, जिन्हें संभाल की जरूरत है, उनका भी उचित रखरखाव किया जाए।
देखने में आता है कि हर साल मानसून में ये छोटी-बड़ी दुर्घटनाओं की वजह बनते हैं। जब मानसून देर से आ रहा है तो इस अवधि में इनकी स्थिति पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है। ये सभी कार्य उसके स्वागत की तैयारी का हिस्सा हैं। सरकारों को चाहिए कि वर्षाजल संग्रहण के लिए नागरिकों को प्रोत्साहित करें।
आज जिस तरह से भूजल का दोहन किया जा रहा है, उससे कई इलाकों में हालात बिगड़ गए हैं। चाहे कोई भूखंड पर मकान बनाकर रहे या फ्लैट में निवास करे, हर परिवार को जल कनेक्शन मिलना चाहिए और वर्षाजल को सहेजने के लिए गंभीरता से प्रयास होने चाहिएं।