रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के पाकिस्तानी महिला एजेंट के हनीट्रैप मामले में जो खुलासे हुए हैं, उनसे पता चलता है कि पाक खुफिया एजेंसियां हमारे देश में ऑनलाइन घुसपैठ करने के लिए कितना जोर लगा रही हैं। उन्होंने डीआरडीओ के वैज्ञानिक के अलावा भारतीय वायुसेना के एक कर्मी से भी संपर्क किया था।
महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारियों की सतर्कता के लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। अन्यथा देश को और नुकसान हो सकता था। पाकिस्तानी एजेंसियां हमेशा इस ताक में रहती हैं कि भारत के बारे में जितनी भी संवेदनशील जानकारी हासिल हो, उसे जुटाया जाए। देश के सरहदी इलाकों में तो आईएसआई के लिए जासूसी के आरोप में पहले भी कई लोग पकड़े जाते रहे हैं, लेकिन बात जब डीआरडीओ और रक्षा बलों तक पहुंच जाए तो निश्चित रूप से यह अत्यंत चिंता का विषय है।
हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, सैन्य अधिकारी और जवान, पड़ोसी पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों से देश की रक्षा करने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में जो कार्य करते हैं, वे अत्यंत गोपनीय होते हैं। आम जनता को इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती, क्योंकि अगर उसे सार्वजनिक किया गया तो वह 'ग़लत' लोगों के हाथों तक पहुंच सकती है।
जब कोई वैज्ञानिक या सैन्य कर्मी जाने-अनजाने में ऐसी जानकारी शत्रु देश के साथ साझा कर देता है तो उसकी भरपाई बहुत मुश्किल होती है। जिस कार्य के लिए वैज्ञानिकों, अधिकारियों और जवानों की टीम दिन-रात मेहनत करती है, महज कुछ बटन दबाने पर वह उन लोगों के पास पहुंच सकती है, जो हमारा भारी अहित कर सकते हैं। अब इस विषय पर खुलकर बात होनी चाहिए, आखिर यह देश की सुरक्षा का मामला है। इसलिए सबको पता होना चाहिए कि शत्रु हमारे विरुद्ध क्या-क्या षड्यंत्र रच रहा है।
हमारे देश में बहुत लोगों में आदत होती है कि सोशल मीडिया पर आई हर बात को सच मान लेते हैं। फिर चाहे वह किसी अनजान शख्स का मैसेज ही क्यों न हो। अगर वह मैसेज किसी महिला के नाम से आया हो और प्रोफाइल में खूबसूरत तस्वीर लगी हो तो प्राय: उसकी वास्तविकता जांचने की कोशिश नहीं करते। हमें नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान ने हनीट्रैप का नापाक दांव चलने के लिए बारीक से बारीक चीजों का ध्यान रखा है।
जिन महिलाओं को इस 'खेल' का मोहरा बनाया जाता है, उन्हें कई तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है। खासतौर से भारतीय पहनावे, रस्मो-रिवाज, अभिवादन के तरीके, लहजे आदि पर 'काम' किया जाता है। हनीट्रैप वीडियो कॉल के लिए कमरे को अच्छी तरह से 'सजाया' जाता है। प्राय: उसमें एक छोटा मंदिर या देवी-देवताओं के चित्र लगाए जाते हैं। वहां स्वस्तिक, ऊँ जैसे मांगलिक चिह्न भी अंकित होते हैं। इन महिला एजेंटों के लिए खूबसूरती के साथ हिंदी का ज्ञान अनिवार्य होता है।
चूंकि पाकिस्तानियों की उर्दू पर स्थानीय प्रभाव होता है। उसमें कुछ शब्दों का उच्चारण हमारे उच्चारण से बिल्कुल अलग होता है। इसलिए उन्हें नए शब्द सिखाए जाते हैं। उन्हें कोई ऐसा हिंदू या सिक्ख नाम देकर 'लॉन्च' कर दिया जाता है, जो काफी प्रचलन में हो और जिसका उच्चारण मुश्किल न हो। उसे वीडियो कॉल के दौरान देखकर आम आदमी को बिल्कुल अंदाजा नहीं होता कि वह जिस महिला को भारतीय समझ रहा है, उसकी असलियत कुछ और ही है। उच्च शिक्षित लोग भी उसके झांसे में आ सकते हैं, क्योंकि महिला एजेंट को अपनी पहचान छुपाने का पूरा प्रशिक्षण मिला हुआ है।
उसका पर्दाफाश सिर्फ वह व्यक्ति कर सकता है, जिसे पाक के इस षड्यंत्र की जानकारी हो और जो पाकिस्तानियों के भाषाज्ञान से परिचित हो। आमतौर पर इतनी जानकारी भारतीय खुफिया एजेंसियों के उन्हीं अधिकारियों को होती है, जो पाकिस्तान पर नजर रखते हैं। कुछ खोजी पत्रकार, लेखक भी इस विषय पर शोध करते रहते हैं।
उनके अलावा अन्य लोगों के लिए इसका पता लगा पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। जो लोग सेना, पुलिस, वैज्ञानिक संस्थान, दूर संचार, वित्तीय महत्त्व के संस्थान, सरहदी क्षेत्र, तेल और गैस भंडार और महत्त्वपूर्ण आंकड़ों के संग्रहण के संस्थान में कार्यरत हैं, उन्हें इस संबंध में विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। उनकी एक ग़लती का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है।