राजस्थान में कोटा, जयपुर और सीकर जैसे शहर कोचिंग के गढ़ माने जाते हैं। यहां अन्य जिलों और राज्यों के विद्यार्थी भी पढ़ाई करने आते हैं। विशेष रूप से कोटा तो चिकित्सा और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं के लिए देशभर में विख्यात हो गया है, लेकिन यहां अब तक कई विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठा लेना बहुत चिंता का विषय है।
हाल में यहां राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी कर रही 16 वर्षीया छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी। उच्च न्यायालय भी इस विषय को बहुत गंभीरता से ले रहा है। उसने महाधिवक्ता, न्यायमित्र और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से सुझाव प्रस्तुत करने को कहा है।
माना जा रहा है कि इस कदम से कोचिंग विद्यार्थियों को मनोवैज्ञानिक परामर्श उपलब्ध कराने के लिए प्रणाली की स्थापना का रास्ता खुलेगा। निस्संदेह आज इसकी बहुत ज़रूरत है। कोटा ने शिक्षा नगरी के रूप में जो पहचान बनाई है, उसके पीछे यहां के शिक्षकों, विद्यार्थियों और निवासियों की बड़ी भूमिका है। इसके लिए वर्षों मेहनत की गई है।
कोटा के इन कोचिंग संस्थानों में पढ़कर सफल हुए विद्यार्थी आज देश-दुनिया में नाम कमा रहे हैं। वे कोचिंग के उन बीते दिनों को जरूर याद करते हैं, जब संघर्ष और दृढ़ संकल्प ने उन्हें शक्ति दी थी। आखिर क्या वजह है कि कुछ विद्यार्थी संघर्ष के आगे हार मान लेते हैं और कोई गलत कदम उठा लेते हैं? हम यहां पहले भी इस मुद्दे का प्रमुखता से उल्लेख करते रहे हैं, विद्यार्थियों का हौसला बढ़ाते रहे हैं।
कई मामलों में ऐसा होता है कि बच्चे का कोचिंग में एडमिशन करवा दिया जाता है, उस पर लाखों रुपए का खर्चा हो जाता है। फिर पढ़ाई के भार, कड़ी प्रतिस्पर्धा और पिछड़ने के डर के कारण उसे घबराहट और बेचैनी घेर लेती है। वह अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता के भंवर में फंस जाता है। उसे अपनी योग्यता पर संदेह होने लगता है। उसे बार-बार महसूस होता है कि उसने ऐसा विकल्प चुन लिया, जिसके लिए शायद वह नहीं बना है!
यह समय बड़ा नाजुक होता है। अगर इस दौरान कोई अनुभवी व्यक्ति उसका हौसला बढ़ा दे, चिंता दूर कर दे और उसकी शक्तियों को जगा दे, तो यह उसके लिए संजीवनी का काम कर सकता है।
यह भी देखने में आता है कि किसी टेस्ट में किए गए प्रदर्शन के आधार पर एक-दूसरे से तुलना की जाती है। चूंकि कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है और हर कोई चाहता है कि उसका प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहे। जो बच्चा किसी कारण से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता, एकाग्रता से पढ़ाई नहीं कर पाता और अपने माता-पिता को मन की बात नहीं बता पाता, वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगता है। वह सोचता है कि 'मेरी वजह से काफी रुपए खर्च हो गए हैं, परिवार ने बड़े अरमान पाल रखे हैं ... अगर मैं असफल होकर वापस गया तो रिश्तेदार, मोहल्लेवाले और दोस्त आदि ताने मारेंगे।'
फिर वह बच्चा मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियों से जूझने लगता है। एक ओर तो उस पर पढ़ाई और अच्छे प्रदर्शन का दबाव होता है, दूसरी ओर मन में उमड़ता तूफान बेचैन करता रहता है। उस समय जरूरी होता है कि विद्यार्थी के मन में उठ रहीं शंकाओं के एक-एक बिंदु को आगे रखते हुए उनका जवाब दिया जाए और उसे हिम्मत बंधाई जाए।
अगर बच्चे को यह बात समझ में आ गई कि मुश्किल समय तो हर किसी के जीवन में आता है, परीक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों के जीवन में भी, लेकिन उससे हिम्मत हारने के बजाय अपनी शक्तियों को पहचानते हुए उस पर विजय पानी है, तो वह उससे उबर जाएगा। फिर उसका पढ़ाई में भी मन लगेगा और अच्छा प्रदर्शन कर सफल होने की संभावना ज्यादा होगी। वह भविष्य में अन्य विद्यार्थियों को प्रोत्साहित कर सकेगा।
बस जरूरत इस बात की है कि अभी उसे हिम्मत और हौसला दें। उसकी समस्याएं ध्यान से सुनें और उचित समाधान करें। यह नाजुक समय पार करा दें। यह पार हो गया तो वह विद्यार्थी हिम्मत नहीं हारेगा, कोई गलत कदम नहीं उठाएगा।