महाराष्ट्र में ठाणे जिले के एक फ्लैट में श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड की तर्ज पर ‘लिव-इन’ पार्टनर की हत्या रोंगटे खड़े करनेवाली है। आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है? मीरा भायंदर इलाके की उस इमारत की सातवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट से आ रहीं ख़बरें यह सोचने को मजबूर करती हैं कि कोई शख्स इतना बेरहम कैसे हो सकता है।
मनोज साने जिस महिला (सरस्वती वैद्य) के साथ रहता था, उसकी न केवल हत्या की, बल्कि शव को काटकर टुकड़े किए, फिर प्रेशर कुकर में उबाला, मिक्सर में पीसा और शौचालय में बहाता रहा! कुछ लोगों के हृदय से दया और करुणा की भावना कैसे लुप्त हो रही है? क्या यह क्षणिक आवेश का परिणाम है या पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है?
अब समय आ गया है कि इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाए। आजकल शहरों के विस्तार के साथ लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना कम होता जा रहा है। बड़े शहरों में तो प्राय: एक ही इमारत के अलग-अलग फ्लैटों में रहने वाले लोग एक-दूसरे को नहीं जानते। हर कोई अपनी दुनिया में व्यस्त है।
हाल के वर्षों में ‘लिव-इन’ रिलेशनशिप का शोर बढ़ा है। इसके पक्ष में 'तर्क' गढ़ लिए गए हैं। इसे वैचारिक प्रगति और सामाजिक उन्नति से जोड़कर देखा जा रहा है। यहां कर्तव्य का भाव गौण है, शारीरिक आकर्षण प्रबल है। जब तक आपस में बने, साथ रहे, ज़रा भी बात बिगड़ी तो दोनों अपना-अपना रास्ता पकड़ लिए। जीवनभर का साथ निभाने की किसे पड़ी है? अब लाइक और ब्लॉक की तर्ज पर रिश्ते बनने और बिगड़ने लगे हैं!
मनोज और सरस्वती पिछले तीन साल से इस फ्लैट में रह रहे थे। वे लोगों के साथ मिलनसार भी नहीं थे। प्राय: ऐसे मामलों में रिश्ते की शुरुआत परस्पर आकर्षण से होती है। दोनों सुनहरे भविष्य की कल्पना करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि ‘लिव-इन’ रिलेशनशिप से उनकी ज़िंदगी बेहतर हो जाएगी। पहले वे एक-दूसरे की कुछ खूबियों से प्रभावित होते हैं। धीरे-धीरे आकर्षण क्षीण होने लगता है।
कुछ महीने पहले दोनों को सिर्फ अच्छाइयां नज़र आती थीं, अब बुराइयां दिखने लगती हैं। दोनों में झगड़े होने लगते हैं। फिर वे रिश्ता खत्म कर एक-दूसरे से दूर जाने की सोचने लगते हैं। अगर दोनों में से कोई एक आपराधिक व हिंसक प्रवृत्ति का होता है तो बात मारपीट और हत्या तक पहुंच जाती है। श्रद्धा हत्याकांड में भी दोनों के रिश्ते के बीच ये ही बातें सामने आई थीं।
यहां पड़ोसियों व पुलिस की सतर्कता से मनोज पर जल्दी शिकंजा कसा गया और उसे अदालत ने हिरासत में भेज दिया। अगर उसके अपराध की भनक नहीं लगती तो वह पूरे शव को ठिकाने लगा देता। अभी पुलिस मनोज से पूछताछ कर रही है।
बताया जा रहा है कि वह शव के सभी टुकड़ों को फेंकने के बाद आत्महत्या करना चाहता था। चूंकि ऐसा अपराध करने के बाद संबंधित व्यक्ति को भय सताता है कि वह कभी न कभी पकड़ा जाएगा, जिसके बाद जेल, कड़ी पूछताछ और कठोर सजा तय है।
जब पुलिस टीम उस फ्लैट में पहुंची तो अधिकारी भी वहां का दृश्य देखकर सन्न रह गए थे। एक कमरे में प्लास्टिक बैग और खून से सनी आरी थी, रसोईघर में प्रेशर कुकर में उबले हुए मानव शरीर के टुकड़े, फर्श पर बाल, अधजली हड्डियां थीं। बाल्टियों और टब में भी शरीर के टुकड़े थे। वह इन हिस्सों को आवारा कुत्तों को खिलाया करता था। यह किसी मनुष्य के पतन की पराकाष्ठा है।
अब ऐसी घटनाओं को किसी का निजी मामला बताकर टालना उचित नहीं है। समाज में नैतिक मूल्यों, दया और करुणा की स्थापना के लिए प्रभावी ढंग से प्रयास होने चाहिएं।