जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास कार्रवाई में पांच खूंखार विदेशी आतंकवादियों का खात्मा सुरक्षा बलों के लिए बड़ी सफलता है। निश्चित रूप से इससे जम्मू-कश्मीर में शांति की स्थापना में सहायता मिलेगी। यह हमारे सतर्क सुरक्षा बलों के शौर्य का परिणाम है कि आतंकवादियों के बारे में पर्याप्त खुफिया जानकारी जुटाई गई और 'सही समय' पर उन्हें धराशायी कर दिया गया। उक्त कार्रवाई इस दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि साल 2021 के बाद आतंकवादियों की घुसपैठ का ‘सबसे बड़ा प्रयास’ विफल किया गया है।
इस दौरान भारतीय जवानों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ। इससे एक बार फिर पाकिस्तान का पाखंड खुलकर सामने आ गया है। एक ओर तो वह संघर्ष विराम समझौता लागू करने का ढोंग कर रहा है, दूसरी ओर एलओसी पर आतंकवादी भेज रहा है। अगर ये (आतंकवादी) चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाते हुए घुसपैठ में कामयाब हो जाते तो किसी बड़ी वारदात को अंजाम देते, जिसके बाद पाक एक बार फिर बड़ी मासूमियत से यह दावा करता कि इस घटना में उसका कोई हाथ नहीं है!
चूंकि अभी 15 अगस्त में करीब दो महीने शेष हैं। इस राष्ट्रीय उत्सव का आयोजन आतंकवादियों के निशाने पर रहता है। वे रंग में भंग डालने की पूरी कोशिश करते हैं। निस्संदेह सुरक्षा बलों की इस कार्रवाई से यह भी जाहिर होता है कि बलों व एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल कायम है, जिससे सूचनाओं का उचित ढंग से आदान-प्रदान हो रहा है। इसके आधार पर केरन सेक्टर के जुमागुंड क्षेत्र में यह अभियान इतना सफल रहा।
भारतीय सेना का यह कहना सत्य है कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन इस केंद्र शासित प्रदेश में आतंक मचाने के लिए संघर्षविराम को ‘मुखौटे’ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इस समझौते के नाम पर पाक फौज यह (झूठा) दावा करती है कि वह बेहतर संबंधों के लिए प्रतिबद्ध है, जबकि आतंकवादियों को भेजना जारी रखती है।
एलओसी पर मारे गए उक्त आतंकवादी भारी मात्रा में हथियारों से लैस थे। यही नहीं, उन्हें 'अच्छी तरह' प्रशिक्षित बताया जा रहा है। इनमें से (आतंकवादी) रफीक और शमशेर जम्मू-कश्मीर गजनवी फोर्स (जेकेजीएफ) से जुड़े थे और फिलहाल बतौर हैंडलर पीओजेके में डेरा डाले थे। भारतीय सुरक्षा बलों के पास इनकी पूरी कुंडली थी।
इसी तरह जेकेजीएफ में पाकिस्तान के फैसलाबाद का निवासी मुर्तजा पठान उर्फ गजनवी अफगानिस्तान का पूर्व सैनिक था। वह संचालन कमांडर का जिम्मा संभालता था। इनके आने की सूचना देकर भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सराहनीय कार्य किया है, क्योंकि उसके आधार पर उन रास्तों पर गोपनीय ढंग से जवानों को तैनात कर दिया गया था, जहां से आतंकवादी आ सकते थे। यह रणनीति पूरी तरह सफल रही।
भारतीय जवानों ने इन आतंकवादियों का खात्मा करने में तो शौर्य का प्रदर्शन किया ही, संबंधित इलाकों में आधी रात तक कड़ी नजर भी रखी, जो (विषम भौगोलिक स्थिति और प्रतिकूल मौसम में) बहुत साहस का काम है। इस दौरान जरा-सी चूक के बहुत गंभीर परिणाम हो सकते थे, लेकिन उन्होंने इसकी कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी।
मारे गए आतंकवादियों के पास पांच ए के सीरीज की राइफल, पांच मैगजीन, ग्रेनेड समेत बड़ी संख्या में हथियार एवं गोला-बारूद के अलावा नाइट विजन उपकरण, दूरबीन आदि मिले हैं। यह सामान किसी बाजार में नहीं मिलता, इसके पीछे स्पष्ट रूप से सैन्य सहायता है। भारतीय सुरक्षा बलों को इसी तरह चौकस रहकर आतंकवादियों पर कड़ी नजर रखते हुए उनका खात्मा करना चाहिए, ताकि शांति की राह पर आगे बढ़ता हुआ जम्मू-कश्मीर विकास के मार्ग पर भी आगे बढ़ता जाए।