जम्मू विश्वविद्यालय में सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को परोक्ष रूप से यह चेतावनी दी है कि अगर उसकी ओर से आतंकवादी गतिविधियां की गईं तो भारत सर्जिकल स्ट्राइक जैसी बड़ी कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा। हाल में एलओसी को पार करते हुए कम से कम नौ आतंकवादी मारे गए थे।
स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने अतीत से कोई सबक नहीं लिया और वह आतंकवादियों को एलओसी की ओर धकेलता जा रहा है। भारतीय सुरक्षा बलों की सतर्कता से ऐसे आतंकवादी धड़ाधड़ मारे जा रहे हैं, लेकिन यह कार्रवाई आत्मरक्षा के लिए है। इससे पाकिस्तानी फौज, जो आतंकवादियों का पालन-पोषण करती है, को कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है।
अगर पाक फौज को सबक सिखाना है तो एलओसी के पार जाकर बड़ी कार्रवाई करना आवश्यक है। भारत ने पूर्व में ऐसी कार्रवाइयों को कामयाबी से अंजाम दिया था, लेकिन जिस तरह साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक का डंके की चोट पर ऐलान किया, उससे देशवासियों में एक खास तरह का आत्मविश्वास आया है। वहीं, पाकिस्तान की जनता के सामने उसकी फौज की कमजोरी जाहिर हुई, जो इस भ्रम में जी रही थी कि रावलपिंडी के जनरल अजेय हैं।
निस्संदेह भारत का एलओसी के पार जाकर सैन्य कार्रवाई करना न केवल आतंकवादियों, बल्कि उनके आकाओं को भी कड़ा संदेश था कि अगर अगली बार आतंकी घटना हुई तो जवाबी कार्रवाई इससे बड़े पैमाने पर की जाएगी। राजनाथ सिंह ने उचित ही कहा है कि भारत ताकतवर बनता जा रहा है और जरूरत पड़ी तो वह सीमा के इस पार भी मार सकता है और जरूरत पड़ी तो उस पार भी जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर ने लंबे समय तक आतंकवाद का दंश झेला है। आज वहां आतंकवाद पर कड़ा नियंत्रण है, लेकिन इसका पूरी तरह खात्मा नहीं हुआ है। वहां कुछ माह के अंतराल के बाद ऐसे आतंकी हमले हो जाते हैं, जिनमें हमारे जवान वीरगति को प्राप्त होते हैं। वहीं, पाक सोशल मीडिया के जरिए कश्मीरी युवाओं को भड़काने के हथकंडे आजमा रहा है। हालांकि भारतीय एजेंसियां ऐसे हैंडल्स के खिलाफ कार्रवाई करती रहती हैं।
राजनाथ सिंह के भाषण से यह भी स्पष्ट हुआ कि पुलवामा और उरी जैसी घटनाओं के बाद प्रधानमंत्री ने 10 मिनट में सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला ले लिया था। निस्संदेह ऐसे फैसलों के पीछे राजनीतिक नेतृत्व का दृढ़ निश्चय और सेना की तैयारी होती है। उरी हमले के बाद देशवासियों में गुस्सा था। उसके साथ कहीं न कहीं यह विश्वास भी था कि प्रधानमंत्री मोदी कोई कठोर कदम उठाएंगे। उसके बाद 'सर्जिकल स्ट्राइक' हुई। भारत में सोशल मीडिया पर पहली बार यह शब्द बहुत चर्चित हुआ था।
साल 2019 में देश लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रहा था, तब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ। पूर्व के अनुभव को देखते हुए देशवासियों को पूर्ण विश्वास था कि मोदी पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, जो पिछली बार की तुलना में बड़े स्तर पर होगी। उधर, पाकिस्तानी नेताओं के बयानों में भी भय झलक रहा था। उसके बाद पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह भारतीय वायुसेना के विमानों ने बालाकोट में जैश के ठिकानों को ध्वस्त करते हुए कई आतंकवादियों को मार गिराया।
वह कार्रवाई इतनी घातक थी कि एक ओर तो पाकिस्तान किसी भी तरह के नुकसान से इन्कार करता रहा, जबकि दूसरी ओर स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय मीडिया को वहां जाने से हफ्तों रोकता रहा। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए समय-समय पर वैसी कार्रवाई होती रहनी चाहिए।
अब भारत को आतंकवाद से 'आत्मरक्षा' के साथ ही 'आक्रामक' रुख दिखाना होगा। जब तक रावलपिंडी में 'आतंकवाद का कारखाना' बंद नहीं होगा, एलओसी पर आतंकवादी आते रहेंगे। पाकिस्तानी आतंकवाद को कुचलने के लिए कठोर कार्रवाई ही उचित एवं न्याय संगत समाधान है।