महाराष्ट्र में सियासी तस्वीर बदलने की संभावना तो थी, लेकिन यह इतनी जल्दी हकीकत बन जाएगी, इसकी उम्मीद कम ही थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की, जबकि पार्टी के आठ अन्य नेताओं ने मंत्री पद की शपथ लेकर अगले साल होने वाले लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले 'विपक्षी एकता' की कोशिशों को बड़ा झटका दे दिया है।
बिहार के पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद विश्लेषकों का मानना था कि राकांपा प्रमुख शरद पवार इनकी एकजुटता में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन अब तो हालात और ही दिशा में जाते नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि विपक्ष की उस बैठक में शरद पवार और राकांपा की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले की मौजूदगी से अजित पवार और उनके समर्थक खुश नहीं थे। उसके बाद अजित पवार ने निचले सदन में विपक्ष के नेता (एलओपी) के पद से इस्तीफा दे दिया, जो स्वीकृत हो गया।
महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसे प्रसंग दुर्लभ ही होंगे, जब कोई विपक्ष के नेता से सीधे उपमुख्यमंत्री बन जाए। जब पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा तथा शिवसेना का गठबंधन टूटा तो अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सबको हैरत में डाल दिया था। हालांकि अजित का वह प्रयास सफल नहीं हुआ और उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। अब अजित फिर उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। वे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में भी यह पद संभाल चुके हैं।
एमवीए सरकार गिरने के बाद अजित राकांपा में अलग-थलग पड़ गए थे। पिछले महीने जब शरद पवार ने सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया तो अजित खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। वे उदास नजर आ रहे थे और मीडिया से बातचीत किए बिना ही पार्टी कार्यालय से चले गए थे। अगर मीडिया से बात करते तो उन्हें 'दरकिनार' किए जाने के बारे में जरूर पूछा जाता। अब अजित ने इस कदम से राकांपा नेतृत्व को 'उलझन' में डाल दिया है।
पार्टी प्रवक्ता महेश तपासे भले ही यह कहते रहें कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में राकांपा के नौ विधायकों के शामिल हो जाने को पार्टी का आधिकारिक समर्थन नहीं है, लेकिन अजित आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उन्होंने प्रेसवार्ता में कहा कि उन्हें राकांपा के 'सभी' लोगों का आशीर्वाद प्राप्त है। अब राकांपा का क्या होगा? क्या यह पार्टी उसी तरह दो गुटों में बंट जाएगी, जैसे शिवसेना बंट गई थी? क्या अजित पवार अधिकाधिक विधायकों को अपने पाले में ला पाएंगे या उन्हें एक बार फिर शरद पवार की शरण में जाना होगा, जैसे पिछली बार गए थे?
शरद पवार ने कहा है कि पहले भी ऐसी बगावत हो चुकी है और वे फिर से पार्टी को खड़ी कर दिखाएंगे। निस्संदेह वे महाराष्ट्र के दिग्गज नेता हैं, जिनके पास केंद्र और राज्य की राजनीति का बहुत लंबा अनुभव है, लेकिन उनके भतीजे और विधायकों की बगावत से यह संदेश गया है कि पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो गई है। शरद पवार ने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद का जिम्मा सौंपते हुए प्रफुल्ल पटेल पर भरोसा किया था, जो प्रेसवार्ता में अजित पवार के साथ बैठे दिखाई दिए!
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राकांपा अब एक कार्यकारी अध्यक्ष के भरोसे है? सवाल तो यह भी है कि अगर आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष 'एकजुटता' दिखाए तो धरातल पर उसका कितना असर होगा? चूंकि अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री बनने के बाद यह भी कहा कि विपक्ष का कोई नेता जो नेतृत्व कर सके, दिखाई नहीं देता है।