प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए जिन बिंदुओं का उल्लेख किया, वे विचारणीय हैं। उन्होंने उचित ही कहा है कि विवादों, तनावों और महामारी से घिरे विश्व में खाद्यान्न, ईंधन और उर्वरक संकट सभी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है और हमें मिलकर यह विचार करना चाहिए कि क्या एससीओ एक ऐसा संगठन बन रहा है, जो भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार है।
प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मौजूदगी में आतंकवाद को क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए प्रमुख खतरा बताते हुए सत्य कहा कि कुछ देश सीमापार आतंकवाद को अपनी नीतियों के औजार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, आतंकवादियों को पनाह देते हैं और एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
सब जानते हैं कि मोदी का संकेत किसकी ओर था। आज आतंकवाद एक ऐसा वैश्विक खतरा बन चुका है, जिस पर ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है, लेकिन चीन और पाकिस्तान इसमें बाधा डाल रहे हैं। मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान को लेकर चिंताएं और अपेक्षाएं एससीओ के समक्ष रखकर एक बार फिर भारत की उदारता का परिचय दिया है।
इस समय अफ़ग़ानिस्तान घोर संकट का सामना कर रहा है। यह देश खाद्यान्न, स्वास्थ्य, रोजगार समेत कई क्षेत्रों में समस्याएं झेल रहा है। आर्थिक संकट तो अपनी जगह है ही, जिसके मद्देनजर पूर्व में भारत सहायता भेज चुका है। भारत सरकार वहां ऐसी कई परियोजनाएं सफलतापूर्वक चला चुकी है, जिनका संबंध आम नागरिकों के जीवन और कल्याण से है। अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की भलाई के लिए जो प्रयास होंगे, उनमें भारत की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगी।
इस बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का संबोधन अत्यंत हास्यास्पद रहा है। उनके इन शब्दों पर ध्यान दीजिए- 'आतंकवाद और उग्रवाद के कई सिर वाले राक्षस से, चाहे वह व्यक्तियों, समाज या राज्यों द्वारा प्रायोजित हो, पूरी ताकत और दृढ़ विश्वास के साथ लड़ना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में कूटनीतिक मुद्दे के लिए इसे एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने के किसी भी प्रलोभन से बचना चाहिए। ... राज्य प्रायोजित आतंकवाद समेत सभी तरह के आतंकवाद की स्पष्ट और कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। चाहे कारण या बहाना कुछ भी हो, निर्दोष लोगों की हत्या का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।’
यह कह कौन रहा है? छाज बोले तो बोले, छलनी भी बोले! जिस देश ने अस्तित्व में आने के साथ ही हिंसा व आतंकवाद की पैरवी शुरू कर दी हो, जिसने अल्पसंख्यकों को इतना सताया कि आज उनकी तादाद घटते-घटते तीन प्रतिशत पर आ गई हो, जहां आए दिन अल्पसंख्यकों की बेटियों का अपहरण कर उनका जबरन धर्मांतरण किया जाता हो, उसका प्रधानमंत्री ऐसे शब्द बोल रहा है! यह तो पाखंड की पराकाष्ठा है।
शहबाज शरीफ आतंकवाद को कई सिरों वाला राक्षस बता रहे हैं। उनके इस कथन में सच्चाई है, क्योंकि वे आतंकवाद के जिन सिरों की बात कह रहे हैं, वे कोई और नहीं, बल्कि हाफिज सईद, मसूद अजहर, अब्दुल रहमान मक्की, जकीउर्रहमान लखवी, दाऊद इब्राहिम ... हैं। शहबाज शरीफ इनके बीच में पाकिस्तान के सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख का चेहरा भी अवश्य जोड़ लें, क्योंकि उक्त आतंकवादियों के असल आका तो वे ही हैं।
शहबाज शरीफ के भाषण-लेखक की 'हिम्मत' की दाद देनी पड़ेगी, जिसका देश आतंकवाद के दलदल में डूबा है, लेकिन उसका प्रधानमंत्री अपने भाषण में 'शांति' के उपदेश दे रहा है! यह पाखंड के साथ निर्लज्जता का ऐसा उदाहरण है, जो संसार में अन्यत्र मिलना अत्यंत दुर्लभ है। क्या एससीओ इस ओर ध्यान देगा?