सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप कई सहूलियत लेकर आए थे, लेकिन अब इनके खतरनाक प्रयोग सामने आ रहे हैं। ये आर्थिक धोखाधड़ी, ठगी, गंभीर अपराधों के अलावा शत्रु एजेंसियों की गतिविधियों के लिए कारगर हथियार भी साबित हो रहे हैं।
हाल में डीआरडीओ के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का ‘ज़ारा दासगुप्ता’ नाम का इस्तेमाल करने वाली पाकिस्तानी खुफिया एजेंट की ओर आकर्षित होकर उसके साथ रक्षा परियोजनाओं, भारतीय मिसाइल प्रणालियों के राज़ साझा करने का मामला बहुत चर्चा में रहा था, वहीं अब सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक संविदा कर्मचारी को पाकिस्तानी महिला खुफिया एजेंट से संवेदनशील सूचना साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
ये घटनाएं देश की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक हैं। आखिर क्या वजह है कि वरिष्ठ वैज्ञानिक से लेकर जवान और संविदाकर्मी तक पाकिस्तानी महिलाओं के जाल में फंसकर देश की सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारी उनके साथ साझा कर देते हैं? एक के बाद एक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। रक्षा संस्थानों और सुरक्षा बलों से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों को सावधानी बरतने के लिए कई हिदायतें भी दी गई हैं।
निस्संदेह इसके मद्देनजर अधिकारी-कर्मचारी काफी सतर्क रहने लगे हैं, लेकिन अगर उनमें से एक भी कड़ी कमजोर हो गई, एक भी व्यक्ति ने जाने-अनजाने में जानकारी साझा कर दी, तो उससे सबकी सतर्कता पर पानी फिर सकता है। जो लोग संवेदनशील स्थानों पर तैनात हैं, उन्हें खास सतर्कता बरतनी चाहिए, वहीं आम नागरिकों को भी चौकन्ना रहना चाहिए।
हाल में पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों द्वारा हनीट्रैप के जितने भी मामले सामने आए हैं, उन सबमें कुछ बातें लगभग समान हैं। जैसे, सब अकाउंट महिलाओं के नाम पर बने थे, सबके नाम हिंदू थे, सब फेसबुक या वॉट्सऐप के जरिए दोस्ती का प्रस्ताव रखती थीं, वे खुद को ऐसे क्षेत्र से बताती थीं, जिनके आधार पर संबंधित व्यक्ति से जानकारी निकलवा सकें, सब सुंदरता का जाल फेंकती थीं, अश्लील वार्ता करती थीं, अगर किसी व्यक्ति को धन का लालच था तो उसे कुछ रुपए भी भेज देती थीं।
इनके काम का तरीका एक जैसा है। वे धीरे-धीरे जानकारी लेती रहती हैं। यह सब इतना 'योजनाबद्ध' ढंग से होता है कि 'शिकार' को पता ही नहीं चलता कि वह शिकार बन रहा है। चूंकि ये महिलाएं आईएसआई द्वारा इसी काम के लिए प्रशिक्षित होती हैं, तो इन्हें मालूम होता है कि 'शिकार' को बातों में कैसे फंसाया जाए। वह व्यक्ति इसे प्रेम समझकर गोपनीय जानकारी भेजता रहता है। कुछ लोगों के दिलो-दिमाग पर तो इनका ऐसा 'नशा' हो जाता है कि वे उस महिला से शादी करने का ख्वाब देखने लगते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि वह महिला आईएसआई की एजेंट थी, तब तक काफी देर हो जाती है।
जो गोपनीय सामग्री पहले भारत के सिस्टम में महफूज थी, वह अब दुश्मन के हाथों में होती है, जिसके बूते वह हमारे देश को नुकसान पहुंचाने के लिए साजिशें रचता है। यूं तो पाकिस्तानियों की भाषा, लहजे में कुछ फर्क होता है, लेकिन इसे भाषा संबंधी गहरी जानकारी रखने वाले लोग ही पकड़ सकते हैं। जिनका इससे वास्ता नहीं, उनके लिए यह फर्क कर पाना बहुत मुश्किल है।
वहीं, आईएसआई ने जिन महिलाओं को इस काम में लगा रखा है, उन्हें पहनावे, रहन-सहन, भाषा, लहजे को लेकर विशेष रूप से प्रशिक्षित करती है, ताकि 'शिकार' को जरा-सा भी शक न हो। इससे बचने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि सोशल मीडिया या अन्य किसी भी माध्यम से अनजान लोगों की ओर से आने वाले मैत्री/प्रेम प्रस्ताव को बिल्कुल स्वीकार न करें। अगर वह आपत्तिजनक चर्चा करे तो पुलिस को सूचना दें।