पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति के संबंध में जो दुष्प्रचार किया था, उसकी पोल खुलती जा रही है। उसने जिस कथित आजादी का नारा देकर आतंकवाद और अलगाववाद को परवान चढ़ाया, अब उससे लोगों का मोहभंग होने लगा है। पाक ने पीओके की जिस कथित संसद में अलगाववादी यासीन मलिक की 11 वर्षीया बेटी से बयान दिलवाए हैं, उससे स्पष्ट है कि अब उसके दावे हवा-हवाई हो चुके हैं।
निस्संदेह भारतीय सुरक्षा बलों, एजेंसियों और जम्मू-कश्मीर के निवासियों ने अपने यहां शांति बहाली के लिए बड़े बलिदान दिए हैं। इसका नतीजा है कि आज पाकिस्तान को इस मुद्दे को ज़िंदा रखने के लिए बच्चों का सहारा लेना पड़ रहा है। उन्हें कोई कुछ भी लिखकर दे दे, वे वही पढ़ देंगे। पाक की मासूम बच्चों को आगे कर आतंकवाद का खेल खेलने की पुरानी आदत है।
पहले जब कश्मीर में पत्थरबाजी होती थी तो बच्चों को इसीलिए आगे किया जाता था, ताकि सुरक्षा बलों की कार्रवाई में बाधा आए। यह सब पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के आकाओं के इशारे पर होता था। जब सुरक्षा बल किसी अभियान के तहत आतंकवादियों पर गोलीबारी करते तो स्थानीय अलगाववादी सक्रिय हो जाते तथा बच्चों को आगे कर देते थे।
अब वे बातें बीत गईं। अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधान हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता जा रहा है। अलगाववादियों की हिम्मत पस्त हो गई है। आम कश्मीरी सुकून में है। बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। लोग अपने कामकाज में व्यस्त हैं। जम्मू-कश्मीर में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक आ रहे हैं। निवेश हो रहा है। स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ रही है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। जरूरत की चीजों की कोई किल्लत नहीं है।
उधर, पाकिस्तान में हाहाकार मचा है। पिछले दिनों वहां से ऐसे कई वीडियो आए थे, जिनमें लोग आटा लेने के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े नजर आए थे। कई जगह भगदड़ मची, छीना-झपटी, मारपीट हुई। दर्जनों लोगों की मौत हो गई। पीओके में तो हालात और भी बदतर हैं। वहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। अब तो पीओके के लोग यूट्यूब पर खुलकर कह रहे हैं कि उन्होंने वहां रहकर जीवन की सबसे बड़ी भूल कर दी। पाकिस्तान की सेना और सरकार अपने-अपने तरीकों से उन्हें निचोड़ रही हैं।
इन दिनों पीओके में सबसे ज्यादा चर्चा दैनिक जीवन में काम आने वाली चीजों की कीमतों को लेकर हो रही है। वहां आटा, चावल, चीनी, घी, तेल, दालें ... सब चीजें बहुत ज्यादा महंगी हो चुकी हैं। जब उन लोगों को पता चलता है कि ये ही चीजें जम्मू-कश्मीर में तुलनात्मक रूप से बहुत कम कीमत में उपलब्ध हैं और कहीं कोई किल्लत नहीं है, तो वे अपनी किस्मत को कोसते हैं।
पीओके में जिन लोगों ने नब्बे का दशक देखा है, वे यह स्वीकार करने लगे हैं कि पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बची-खुची साख भी गंवा दी थी। हाल के वर्षों में भारत सरकार के सख्त रुख के बाद अब पाक को पहले की तरह समर्थन नहीं मिल रहा है। वह गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। बड़ी मुश्किल से आईएमएफ थोड़ी मदद कर देता है। उससे रावलपिंडी के जनरलों के खर्चे पूरे नहीं हो रहे। उनका हिस्सा निकालने के बाद सत्तारूढ़ दल के नेता अपना हिस्सा लेते हैं। उसके बाद जो रकम बचती है, उसका बड़ा हिस्सा (पाकिस्तानी) पंजाब जाता है।
आतंकवादी संगठनों के लिए भी एक हिस्सा रखना होता है। फिर बाकी राज्यों को कुछ दे दिया जाता है। इन सब 'खर्चों' को निकालने के बाद पीओके की जनता के हिस्से में चवन्नी-अठन्नी ही आती हैं। ऐसे में पाक को पीओके में बगावत होने का डर सता रहा है। लिहाजा वह ओछे हथकंडे अपनाकर वही पुराना राग अलापने की कोशिश कर रहा है, जिसे अब सुनने को कोई तैयार नहीं है।