कभी 'तब्दीली' लाने का नारा लगाकर पाकिस्तान की सत्ता में आए इमरान ख़ान की ज़िंदगी में बड़ी 'तब्दीली' आ गई है। वह भी ऐसी, जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की होगी। उन्हें अदालत ने भ्रष्टाचार के एक मामले में तीन साल कैद की सजा सुनाई, लेकिन पर्दे के पीछे से इसके संकेत फौज ने ही दिए थे।
इमरान पर सत्ता में रहने के दौरान महंगे सरकारी उपहार बेचने का आरोप है। यह ऐसा आरोप है, जो पाक के लगभग सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों / राष्ट्रपतियों पर लग चुका है। इस बात के पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि उन्होंने कुर्सी पर रहते हुए सरकारी उपहारों पर खूब हाथ साफ किए थे।
इमरान के खिलाफ फैसला सुनाते हुए इस्लामाबाद स्थित जिला एवं सत्र अदालत के अतिरिक्त न्यायाधीश हुमायूं दिलावर ने बड़ी दिलचस्प टिप्पणी की- 'पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष के खिलाफ संपत्ति की गलत घोषणा करने के आरोप साबित हुए हैं।' पाक में किस राजनेता ने अपनी संपत्ति का सही विवरण दिया है?
चाहे शरीफ खानदान हो या भुट्टो खानदान, सब पर हेराफेरी, कालाधन और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। सेना प्रमुख समेत वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जिस तरह ठाठ की ज़िंदगी जीते हैं, वह उनके वेतन से कैसे संभव है? कार्रवाई तो उन सब पर होनी चाहिए। शिकंजे में सिर्फ एक नेता क्यों? इमरान ने अगस्त 2018 में प्रधानमंत्री बनने से पहले ईमानदारी के बड़े-बड़े वादे किए थे, जिन्हें निभाने में वे नाकाम रहे। वे फौज में अपने चहेतों को आगे बढ़ाने की कोशिश में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बाजवा से भिड़ गए, जिसके बाद उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी।
अब उन्हें 'भ्रष्ट आचरण' का दोषी ठहराकर पाक फौज ने उनकी छवि पर बड़ा हमला बोला है। चूंकि कुर्सी गंवाने के बाद इमरान को जनता से काफी सहानुभूति मिली थी। उनकी लोकप्रियता बढ़ गई थी। पाक फौज को आशंका है कि यह सहानुभूति इमरान को दोबारा सत्ता में ला सकती है। अगर ऐसा हुआ तो उनका कद फौज से बड़ा हो जाएगा। लिहाजा अदालती फैसले के जरिए उनकी 'ईमानदार नेता' वाली छवि तोड़ने की कोशिश की गई है।
इस फैसले के साथ पाक फौज जनता की प्रतिक्रिया देखना चाहती है। चूंकि 9 मई को अल-कादिर ट्रस्ट भ्रष्टाचार मामले में इमरान की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने जमकर हुड़दंग मचाया था। इस बार इमरान के पक्ष में ऐसा कोई प्रदर्शन नहीं हुआ। इससे रावलपिंडी के जनरल हर्षित हैं। उन्हें लगता है कि वे एक बार फिर जनता को स्पष्ट बता चुके हैं कि पाक के असल 'बॉस' वे ही हैं, तो किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि उनसे टक्कर लेकर कोई सलामत रह सकता है।
हालांकि इमरान के समर्थकों का मानना है कि उनकी 'खामोशी' तूफान से पहले की 'शांति' है। पिछली बार फौज ने पीटीआई के कई कार्यकर्ताओं व समर्थकों पर मुकदमे कर उन्हें जेल में डाला और खूब पिटाई की थी। इसलिए वे बहुत फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। उन्हें यह भी आशंका है कि अगर वे इस बार फिर बड़े स्तर पर उत्पात मचाएंगे तो जेल में कैद इमरान की जान को खतरा हो सकता है। ऐसे हालात में 'देखो और इंतज़ार करो' की नीति अपनाना ही ठीक है।
हो सकता है कि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में रहने वाले पीटीआई समर्थक कुछ रैलियां निकालकर अपना आक्रोश प्रकट करें, जिसकी पाक फौज ज्यादा परवाह नहीं करती। यह ध्यान में रखना चाहिए कि अभी इमरान के लिए कानूनी विकल्प समाप्त नहीं हुए हैं। उनके वकील उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक उन्हें निर्दोष साबित करने की पूरी कोशिश करेंगे। पीटीआई समर्थक उच्चतम न्यायालय से बहुत उम्मीद लगाए बैठे हैं, क्योंकि वहां कुछ जजों का फौज से 'छत्तीस का आंकड़ा' है और वे इमरान से हमदर्दी रखते हैं।
इस बात की काफी संभावना है कि उच्चतम न्यायालय उन्हें बड़ी राहत दे दे। अगर इमरान आगामी चुनाव से पहले राहत पा गए तो अपनी रैलियों में फौज को जमकर आड़े हाथों लेंगे। साथ ही जनता के मन में यह भावना बलवती होगी कि रावलपिंडी के जनरल इतने भी ताकतवर नहीं हैं, जितने ये नजर आते हैं!