‘डिजिटल वैयक्तिक डाटा संरक्षण विधेयक’ डिजिटल होते भारत के भविष्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सरकार को इसे लोकसभा में पारित कराने में सफलता मिल गई। उम्मीद है कि राज्यसभा में भी इस पर सार्थक बहस होगी और अंतत: यह कानून का रूप लेगा।
आज 'डाटा' को लेकर बहुत जागरूकता की जरूरत है। प्राय: देखने में आता है कि अभी ज्यादातर यूजर्स को डाटा सुरक्षा के बारे में उतनी जानकारी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। इंटरनेट से संबंधित सेवाएं देने वाली कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों, जिनके उत्पादों का उपयोग भारत में भी खूब किया जा रहा है, की नीतियों की अमेरिका और यूरोप में इस बात को लेकर काफी आलोचना हो रही है, क्योंकि उन्होंने डाटा सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए थे। समयानुसार वहां भी कानून बने और वे कंपनियां उनका पालन करने के लिए बाध्य हुईं।
भारत के संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उचित ही कहा कि यह विधेयक देश के 140 करोड़ लोगों के डिजिटल वैयक्तिक डाटा की सुरक्षा से संबंधित है। इसकी आज देश को बड़ी जरूरत है। खासतौर से तब, जब सरकार हर क्षेत्र में डिजिटलीकरण को बढ़ावा दे रही है।
खरीदारी, भुगतान, टिकट बुक करने, परीक्षा फॉर्म भरने से लेकर जीवन के हर पहलू का संबंध डिजिटलीकरण से हो गया है। ऐसे में लोगों के डिजिटल डाटा को सुरक्षित रखने के लिए प्रभावी कानून होना चाहिए। अगर समय रहते इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
आज डिजिटल अपराध बड़ी चुनौती बन चुके हैं, जिनके मूल में भी 'डाटा' है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में 90 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़ चुके हैं। जिस तरह गांव-ढाणियों तक डिजिटल सेवाओं का प्रसार हो रहा है, उससे तय है कि जल्द ही यह आंकड़ा 100 करोड़ को पार कर जाएगा।
आज डाटा को ‘न्यू ऑयल’ कहा जाता है, तो इसके पीछे कई तथ्य हैं। डाटा मात्र अक्षरों और संख्याओं का समूह नहीं है। इससे बड़े-बड़े काम अंजाम दिए जा सकते हैं। अगर सरकार के पास सही डाटा हो तो वह विकास संबंधी योजनाएं बेहतर ढंग से बना सकती है। चुनावी राजनीति में डाटा की अहमियत बहुत बढ़ गई है। आर्थिक क्षेत्र से संबंधित सेवाएं देने वाली कंपनियों के लिए तो डाटा प्राण की तरह है। अगर वह ग़लत हाथों में पड़ जाए तो भारी वित्तीय नुकसान हो सकता है।
कई ऐप और वेबसाइटों पर डाटा बेचने के गंभीर आरोप लग चुके हैं। कुछ यूजर्स ने किसी वेबसाइट पर रोचक वीडियो देखे। अगले ही दिन उनके पास अनजान लोगों के फोन आने लगे। उनमें सामान खरीदने, लोन लेने, दोस्ती करने समेत कई प्रस्ताव थे। वे यूजर्स अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त होते, सफर करते या आराम कर रहे होते ... अचानक उनके फोन की घंटी बजती और ऐसे सामान / सेवा की पेशकश होती, जिसके वे इच्छुक नहीं थे।
दरअसल उस वेबसाइट ने बड़ी चालाकी से उनका डाटा लेकर बेच दिया था। कुछ दिनों बाद उनमें से कई यूजर्स के पास साइबर अपराधियों के फोन भी आने लगे, जो उन्हें बातों में उलझाकर लूटना चाहते थे। प्राय: जब किसी वेबसाइट पर अकाउंट बनाया जाता है तो उसकी ओर से कई शर्तें रखी जाती हैं। यूजर्स उन्हें पढ़ने का कष्ट करने के बजाय 'ओके' करते जाते हैं, ताकि जल्द से जल्द अकाउंट बन जाए। हो सकता है कि उन शर्तों में से कोई शर्त ऐसी हो, जिसका संबंध निजता और डाटा सुरक्षा से हो!
डाटा का उपयोग जासूसी के लिए भी होता है। इस मामले में चीन काफी सतर्क है। उसने खुद के सर्च इंजन, मैसेजिंग ऐप, सोशल मीडिया वेबसाइट विकसित किए, ताकि डाटा दूसरों के हाथों में न जाए। हालांकि चीन खुद दूसरों के डाटा को ललचाई नजरों से देखता है और उसे अनुचित ढंग से हासिल करने के हथकंडे आजमाता है।
भारत सरकार ने कई चीनी ऐप्स पर इसीलिए प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि उनसे यूजर्स की निजता को खतरा था। अब ‘डिजिटल वैयक्तिक डाटा संरक्षण विधेयक’ लाकर सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि डाटा संरक्षण उसकी प्राथमिकता में है। इसके लिए जरूरी प्रावधान किए जाएंगे। कंपनियों को भी उन पर अमल करना होगा।