एक पारिवारिक मामले का फैसला सुनाते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि 'पति का काला रंग होने के कारण उसे अपमानित करना क्रूरता है', पर समाज को गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है। महिला हो या पुरुष, उसकी त्वचा का रंग जो भी हो, उसके आधार पर उसे कमतर मानना और अपमानित करना अनुचित है। हर मनुष्य का आत्मसम्मान होता है, जिसका ध्यान रखना ही चाहिए।
दु:खद है कि आज भी त्वचा के रंग के कारण लोगों को अपमान का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि शिक्षा के प्रसार के साथ समाज में काफी जागरूकता आई है, लेकिन इस बुराई का पूरी तरह खात्मा नहीं हुआ है। अगर एक व्यक्ति के साथ भी रंग के आधार पर भेदभाव होता है तो वह अमानवीय है। उक्त मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 44 वर्षीय व्यक्ति के उसकी 41 वर्षीया पत्नी से तलाक पर मुहर लगा दी।
साथ ही यह टिप्पणी की कि पति की त्वचा का रंग ‘काला’ होने के कारण उसका अपमान करना क्रूरता है तथा यह उस व्यक्ति को तलाक की मंजूरी दिए जाने की ठोस वजह है। न्यायालय ने साक्ष्यों की बारीकी से जांच की तो पाया कि पत्नी काला रंग होने की वजह से अपने पति का अपमान करती थी और इसी वजह से उसे छोड़कर चली गई थी। इस पहलू को छिपाने के लिए उसने पति के खिलाफ अवैध संबंधों के झूठे आरोप भी लगाए। इस तथ्य को न्यायालय ने 'निश्चित तौर पर क्रूरता' के समान माना है।
भारतीय संस्कृति में रंगभेद के लिए कोई स्थान नहीं है। बल्कि यहां तो सांवले और काले रंग के प्रति बहुत सम्मान का भाव रहा है। हिंदू समाज काली माता की आराधना करता है, जो शक्ति स्वरूपा हैं। काली गाय की सेवा सौभाग्यवर्धक मानी जाती है। श्रीकृष्ण तो कहलाते ही 'श्याम' हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जिनके आधार पर कह सकते हैं कि सनातन धर्म और संस्कृति में हर रंग को खुले हृदय से स्वीकारा गया है।
फिर यह रंगभेद का विष समाज में कहां से आया? प्राय: वैवाहिक विज्ञापनों में गोरे जीवनसाथी को प्राथमिकता दी जाती है। आज भी रिश्तों में रंग के आधार पर भेदभाव की घटनाएं देखने को मिल जाती हैं। सब परिवारों में नहीं तो कई परिवारों में बच्चों को त्वचा के रंग के कारण कम या ज्यादा लाड़-प्यार मिलता है। अगर लड़की का रंग गोरा हो तो कहा जाता है कि इसे तो कोई रंग देखकर ही ब्याह ले जाएगा।
दरअसल यह उस परिवार में दूसरी लड़की के लिए ताना होता है, जिसका रंग गोरा नहीं है। जिनका रंग सांवला या काला होता है, उन पर चुटकुले बनते हैं। लोग उन्हें पढ़ते हैं, खूब हंसते हैं। यह कैसी विडंबना है! बहुत शर्मनाक!
एक युवक, जिसका रंग सांवला था, अपनी मां के साथ किसी रिश्तेदार के यहां गया। बातों ही बातों में युवक की बहन के रिश्ते की चर्चा होने लगी, जो उस समय वहां नहीं थी। युवक का रंग देखकर लड़के वालों ने सोचा कि इसकी बहन का रंग भी ऐसा ही होगा। उन्होंने बातचीत के दौरान कुछ ऐसी टिप्पणियां कीं कि वह युवक बीच में ही उठकर चला गया। कहा, 'मेरी बहन का रंग गोरा है, लेकिन हम ऐसे परिवार से रिश्ता नहीं जोड़ सकते, जो इस कदर रंगभेद की मानसिकता से ग्रस्त है।'
महात्मा गांधी हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, लेकिन उन्हें भी अफ्रीका में रंगभेद का सामना करना पड़ा था। नेल्सन मंडेला के त्याग को कौन भूल सकता है! उन्होंने तो पूरा जीवन रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के नाम कर दिया था। वास्तव में रंग के आधार पर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानना एक तरह की आत्ममुग्धता है। जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह अन्य रंग वालों के गुणों का उपहास करता है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि रंग के आधार पर किसी की बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता या किसी भी खूबी में कोई अंतर नहीं आता। अमेरिका में बराक ओबामा पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे।
भारत समेत दुनिया के कई देशों में ऐसे शिक्षक, लेखक, वैज्ञानिक, सैनिक, नेता ... हुए हैं, जिनका रंग गोरा नहीं था, लेकिन वे अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुंचे। किसी की त्वचा का जो भी रंग हो, वह प्रकृति से मिला है। इसके आधार पर भेदभाव करना कोरा अज्ञान है। हर रंग अपनी जगह श्रेष्ठ है। हर मनुष्य की गरिमा के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।