मोदी सरकार के ख़िलाफ़ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। यह गिरना ही था। इसके गिरने की पहले से ही पूर्ण संभावना थी। विपक्ष के पास इतना संख्या-बल नहीं था कि वह मोदी सरकार को हटा देता। देशवासी यह भलीभांति जानते थे।
अलबत्ता जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन की कार्यवाही पूरी होने से पहले अविश्वास प्रस्ताव के गिरने की आधिकारिक घोषणा की तो देशभर से लोग टीवी और सोशल मीडिया के जरिए पल-पल की ख़बर ले रहे थे। मणिपुर के जिस मुद्दे पर यह अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, उस (प्रस्ताव के नतीजे) को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए अलग-अलग मायने हैं।
विपक्ष ने सरकार को घेरने की खूब कोशिश की। वहीं, सरकार ने भी उसके आरोपों का डटकर सामना किया। खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन काफी संतुलित और धारदार था। उन्होंने विपक्ष पर खूब शब्दबाण छोड़े। विपक्ष पहले ही जानता था कि उसका अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में नहीं टिकेगा। अगर वह संख्या-बल में सत्ता पक्ष से कुछ ही फासले पर होता तो सरकार के लिए चुनौती पैदा हो सकती थी।
याद करें, जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई थी। इस बार विपक्ष जानता था कि उसके वोट से सरकार की सेहत पर कोई असर होने वाला नहीं है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के जरिए उसने यह दिखाने की कोशिश की कि वह सक्रिय है, ज्वलंत मुद्दों को लेकर संवेदनशील है और सरकार को चुनौती देने की हिम्मत रखता है।
साथ ही हाल में बने 'इंडिया' गठबंधन के घटक दल आगामी लोकसभा चुनाव से पहले इसे टेस्ट की तरह देख रहे हैं। चूंकि इस गठबंधन के संबंध में बड़े सवाल हैं कि यह आगामी चुनावों तक कितना एकजुट रह पाएगा ... क्या इसके घटक दल मोदी सरकार का मुकाबला कर सकेंगे ... क्या ये इस स्थिति में हैं कि जनता के मुद्दों को आवाज दे सकें? 'इंडिया' गठबंधन ने इन सवालों के जवाब देने की भरसक कोशिश की। उसने 'एकता' भी दिखाई, लेकिन तैयारी में कई कमियां भी दिखीं।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को 'भारत माता' के बारे में बयान देने से पहले शब्दों का ध्यान रखना चाहिए था। उनकी पार्टी के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने एक बार फिर विवादित टिप्पणी कर दी। उन्होंने मोदी के लिए यह भी कह दिया कि 'आप एक बार नहीं, सौ बार प्रधानमंत्री बनें, हमें कोई फर्क नहीं (पड़ता) ... इसमें हमें कोई लेना-देना नहीं!'
कोई लेना-देना कैसे नहीं है? क्या अधीर रंजन यह कहना चाहते हैं कि आगामी सौ चुनावों तक वे और उनके गठबंधन के साथी विपक्ष में बैठें? निस्संदेह सरकार से सवाल करना विपक्ष का अधिकार है, लेकिन उसके लिए वरिष्ठ नेताओं को खूब होमवर्क के साथ आना चाहिए। इससे पहले, अधीर रंजन चौधरी 'इंडिया' गठबंधन को 'मजबूरी' बता चुके हैं।
ऐसे बयानों से जनता में यह संदेश जाता है कि विपक्ष ने सिर्फ नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठबंधन किया है, इसके अलावा उसकी कोई प्राथमिकता नहीं है! इससे विपक्ष की एकता के दावों में दरार साफ नजर आती है और भाजपा को भी यह कहने का अवसर मिल जाता है कि इस बारात में हर कोई दूल्हा बनना चाहता है!
सरकार को घेरने में विपक्ष काफी आक्रामक तो दिखाई दिया, लेकिन मोदी ने उसके आरोपों को उसी की ओर उछाल दिया। यह उनकी चिर-परिचित शैली है। वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी विपक्ष को इसी तरह जवाब देते थे।
वही झलक इन शब्दों में देखने को मिलती है- 'आज मैं देख रहा हूं कि आपने (विपक्ष) तय कर लिया है कि जनता के आशीर्वाद से राजग और भाजपा पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए प्रचंड जीत के साथ वापस आएंगे ... भगवान बहुत दयालु है और वह किसी न किसी माध्यम से अपनी इच्छा की पूर्ति करता है। मैं इसे भगवान का आशीर्वाद मानता हूं कि उसने विपक्ष को सुझाया और वे प्रस्ताव लेकर आए। विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव हमारे लिए शुभ होता है। मैंने वर्ष 2018 में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कहा था कि यह हमारे लिए फ्लोर टेस्ट नहीं है, बल्कि यह उनके लिए फ्लोर टेस्ट है और परिणामस्वरूप वे चुनाव हार गए।'
उम्मीद है कि इस अविश्वास प्रस्ताव के नतीजे के बाद विपक्ष अधिक तैयारी, अधिक लगन और उचित संयम के साथ जनता के मुद्दे उठाएगा तथा सरकार भी अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करते हुए उनका समाधान करेगी।