विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने उचित ही कहा है कि कोविड-19 अब दुनिया के लिए स्वास्थ्य आपात नहीं रह गया है, लेकिन अब भी यह ‘वैश्विक स्वास्थ्य खतरा’ बना हुआ है तथा कोरोना वायरस का नया स्वरूप पहले से ही जांच के दायरे में है। निस्संदेह कोरोना महामारी पर मजबूती से नियंत्रण पा लिया गया है, लेकिन अब भी संक्रमण के कुछ मामले सामने आ रहे हैं।
कोरोना वायरस अब भी सेहत के लिए खतरा बन सकता है, इसलिए कुछ सावधानियों का पालन करना जरूरी है। खासतौर से स्वच्छता और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि, दो ऐसे उपाय हैं, जिन्हें थोड़ी-सी सूझबूझ के साथ हर कोई अपना सकता है और इस महामारी के खात्मे में बड़ा योगदान दे सकता है।
घेब्रेयेसस के इन शब्दों पर गौर करने की जरूरत है- 'कोविड-19 वर्तमान में वैश्विक स्वास्थ्य आपात नहीं रह गया है, लेकिन अब भी यह वैश्विक स्वास्थ्य खतरा बना हुआ है। डब्ल्यूएचओ ने हाल में कोरोना वायरस के नए स्वरूप की पहचान की है, जिसका स्वरूप कई बार परिवर्तित हो चुका है। बीए.2.86 स्वरूप की वर्तमान में निगरानी और जांच की जा रही है, जो एक बार फिर दर्शाता है कि सभी देशों को चौकसी बरतने की जरूरत है।’
निस्संदेह किसी भी बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए और बात जब कोरोना संक्रमण की हो तो सावधानी बरतना बेहद जरूरी है। आज भी जब वर्ष 2020 के दृश्य याद आते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हमारे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के प्रयासों से महामारी के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ी गई, जिसमें हम जीत तो रहे हैं, लेकिन निर्णायक जीत तभी होगी, जब इसका पूरी तरह से खात्मा कर देंगे। अगर एक भी व्यक्ति को कोरोना संक्रमण होता है और उसकी जान जाती है, तो यह अत्यंत दु:खद है।
ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि कोरोना काल में बताई गईं स्वच्छता संबंधी सावधानियों को जीवन का हिस्सा बना लें। उस समय हाथों को स्वच्छ रखना हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन गया था। आज कई लोग उसे भूलते जा रहे हैं। यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौटता जा रहा है।
अगर हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो तो संक्रमण से दृढ़ता से लड़ सकते हैं। इसके लिए प्रकृति के अनुकूल दिनचर्या, संतुलित खानपान, योग, ध्यान, प्राणायाम बहुत लाभदायक होते हैं। आयुर्वेद में भी ऐसे अनेक उपाय बताए गए हैं, जिन पर विशेषज्ञों के निर्देशानुसार अमल किया जाए तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
हालांकि हर शरीर की प्रकृति अलग होती है, इसलिए एक ही उपाय सबके लिए उपयोगी नहीं हो सकता, लेकिन कोरोना काल में यह देखने में आया कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी, उन्हें संक्रमण के बाद ज्यादा दिक्कत हुई। मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमण से तुलनात्मक रूप से जल्दी उबर गए थे।
लॉकडाउन में कुछ छूट देने के बाद कई लोगों ने दिनचर्या में बदलाव करते हुए सुबह-शाम सैर शुरू कर दी थी। रात को जल्दी सोने का नियम बना लिया था। गरिष्ठ और अत्यधिक चटपटे खानपान से दूरी बना ली थी। बोतल बंद शीतल पेय की जगह दूध, छाछ, सत्तू, नींबू पानी जैसे परंपरागत पेय की वापसी हो गई थी। अब स्थिति दोबारा बदल गई है। बड़ों को देखकर बच्चे भी बोतल बंद शीतल पेय के लिए मचलते हैं। अगर दूध में मलाई आ जाए तो उसे अलग कर देते हैं या बाहर फेंक देते हैं! वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि भारत के दूध-दही ने कितने बच्चों को बलिष्ठ योद्धा बनाया है!
आज जरूरत इस बात की है कि अतीत के उन कष्टपूर्ण दिनों से सबक लें और जरूरी सावधानी बरतते हुए अपने और सबके स्वास्थ्य की सुरक्षा करें। घेब्रेयेसस के ये शब्द भी इसी तथ्य को दोहराते हैं- 'कोविड-19 ने हम सबको यह अहम पाठ सिखाया है कि अगर स्वास्थ्य खतरे में है तो सबकुछ खतरे में है। दुनिया इस महामारी के कष्टपूर्ण पाठ को सीख रही है।’