वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर का पाकिस्तान के साथ बातचीत की बहाली की पैरवी करते हुए यह बयान देना कि 'जब तक उक्त पड़ोसी देश हमारे गले की फांस बना रहेगा, तब तक भारत दुनिया में अपना उचित स्थान हासिल नहीं कर सकेगा', तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।
अय्यर ने अपनी आत्मकथा में इस बात पर जोर दिया है कि पाकिस्तान में भारत की ‘सबसे बड़ी पूंजी’ वहां के लोग हैं, जो भारत को दुश्मन देश नहीं मानते! यह बतौर भारतीय, अय्यर की 'सद्भावना' हो सकती है, जैसा कि करोड़ों भारतवासियों की है। चूंकि हम दुनिया में किसी भी देश से शत्रुता नहीं रखते, इसलिए यही सोचते हैं कि न तो कोई देश हमसे घृणा करेगा और न शत्रुता रखेगा। काश कि यह दुनिया ऐसी होती! हकीकत तो इससे बिल्कुल उलट है।
अगर अय्यर के मुताबिक पाकिस्तान में भारत की ‘सबसे बड़ी पूंजी’ वहां के लोग हैं, तो इस पूंजी से आजतक हमें क्या लाभ हुआ? यहां लाभ का आशय धन-संपत्ति नहीं, बल्कि शांति है। अय्यर पाकिस्तान के वाणिज्यिक शहर कराची में दिसंबर 1978 से जनवरी 1982 तक भारत के महावाणिज्य दूत रहे हैं। वे संभवत: उन्हीं वर्षों की यादों के आधार पर यह 'मधुर' विश्लेषण कर रहे हैं। तब से आज तक बहुत पानी बह चुका।
आज पाकिस्तान की आबादी का ज़्यादातर हिस्सा मानसिक रूप से कट्टरपंथ के दायरे में आ चुका है, जिसकी बुनियाद हिंदुओं से नफरत और भारत से नफरत है। पाकिस्तान की स्कूली किताबों में हिंदुओं के लिए अपमानजनक शब्द लिखे जाते हैं। बच्चों को शुरुआती कक्षाओं में ही भारत से नफरत की घुट्टी पिला दी जाती है। वे उसी वातावरण में जवान होते हैं।
ऐसे में यह कहना कि वहां के लोग भारत की ‘सबसे बड़ी पूंजी’ हैं, हकीकत से कोसों दूर है। पाकिस्तान का तो निर्माण ही भारत से नफरत की बुनियाद पर हुआ था। इसी के जुनून में कई युद्ध हुए। आज भी एलओसी पर पाकिस्तानी आतंकवादी घुसपैठ की कोशिश करते हैं, जिन्हें हमारे जवान ढेर करते रहते हैं।
पाकिस्तान में आतंकवादियों की फंडिंग में वहां की आम जनता बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। हाफिज सईद समेत जितने भी कुख्यात आतंकवादी तक़रीर करते हैं, उनमें आम जनता ही जुटती है और उनके समर्थन में नारे लगाती है। सिंध में मासूम हिंदू बालिकाओं का अपहरण, जबरन धर्मांतरण और दुष्कर्म करने वाले कौन हैं? वे लोग आम जनता में से ही हैं।
श्रीलंकाई नागरिक प्रियंथा कुमारा को ज़िंदा जलाकर सेल्फी लेनेवाले किस ग्रह से आए थे? वह पाकिस्तान की आम जनता ही थी। हाल में जरांवाला में दर्जनों चर्चों और ईसाइयों के सैकड़ों घरों में आग लगाने वाले कौन थे? उनके वीडियो तो सोशल मीडिया पर अब तक वायरल हो रहे हैं। उन्हें देखेंगे तो पाएंगे कि वे आम लोग हैं।
पश्चिमी देशों में जाकर हिंसा और आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले पाकिस्तानियों का ताल्लुक साधारण परिवारों से है। इन सबके बाद जो पाकिस्तानी बच जाएं (जिन्हें बड़ा शांतिप्रेमी माना जाता है), उनसे यह सवाल पूछकर देखें- आपके देश में अल्पसंख्यकों को भी राष्ट्रपति / प्रधानमंत्री / सेना प्रमुख बनने का अधिकार मिले तो कैसा रहेगा? ज़्यादातर पाकिस्तानी इसका जवाब 'ना' में देंगे। अगर कहीं से यह अफवाह फैल जाए कि अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति (चाहे वह कितना ही काबिल व ईमानदार हो) उनका प्रधानमंत्री बनने जा रहा है तो पूरे पाकिस्तान में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे।
ये ही (आम) लोग जब पश्चिमी देशों में जाते हैं तो वहां की सरकारों द्वारा दी गईं सुविधाओं का भरपूर लुत्फ उठाते हैं। वे हमेशा बराबरी से ज्यादा अधिकार लेने के इच्छुक रहते हैं। वहां की संस्कृति, सभ्यता का मखौल उड़ाते हैं। स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। नागरिकता लेने के लिए स्थानीय युवतियों से शादी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा अभिव्यक्ति की आज़ादी मांगते हैं। उनके लोकतंत्र में बड़े से बड़ा ओहदा लेना चाहते हैं। इस पर भी यह शिकायत करते हैं कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है। हमेशा असंतुष्ट रहते हैं।
इसके बाद जब पाकिस्तान लौटते हैं तो यहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों का विरोध करते हैं। उनकी आवाज दबाते हैं। उनकी बेटियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण पर चुप्पी साधे रहते हैं। क्या इसके बावजूद यह कहना तर्क संगत है कि ये किसी के लिए 'पूंजी' हो सकते हैं? ये पहले पाकिस्तान के लिए तो 'पूंजी' बन जाएं। उसकी बदहाल अर्थव्यवस्था को उबार लें। भारतवासियों में आज भी 'शत्रुबोध' का अभाव है, इसलिए वे विदेशियों की चिकनी-चुपड़ी बातों को प्रेम समझने की भूल कर रहे हैं।