'इंडिया' बनाम 'भारत' की बहस को बेवजह तूल दिया जा रहा है। संभवत: कुछ राजनीतिक दल यही चाहते हैं कि यह बहस जारी रहे, ताकि वे इस मुद्दे को भुनाते रहें। जी20 से संबंधित रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को ‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत' (भारत की राष्ट्रपति) के तौर पर संबोधित किए जाने के बाद यह 'राजनीतिक विवाद' पैदा हुआ, जो अब तक शांत नहीं हुआ है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार देश के दोनों नामों ‘इंडिया’ और ‘भारत’ में से ‘इंडिया’ को बदलना चाहती है।
क्या 'इंडिया' और 'भारत' में कोई अंतर है? हमारा संविधान तो यह कहता है कि 'इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ है।' आज 'इंडिया' और 'भारत', दोनों ही नाम प्रचलित हैं। अंग्रेजी मीडिया 'इंडिया' लिखता / बोलता है, हिंदी मीडिया में 'भारत' का दबदबा है। सोशल मीडिया के प्रसार के बाद प्राय: वह पीढ़ी देवनागरी में भी 'इंडिया' लिखती है, जिसकी पढ़ाई-लिखाई का माध्यम अंग्रेज़ी है।
पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया पर 'हिंदुस्तान' खूब लिखा जा रहा है। विद्वानों के बीच इस बात को लेकर मतभेद देखने को मिलते हैं कि यह 'हिंदुस्तान' होना चाहिए या 'हिंदूस्थान'! विभिन्न कालखंडों में आर्यावर्त, जंबूद्वीप समेत कुछ और नाम प्रचलन में रहे हैं। 'इंडिया' नाम का प्रचलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में हुआ था। ब्रिटिश शासकों ने जो नक्शे प्रकाशित किए, सिक्के ढाले, उनमें यह नाम प्रमुखता से मिलता है।
उससे पहले मुगल शासकों के दौर में 'हिंदुस्तान' नाम प्रचलित था। राज दरबार से लेकर बोलचाल में 'हिंदुस्तान' काफी आम था। अगर आज़ादी के आसपास के समय की हिंदी फिल्में देखें तो उनमें 'हिंदुस्तान' और 'भारत', दोनों ही बड़ी संख्या में मिलते हैं। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका इसे 'भारत', 'भारतवर्ष', 'रिपब्लिक ऑफ इंडिया' कहता है।
प्राचीन ग्रंथों में 'भरतखंड', 'मेलुहा', 'अजनाभवर्ष' जैसे नाम मिलते हैं। इनमें से अंतिम दो के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना होगा। ये आज प्रचलन में भी नहीं हैं, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि ये नाम हमारे देश की पहचान को अभिव्यक्त करने का माध्यम हैं / रहे हैं। लिहाजा इनका सम्मान करना चाहिए।
हो सकता है कि अन्य काल खंडों में भारत के लिए ऐसे और नाम प्रचलन में रहे हों, जिनके बारे में अब अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कभी हमारा एक पड़ोसी देश बर्मा कहलाता था, जो अब म्यांमार हो गया है। पर्शिया अब ईरान कहलाता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश (वर्ष 1947 से 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान) तो अखंड भारत के हिस्से थे। तुर्की भी तुर्किए बन गया है।
ऐसे कई देश हैं, जिनके एक से ज्यादा नाम हैं, लेकिन ऐसा शायद ही कोई देश होगा, जिसके इतने नाम हों, जितने हमारे देश के हैं! हमें इन नामों को लेकर न कभी असुविधा हुई, न कभी भ्रम की स्थिति पैदा हुई। लेकिन इन सभी नामों में से ऐसा नाम कौनसा है, जो हमारे देश की आत्मा को सबसे अधिक स्पर्श करता है? वह नाम कौनसा है, जो हमारी विविधता को एक सूत्र में पिरोने की क्षमता रखता है?
महानगरों से निकलकर छोटे कस्बों, गांवों, ढाणियों में जाकर लोगों से पूछें कि वे किस नाम के साथ अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं? वह नाम कौनसा है, जिसे केंद्र में रखकर हमारे दार्शनिकों, स्वतंत्रता सेनानियों ने इस देश को साक्षात् माता कहा है?
निस्संदेह ये सभी विशेषताएं केवल 'भारत' में हो सकती हैं। 'माता' शब्द भी भारत के साथ ही ठीक जुड़ता है, 'इंडिया' के साथ नहीं। इसलिए हमारे देश की पहचान को पूर्णत: अभिव्यक्त करने की क्षमता रखने वाला नाम 'भारत' है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि 'इंडिया', 'हिंदुस्तान' और अन्य नामों का महत्त्व कम है। ये भी भारत के नाम हैं। इनका इतिहास है। इनका अपनी जगह महत्त्व है और रहेगा।
जहां तक 'इंडिया' बनाम 'भारत' की बहस का सवाल है तो इसे सियासी रंग देने से बचना चाहिए। आज करेंसी नोटों से लेकर हमारी सेनाओं, इसरो, प्रौद्योगिकी व प्रबंधन संस्थानों ... सब जगह 'इंडिया' मौजूद है। इसलिए यह कहना तर्क संगत नहीं है कि 'इंडिया' को हटाया जा रहा है। हां, 'भारत' के साथ जो अपनत्व और गर्व की अनुभूति जुड़ी है, वह अद्वितीय है। अत: इस नाम के प्रचार-प्रसार पर ज्यादा जोर देना चाहिए।