इक्कीसवीं सदी में ऐसी कई समस्याएं हैं, जिनका उचित समय पर समाधान नहीं ढूंढ़ा गया तो पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकते हैं। इनके प्रभावों से मनुष्य नहीं बच सकता। आज जलवायु परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा है। हर साल वायु प्रदूषण पर आने वाली अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें बताती हैं कि कई शहरों में हालात बड़े मुश्किल होते जा रहे हैं। इनमें भारत के शहर भी शामिल हैं।
ईंधन की कीमतों के कारण आज भी एक बड़ी आबादी भोजन पकाने में लकड़ी या कोयले का इस्तेमाल कर रही है। इससे वायुमंडल में धुआं घुल रहा है। इन समस्याओं पर लिखा, बोला तो खूब जाता है, लेकिन समाधान की दिशा में उतने कदम नहीं उठाए जाते।
आज समय आ गया है कि सभी देशों की सरकारें गंभीरता से विचार करें और धरती बचाने के लिए ठोस पहल पर अमल करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाहन विनिर्माताओं के संगठन सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के वार्षिक सम्मेलन में अपने संदेश में उचित ही कहा है कि 'एक ऐसा गतिशील पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की जरूरत है, जो टिकाऊ तथा पर्यावरण के अनुरूप हो।'
निस्संदेह विकास जरूरी है, लेकिन यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर नहीं होना चाहिए। अन्यथा आज का विकास भविष्य में मुसीबत बन सकता है। प्रधानमंत्री ने एथनॉल, फ्लेक्स फ्यूल, सीएनजी, बायो-सीएनजी, हाइब्रिड इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन जैसी कई वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों का हवाला देते हुए कार्बन उत्सर्जन तथा तेल आयात पर भारत की निर्भरता कम करने के लिए ठोस प्रयास जारी रखने और उन्हें अधिक बढ़ाने की जरूरत पर भी जोर दिया, जो आज अत्यधिक प्रासंगिक हैं। हमें तेल के बजाय ऐसी प्रौद्योगिकियों को अपनाना होगा, जो पर्यावरण की 'मित्र' हैं।
सियाम के वार्षिक सम्मेलन में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी बढ़ते प्रदूषण स्तर को स्वास्थ्य के लिए चिंता का गंभीर विषय बताकर डीजल वाहनों पर निर्भरता कम करने का संकेत दिया। हालांकि बाद में उन्होंने यह भी स्पष्टीकरण दिया कि डीजल वाहनों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
गडकरी ने एथनॉल जैसे पर्यावरण-अनुकूल वैकल्पिक ईंधन और हरित हाइड्रोजन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा, जिसकी आज सख्त जरूरत है। यह सुखद है कि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है। अगर एथनॉल और हरित हाइड्रोजन जैसे विकल्प लोकप्रिय होंगे तो इससे न केवल प्रदूषण की समस्या का ठोस समाधान निकलेगा, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत होगा।
वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए अभी से तैयारी करनी होगी। वहीं, भोजन पकाने में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ऊर्जा के इस स्वरूप पर बहुत जोर देते हैं। हाल में घरेलू एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत में कटौती की गई थी, लेकिन यह अब भी मध्यम वर्गीय परिवार की रसोई के लिए ज्यादा है। जब गैस सिलेंडर की कीमत बढ़ती है, तो इन परिवारों की चिंता भी बढ़ जाती है। इसका स्थायी समाधान ढूंढ़ना होगा, जो सौर ऊर्जा में नजर आता है।
सरकार को चाहिए कि वह सोलर स्टोव के उपयोग को बढ़ावा दे। यह सूर्य की धूप से गर्म होने वाला ऐसा चूल्हा है, जिस पर दिन में आसानी से खाना पकाया जा सकता है। इसके अलावा बैटरी जुड़ी होने से रात को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मध्य प्रदेश का बांचा गांव सौर ऊर्जा से खाना पकाने के लिए विख्यात हो चुका है। देश के अन्य गांव और शहर भी इससे प्रेरणा लेकर क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
इन दिनों अफ्रीका के कई गांवों में एक खास तरह का सोलर चूल्हा बहुत लोकप्रिय हो रहा है। धातु की एक गोल छतरी पर बहुत सारे छोटे दर्पण लगाकर तैयार किया गया यह चूल्हा धूप में खूब काम करता है। इस पैराबोलिक सोलर स्टोव को देखकर लोग चकित हैं, क्योंकि इससे उनका गैस सिलेंडर / परंपरागत ईंधन पर होने वाला काफी खर्च बच जाता है। हमारे देश में इसके सफल होने के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। कुछ जगहों पर इसका उपयोग हो रहा है। अगर सरकार इसे बढ़ावा दे तो यह कमाल कर सकता है।