डिजिटल भुगतान में यूपीआई क्रांतिकारी बदलाव लाने की ओर अग्रसर है। इसके जरिए अगस्त में डिजिटल भुगतान की संख्या कई गुना बढ़कर 10 अरब होना देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। वर्ल्डलाइन की यह रिपोर्ट उन तमाम पूर्वाग्रहों को आईना दिखाने के लिए काफी है, जब साल 2016 में इस मंच की शुरुआत के बाद यह कहा जा रहा था कि डिजिटल भुगतान का प्रयास भारत में अधिक सफल नहीं हो सकता, क्योंकि यहां आम लोगों के पास न इंटरनेट की सुविधा है और न उन्हें अधिक तकनीकी ज्ञान है। आज आंकड़े बताते हैं कि भारत की आम जनता ने उन धारणाओं को ग़लत साबित कर दिया।
जनवरी 2018 में यूपीआई से 15.1 करोड़ लेनदेन किए गए थे। यह आंकड़ा जून 2023 में बढ़कर 9.3 अरब हो गया है! देश ने डिजिटल के क्षेत्र में बहुत लंबी छलांग लगाई है। यही नहीं, अगस्त में तो यह आंकड़ा 10 अरब को पार कर गया। यह पी2एम लेनदेन में शानदार बढ़ोतरी का स्पष्ट प्रमाण है। इस तथ्य पर ध्यान देना जरूरी है कि जनवरी 2022 में पी2एम का हिस्सा कुल यूपीआई लेनदेन में 40.3 प्रतिशत था। डेढ़ साल में इसने और ऊंची उड़ान भरी है। यह जून 2023 में बढ़कर 57.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। अभी नवरात्र, दशहरा, दीपावली, क्रिसमस, नया साल आदि अवसरों पर इसमें और बढ़ोतरी होने की भरपूर संभावनाएं हैं।
कुछ साल पहले तक यही माना जाता था कि अगर राशि ज्यादा है तो वह डिजिटल माध्यम से भेजें। कम राशि के लिए नकद लेनदेन ठीक है। यह धारणा भी बदलती नजर आ रही है। आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। जनवरी 2022 में यूपीआई से पी2एम लेनदेन का औसत आकार 885 रुपए था। यह जून 2023 में 653 रुपए पर आ गया है। इसका अर्थ है कि अगर राशि कम हो तो भी लोग यूपीआई पर भरोसा जता रहे हैं। यूपीआई टोल भुगतान में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है। इससे लोगों का समय बच रहा है। उन्हें ज्यादा देर तक अपने वाहन को कतार में खड़ा नहीं रखना पड़ता।
यूपीआई से लेनदेन का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। अब तक जो आंकड़े सामने आए हैं, वे भविष्य के लिए उम्मीद जगाते हैं। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) दिलीप असबे कह चुके हैं कि भारत के पास यूपीआई के जरिए 100 अरब से भी अधिक लेनदेन करने की क्षमता है। इसका अर्थ है- मौजूदा समय में होने वाले मासिक लेनदेन का 10 गुना!
अभी देश में लगभग 35 करोड़ लोग यूपीआई का उपयोग कर रहे हैं। जिस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सुविधा का विस्तार हो रहा है, लोगों में डिजिटल लेनदेन को लेकर रुझान बढ़ रहा है, उसके मद्देनजर यह आंकड़ा तीन गुना तक बढ़ सकता है। उस सूरत में मौजूदा स्थिति से 10 गुना तक लेनदेन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। आज विदेशों में यूपीआई की चर्चा है। यूरोप, अमेरिका, सिंगापुर, जापान ... जो तकनीक व संसाधनों की दृष्टि से बहुत संपन्न माने जाते हैं, वे इस उपलब्धि से चकित हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत साल 2030 तक यूपीआई से रोजाना दो अरब लेनदेन करने लगेगा। उसी साल तक भारत और दुनिया के 30 प्रमुख देशों के बीच निर्बाध भुगतान को सुनिश्चित करने के लिए गठजोड़ करने की योजना है। इससे भारतीय मुद्रा और यूपीआई का दबदबा बढ़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा इस साल अगस्त में, इंटरनेट से वंचित या कमजोर सिग्नल वाले इलाकों में यूपीआई-लाइट वॉलेट के जरिए ऑफलाइन भुगतान की अधिकतम राशि 200 रुपए से बढ़ाकर 500 रुपए करने की घोषणा भी एक महत्त्वपूर्ण फैसला था।
प्राय: यह देखने में आता है कि जिन इलाकों में इंटरनेट की अच्छी सुविधा है, वहां तो लोग आसानी से यह भुगतान कर देते हैं, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में, जहां अभी यह सुविधा ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाई, वहां लोग नकदी पर ही निर्भर हैं। इस फैसले से उनके लिए आसानी होगी। वहीं, डिजिटल भुगतान को नई ऊर्जा मिलेगी।