देश में कई इलाकों का साइबर अपराधों के 'गढ़' के तौर पर उभरना बड़ी चुनौती है। अब तक ऐसे अपराधों के लिए झारखंड के जामताड़ा एवं हरियाणा के नूंह का नाम सुनने में आता था, लेकिन राजस्थान के भरतपुर और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में बैठे साइबर ठग भी आम जनता को खूब चूना लगा रहे हैं। आईआईटी-कानपुर में स्थापित गैर-लाभकारी स्टार्टअप फ्यूचर क्राइम रिसर्च फाउंडेशन (एफसीआरएफ) के अध्ययन का यह निष्कर्ष चिंता बढ़ाने वाला है कि शीर्ष 10 जिलों से देश में 80 प्रतिशत साइबर अपराध होते हैं।
अध्ययन पत्र ‘ए डीप डाइव इनटू साइबर क्राइम ट्रेंड्स इम्पैक्टिंग इंडिया’ कहता है कि अकेला भरतपुर 18 प्रतिशत हिस्से के साथ शीर्ष पर है। इस सूची में जामताड़ा 9.6 प्रतिशत के साथ पांचवें स्थान पर खिसक गया है। दूसरे से चौथे स्थान तक क्रमश: मथुरा (12 प्रतिशत), नूंह (11 प्रतिशत), देवघर (10 प्रतिशत) आ गए हैं। इनमें से मथुरा और देवघर तो हमारी आस्था के केंद्र हैं। निस्संदेह साइबर ठगी एक गंभीर अपराध है, लेकिन तीर्थ स्थलों पर रहकर ऐसी गतिविधियों में लिप्त होना तो घोर पाप है। ऐसे लोग किसी सूरत में नरमी के हकदार नहीं हैं। लिहाजा कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
जामताड़ा को पछाड़कर कुछ जिले उससे आगे निकले हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि वहां प्रशासन और पुलिस तंत्र साइबर अपराधियों को नकेल डालने में सफल नहीं हो रहे हैं। अपराधियों में कानून का डर समाप्त होता जा रहा है। जामताड़ा में साइबर ठगी में लिप्त रहे अपराधियों के 'ठाठ' देखकर कई युवा गुमराह हुए। अगर समय रहते उन पर काबू पाया होता, प्रभावी तकनीकी उपाय किए होते तो अपराधियों के हौसले इतने बुलंद नहीं होते।
साइबर अपराध के गढ़ बनते जा रहे इन इलाकों में गुरुग्राम (8.1 प्रतिशत), अलवर (5.1 प्रतिशत), बोकारो (2.4 प्रतिशत), कर्मा टांड (2.4 प्रतिशत) और गिरिडीह (2.3 प्रतिशत) भी शामिल हो गए हैं। उक्त दस जिलों में 80 प्रतिशत साइबर अपराधों के बाद बाकी 20 प्रतिशत, देश के अन्य इलाकों में हो रहे हैं।
भारत में तकनीक के बड़े-बड़े विशेषज्ञ हैं। क्या ऐसी कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं हो सकती कि साइबर अपराधियों के मंसूबे विफल कर दिए जाएं? आज साइबर ठगी के मामले में जिस तरह जामताड़ा को पछाड़कर चार जिले आगे निकल गए हैं, अगर प्रभावी रोकथाम नहीं की गई तो भविष्य में कुछ और जिले उन्हें पछाड़ने की होड़ में लगेंगे। साइबर अपराधी जिस बेरहमी से आम जनता को लूट रहे हैं, उस पर लगाम लगाने के लिए तकनीकी उपाय तो करने ही होंगे। उसके अलावा कुछ कानूनी प्रावधान भी करने होंगे।
सरकार को तकनीकी विशेषज्ञों की सहायता से ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा, जिससे साइबर ठगी करना बहुत मुश्किल हो जाए। अगर पीड़ित की असावधानी के कारण ठगी हो भी जाए तो वह धन साइबर ठगों के हाथों में न जा सके। भारत में ठगी का इतिहास बहुत पुराना है। मुगलों और अंग्रेजों के शासन काल में भी ठगों ने भारी उत्पात मचाया था। चूंकि उस जमाने में आजकल की तरह परिवहन के साधन नहीं थे, इसलिए लोग ऊंट, घोड़े, बैलगाड़ी से या पैदल ही सफर करते थे। रास्ते में ठग अपनी पहचान बदलकर उनसे दोस्ती कर लेते। फिर मौका पाकर 'शिकार' करते।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि वे एक खास तरीके से उन लोगों का गला घोंटकर पूरा माल लूट लेते थे। बाद में कुछ अफसरों ने उनका डटकर मुकाबला किया। ठगों में अपने जासूस छोड़े, जिससे उनकी खबर मिलती रही। फिर उन पर धावा बोलकर गिरफ्तारियां कीं। अधिकारी यह देखकर हैरान थे कि ठगों ने सैकड़ों की तादाद में निर्दोष लोगों को न केवल लूटा, बल्कि गड्ढे खोदकर उनकी लाशें भी छुपाईं। बाद में अदालतों ने ठगों को मृत्युदंड सुनाया। एक-एक ठग को पकड़कर फंदे पर लटकाया गया, जिससे ये अपराधी कुछ काबू में आए।
आज ठगों ने तरीका बदल लिया है। वे ऑनलाइन आकर बातों में उलझाते हैं। फिर माल लूटकर 'गायब' हो जाते हैं। वे यह नहीं देखते कि उस व्यक्ति ने कितनी मेहनत से धन कमाया है। किसी के परिवार में कोई बीमार है, बच्चों की फीस बाकी है, शादी है, नौकरी चली गई ... लेकिन साइबर ठगों को इससे कोई मतलब नहीं, वे हर हाल में लूटना चाहते हैं। सरकार को चाहिए कि इन ठगों के अपराध की प्रकृति के आधार पर कठोर आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक का प्रावधान करे। अन्यथा इनके हौसले बढ़ते जाएंगे।